पहाड़, पहाड़, पहाड़, बादल में छिपा,
दिल की गहराई में गूँजे सुरा.
बर्फ गिरी तो सपने सो जाएं,
नदी गुनगुनाए, घाटी में बह जाएं।
देवदार बोले हवा की कहानी,
संग हवा गाए मधुर रवानी।
पक्षियों की बोली सुबह जगाए,
सूरज की किरणें संध्या सजाए।
चट्टानों में लिखी है गाथा पुरानी,
राहों में अंकित यादों की निशानी।
ठंडी हवा मन को सहलाए,
बरसात शिखरों से बहे जाए।
ऊँचाई में झलके गौरव महान,
प्रकृति का गीत बजे अनजान।
पहाड़, पहाड़, पहाड़, बादल में छिपा,
दिल की गहराई में गूँजे सुरा।
जी आर कवियुर
27 09 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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