झील किनारे की बेंच पर,
एक टोपी चुपचाप पड़ी है,
मालिक ने शायद भुला दी, या छोड़ दी,
जैसे आधा खुला हुआ एक द्वार।
झील ने प्रेम से धीरे पूछा,
“छोटी टोपी, दुखी मत हो,
तेरी गर्माहट ने कभी सपनों को सँभाला था,
अब तू यादों की रखवाली करती है।”
कवि बैठा सुनता रहा,
हृदय प्रतिध्वनियों से भरा हुआ,
भूली-बिसरी चीज़ें भी
विचारों में खिल उठती हैं।
चिंतन में, कवि टोपी को धीरे उठाता है,
और अनुभव करता है कि निस्तब्धता में भी
कहानियाँ साँस लेती हैं,
हर एक खोया पल जीवन का गीत बन जाता है।
जी आर कवियुर
05 09 2025
( कनाडा , टोरंटो)
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