(मुखड़ा)
आसमान से झरता जलधार,
गर्जन से गूँजता अपार,
नियाग्रा… तेरी महिमा,
अनंत में गाता मधुर तराना।
(अंतरा 1)
चाँदी का परदा चट्टान ढके,
प्रकृति का स्वर गगन में बजे,
इंद्रधनुष धुंध में सजे,
मन को छू ले, सपनों में बहे।
(अंतरा 2)
निरंतर बहती अमृत धार,
धरती पाए जीवन अपार,
शक्ति का प्रकाश जगमगाए,
नियाग्रा गीत अनंत सुनाए।
(मुखड़ा)
आसमान से झरता जलधार,
गर्जन से गूँजता अपार,
नियाग्रा… तेरी महिमा,
अनंत में गाता मधुर तराना।
जी आर कवियुर
01 09 2025
( कनाडा , टोरंटो)
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