Monday, October 6, 2025

दिल से (ग़ज़ल)

दिल से (ग़ज़ल)

शिकायत है हमें अपने दिल से,
यकीन नहीं वो क्यों नाराज़ है दिल से।

छुपा लेता था हर दर्द को मुस्कान में,
आज छलकती है आँखें आवाज़ है दिल से।

वो यादें जो महकती थीं कभी फूलों सी,
अब काँटों का सफ़र बन गया है दिल से।

हर ख़ुशी में भी जो तन्हाई का साया है,
कोई राज़ कह नहीं पाता है दिल से।

तेरे बिना अधूरी सी लगती हर बात मेरी,
कोशिश करता हूँ फिर भी सुलझाए दिल से।

जी. आर. कहता है मोहब्बत का यही मंज़र है,
न जाने कब कौन ख़फ़ा हो जाए दिल से।

जी आर कवियुर 
05 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)

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