स्मृतियों के पल
बीतते जाते हैं जीवन के पल,
हवा में घुलते हैं सपनों के दल।
समय की धारा थमती नहीं,
राहें बदलतीं, कोई रुकी नहीं।
हँसी की चमक भी फीकी पड़े,
कदमों के निशान कहाँ रह गए।
वचन बिखरते हैं समय की उड़ान,
आवाज़ें खोतीं, बचता है सन्नाटान।
प्यार की रौशनी परछाईं बनी,
यादों में रंगत धीरे-धीरे घटी।
लौटकर आते नहीं वो दिन खास,
धड़कन सँभालो, यही है विश्वास।
जी आर कवियुर
08 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)
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