Monday, September 15, 2025

हेमंत की रातों में

हेमंत की रातों में

हेमंत की संध्या संवरती हैं सिंदूर से,
फिकी चांदनी मुस्कुराती हुई खड़ी है।
हवा में गूँजते हैं भारत के गीत,
बर्फ से ढकी पर्वत की ढलानें सजती हैं।

इंतजार के अंत में वह आया,
सूरज की सुनहरी रोशनी बिखरी।
सपनों की फुसफुसाहट सुनने को,
वसंत झुककर सुनता है लालसा से।

जब फूल खिलते हैं, सपने पनपते हैं,
तारों की इंद्रधनुष में प्रेम चमकता है।
पत्तों में संगीत बुनता है,
हृदय के अनकहे शब्द धीरे-धीरे गूंजते हैं।

बूँदें मोती की तरह छतों को छूती हैं,
प्रेम के नोटों में राग गूंजते हैं।
काले बादल चाँद को आलिंगन करते हैं,
इस सुंदर रात में कविता जाग उठती है।

जी आर कवियूर
14.09.2025
 (कनाडा, टोरंटो)

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