Friday, October 24, 2025

“बाँस के जंगल में”

“बाँस के जंगल में”

बाँस के जंगल में दिन की रोशनी चमके,
आधे छाए पेड़ शांति से खड़े मुस्कुराए।

नदी अपनी मधुर धुन गाती,
करुणा की मुस्कान हर मन को भाती।

हरे बगिचों में फूल फैलाते मीठी खुशबू,
सूरज की किरणें चिड़ियों के पंखों पर चमकें।

तुलसी की पत्तियाँ मन को महकाएँ,
हवा में बिखरी खुशबू हृदय को छू जाए।

नाव के पानी में लहरें नाचती हैं,
मिट्टी की पगडंडियाँ मन को बहलाती हैं।

रात में आकाश तारों से जगमगाए,
बाँस के जंगल में सपने गाने गाए।

जी आर कवियुर 
23 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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