तेजस्विता गिरती बर्फ़ की तरह,
मन के विस्तार में फैलती नज़र,
हर विचार चमकता प्रकाश की तरह,
बर्फ़ के कण पिघलकर बहते धीरे-धीरे।
हृदय में उठते भाव,
सपने खिलते कोमल साव के साथ,
भोर की नर्म रौशनी में,
हृदय जाग उठता है नई शुरुआत के साथ।
आँसू फैलते हैं नीरव पथों पर,
किसी को न दिखते, धीरे-धीरे उठते,
अपने भीतर के रंग धीरे-धीरे प्रकट होते हैं,
जहाँ आत्मा शांत रहती है।
समय बीतता है, यादें रहती हैं,
अतीत की छायाएँ नहीं मिटतीं,
तेजस्विता की तरह जीवन धीरे बहता है,
हृदय को भरता सुंदर और कोमल रूप से।
जी आर कवियुर
07 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)
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