सुरहीन,
ताल और भावहीन,
मैं भटका,
टूटे तारों के साथ,
वीणा का दर्द फैलता है।
मौन से उठकर
एक राग पूर्ण खिल उठा,
सारी पीड़ा मिट जाएगी,
भोर की तरह उजाला आएगा।
टूटते स्वर में भी,
संगीत फिर से जन्म ले सकता है,
हृदय में सुबह खिल उठेगी,
कल आशाओं के पंखों पर उड़ेगा।
जी आर कवियुर
13 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)
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