Monday, October 13, 2025

लहर और किनारा

लहर और किनारा

लहरें दौड़ीं, नीले गगन को निहारा,  
रेत के कणों ने मौन में सब कुछ सुना।  

समुद्र की बोली हवा में गूंज उठी,  
मछलियाँ लहरों पर हँसी में झूम उठीं।  

हर लहर उंगलियों पर नृत्य रचती,  
नीला रंग आँखों में बसता जाता।  

रेत की राहों पर कदम कहानी कहते,  
गर्म हवाएँ बिन शब्दों के गुनगुनातीं।  

सांझ के बादल सौंदर्य में घिर आते,  
चाँदनी किनारे का मन छू जाती।  

लहर और किनारा साथ में स्वप्न सजाते,  
जीवन फिर सागर बनकर उठ आता।  

जी आर कवियुर 
13 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

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