Saturday, October 18, 2025

कविता - धरती का कल

कविता - धरती का कल
प्रस्तावना 

यह कविता धरती के साथ हमारे नाज़ुक रिश्ते की याद दिलाती है।
हर पत्ता, हर नदी, हर साँस एक अमूल्य वरदान है — जिसे हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए सँभालना है।
यदि हम आज संवेदना से जीएँ, तो हमारे बच्चे जीवन से भरी दुनिया पाएँगे, न कि विनाश से।
आओ हम प्रेम और उत्तरदायित्व को अपना धर्म बनाएँ,
क्योंकि यही हैं कल की धरती की जड़ें।

कविता - धरती का कल

पत्ते हँसें, न सूखें कभी,
नदियाँ बोलें, रुकें न सभी।
हवा बहे, सुगंध लिए,
मेघ बरसें, स्नेह पिए।

वन गाएँ, जीवन खिले,
भोर जगे, सपने मिले।
पर्वत सँभाले धरती का मान,
सागर सुनाए प्रकृति की तान।

कदम रखें हलके निशान,
बीज बनें दया की जान।
हाथ मिलें, अम्बर सजे,
प्यार हमारा सदा बहे।

जी आर कवियुर 
18 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

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