Monday, September 29, 2025

गहराईयों में ख्वाब

गहराईयों में ख्वाब

नींद की लहरों में बहते,
बेचैन दिल में सपने उठते,
गहराइयों में खोज जारी,
उभरते स्वप्न हैं हमारी भारी।

भले ही उम्मीदें कम हों,
नया सवेरा फिर उभरें हों,
हर आँसू बनता बीज प्यार का,
खिल उठे फूल, मिलन के आकार का।

जीवन यात्रा बहती धारा सी,
समय और लहरें, स्वप्नों का किनारा सी,
मौन के क्षितिज में ले चले,
जहाँ सन्नाटा है, वहीं लक्ष्य भले।


जी आर कवियुर 
29 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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