Wednesday, September 3, 2025

नज़र

नज़र

नज़र खिलती है जैसे मुस्कान,
उसमें छिपा है प्रेम का गान।

चाँदनी जैसी कोमल धारा,
मन में जगाए मीठा सहारा।

झील की लहरों की हल्की थिरकन,
आँखों में जगती चाहत की धड़कन।

फूलों की खुशबू जैसी महक,
हृदय में रचती सुंदर झलक।

हर पल रहता समय से परे,
स्मृति में बसता नयनों के सरे।

जीवन पथ पर दीप समान,
वो नज़र बने अमर पहचान।

जी आर कवियुर 
03 09 2025
( कनाडा , टोरंटो)

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