Thursday, October 9, 2025

मगर तू नहीं आए (ग़ज़ल)

मगर तू नहीं आए (ग़ज़ल)

मिला बिछड़ा तेरी यादें, मगर तू नहीं आए
सदियों से पुकारता चला हूँ, मगर तू नहीं आए

रातें भीगी हैं तन्हाई में तेरे नाम से
हर सुबह ने पूछा क्यों, मगर तू नहीं आए

ख़ुशबू तेरे गेसू की अब तक है हवाओं में
दिल ने भी कहा बारहा, मगर तू नहीं आए

आँखों में तेरे ख़्वाब अब भी मुस्कुराते हैं
जागे तो हर पल लगा, मगर तू नहीं आए

क़दम रुक गए तेरी राहों के किनारों पर
आशा ने फिर कहा चुपके, मगर तू नहीं आए

जी आर के दिल में अब भी वही दर्द बाकी है
हर शेर में तेरा ज़िक्र है, मगर तू नहीं आए

जी आर कवियुर 
09 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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