Tuesday, September 23, 2025

संध्याकाश

संध्याकाश

संध्या की हवाओं में खुशबू बह रही है,
नीला आकाश मृदु प्रकाश से जगमगा रहा है।
तैरते हुए नाव के पत्ते पानी में नाच रहे हैं,
हल्की लहरें फैलती हैं, वर्षा के बादल मिलते हैं।

गिरे हुए काले पत्ते लय में झूल रहे हैं,
खजूर के पेड़ों में सुगंध फैल रही है।
पक्षियों का गीत कानों तक पहुँचता है,
ठंडी धरती में शांति छा रही है।

सुबह में तारे अपनी आँखें बंद करके सोते हैं,
पर्वत की चोटियाँ नीले आकाश से बातें करती हैं।
पेड़ मौन होकर सुनते हैं,
हृदय आराम से छाया में विश्राम करता है।

जीआर कवियूर 
23 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)

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