सज गई दीवार, तैयार दिल,
मंडप में फिज़ा में घुला प्रेम का सिलसिल।
मधुर रेशम की बुनाई,
चाँदनी में महकती हर कली।
(सज गई दीवार…)
आँसू बहें जैसे नदियाँ,
स्वप्न जागे मीठी बातों में।
भोर में प्यार के फूल खिलें,
फूलों की छाँव में दिल धड़कें।
(सज गई दीवार…)
मोती जैसी मुस्कान बिखरी,
मेघ की रौशनी में उजली।
चाँदनी की लय में संगीत बहे,
जीवन के रास्तों में संग-संग हम रहे।
(सज गई दीवार…)
जी आर कवियुर
01 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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