Tuesday, October 28, 2025

मौन में गीत भर गया,

मौन में गीत भर गया,

बीत गए फासले हवाओं में घुलकर,
दिल ने चुराए सपने, ख्वाबों में पलकर।
समय की यादें बन गईं गीत पुरानी,
मौन में गीत भर गया, छुपा हर कहानी...(2)

ओस की बूँदों सा सुबह का नूर,
हवा में लहराता, छुपा हर दूर।
नदी किनारे खोई लंबी परछाई,
सैकड़ों यादें बन गईं जुदाई।
बीत गए फासले हवाओं में घुलकर...(2)

सूरज की मुस्कान में सन्नाटा समाया,
अधरों की खामोशी दिल में गाया।
संध्या की रौशनी तट पर चमकती,
संगीत बनकर धड़कनों में बसती।
बीत गए फासले हवाओं में घुलकर...(2)

बदलता समय, कहानी बनकर गया,
सालों की ख्वाहिशें सपनों में समाया।
रात के तारे ज्यों मन में चमके,
मौन में गीत भर गया, हर पल गूंजे।
बीत गए फासले हवाओं में घुलकर...(2)

जी आर कवियुर 
28 10 2025
(कनाडा, टोरंटो))

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