मिरी आँखों में भीगी हुई आरज़ू सामने है
तेरी छवि हर घड़ी, हर जगह सामने है
रात के आँचल में चाँदनी मुस्कुराई
तेरी यादों की उजली लहर सामने है
सहर की किरण जब बदन को छुए
तेरा साया ही जीवनभर सामने है
आँगन में चम्पा ने ख़ुशबू बिखेरी
उड़ी तितलियाँ रंगों का घर सामने है
पुरब की हवा में चन्दन की महक
पर्वत पे मंदिर का स्वर सामने है
‘जी आर’ के लफ़्ज़ों में बस एक दास्ताँ
वो जो दिल में है, अब साफ़कर सामने है
जी आर कवियुर
17 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)
No comments:
Post a Comment