Wednesday, September 10, 2025

मधुर पीड़ा

मधुर पीड़ा

कल की यादें सपनों में ढलती,
आज की उम्मीदें जाग उठीं,
भविष्य के लिए सुर सजते,
मन में गूंजती मीठी तानें।

कलियों ने खिलकर छाँव बिछाई,
तितली मधु चखने आई,
पंखों से उसने नृत्य रचाया,
प्रेम की खुशबू फैलाई।

दूर गगन में चाँद मुस्काया,
अनुराग से हृदय भर आया,
मोह की लहरें दिल को छूतीं,
भावनाओं का सागर बह आया।

तुझमें डूबा मन रंगों से भरा,
आकाश सा अनंत सदा,
तेरी मुस्कान में गीत जन्मे,
मेरा प्यार रहे राग बन सदा।

जीआर कवियूर
10 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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