Tuesday, September 23, 2025

संघर्ष की सरगम

संघर्ष की सरगम

बरसों साथ जिए सभी,
सुनने को कान, देखने को नयन।
साँसों की धुन में नाक रही,
जीवन का हर अनुभव दिया भरण।

जिह्वा कई बार भटका देती,
शांत गगन को आँधी कर देती।
पर बिना स्वर के गीत कहाँ,
प्रेम की वाणी बोलें कहाँ?

साथ मिलकर सिखलाते हैं,
संघर्ष और दिल की कला बताते हैं।
दुख-सुख में चलती है राह,
जीवन आगे बढ़ता हर साँस।

तालियाँ चाहे मौन हो जाएँ,
प्रयास हमारे चमक दिखाएँ।
अंत में गूँज उठेगी यही,
“जीवन है एक संगीत सभा।”

जीआर कवियूर 
23 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)

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