Friday, October 24, 2025

कविता - हैलोवीन, भूत और कुमाट्टी

 प्रस्तावना 


कविता - हैलोवीन, भूत और कुमाट्टी



त्यौहार हमारे जीवन को अलग-अलग तरीकों से जगमगाते हैं—

सोने की दीपक, खेलती परछाइयाँ, गीत और नृत्य।

भारत में दीवाली से लेकर कनाडा में हैलोवीन तक,

रिवाज भले ही अलग हों अलग-अलग जगहों पर,

खुशी, प्रेम और स्नेह हर दिल में समान रूप से बहते हैं।


हैलोवीन, भूत और कुमाट्टी


दीवाली चमके सोने की रौशनी में,

अँधेरा हारे, उजाले की कहानी में।

घर भर जाएँ हर्ष और प्यार से,

सपने जागें, दिल खुशियों के साथ।


हैलोवीन की रात, कनाडा की गलियों में,

कद्दू के दीपक झिलमिलाएँ सजीली।

बच्चों की हँसी, परछाइयों का खेल,

पूर्वजों के आशीर्वाद जगाएँ मेल।


बंगाल में, भूत चतुर्दशी की रात,

पूर्वजों की स्मृति जगाए प्रकाश साथ।

दीपक झिलमिलाएँ, कहानियाँ सुनाएँ,

स्नेह और श्रद्धा घरों में छाएँ।


तमिलनाडु में, आड़ी गीत गूँजे,

भक्ति और विश्वास दिलों में भूँजे।

केरल में, ओणम की खुशियाँ फैले,

कुमाट्टी के मुखौटे नृत्य में खिले।


सारी दुनिया में, त्यौहार मिल जाएँ,

दिलों में रौशनी और प्रेम पल जाएँ।

रिवाज अलग हों, पर स्नेह वही रहे,

अमर प्रकाश हर दिल में जगे।


जी 

आर कवियुर 

24 10 2025

(कनाडा, टोरंटो)

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