Sunday, October 12, 2025

तन्हाई तड़पाती रही ( ग़ज़ल)

तन्हाई तड़पाती रही ( ग़ज़ल)

तेरी लौट आने की ख़्वाब देखता रहा,
इस क़दर तन्हाई तड़पाती रही(2)

हर सदा में तेरे नाम की गूंज थी,
रात भर दिल में खामोशी जगाती रही(2)

तेरी यादों का समंदर गहरा बहुत,
हर लहर मुझको किनारे से हटाती रही(2)

तेरे जाने के बाद भी महक उठे लम्हे,
तेरे गजरे की खुशबू मुझे बुलाती रही(2)

चाँदनी में तेरा चेहरा उतरता रहा,
मेरी नज़्मों में वो रौशनी सजाती रही(2)

अब सुकून ढूँढता हूँ तेरे निशानों में,
‘जी आर’ की तन्हा कलम लिखती रही(2)

जी आर कवियुर 
12 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

No comments:

Post a Comment