भोर की ओस में हरियाली खिल उठती है,
पंछियों के गीत से मन में उमंग जगती है।
मंद समीर में धान की बाली लहराती है,
शीतल तट पर झरना कल-कल गाता है।
किसान के पसीने में भविष्य के सपने चमकते हैं,
पंख फैलाकर कौए आकाश में खो जाते हैं।
मिट्टी की सुगंध हृदय को महका देती है,
चित्र सा सुंदर खेत जगमगाता दिखाई देता है।
ओस की बूँदें पत्तों पर मुस्कुराती हैं,
तितलियाँ पंखों से रंग बिखेर जाती हैं।
प्रकृति की कृपा से फसल की आशा पूरी होती है,
धान के खेत में जीवन की कविता खिल उठती है।
जीआर कवियूर
23 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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