आज जब मैं जागता हूँ,
तेरा स्वर मेरे चारों ओर घुलता है,
इशारों में छुपा प्यार है,
बीते कल की यादें धीरे से दिल को छूती हैं।
चाँदनी में बहती खामोशियाँ,
आँखों में छिपा मीठापन धीरे-धीरे बहता है,
मृदु मुस्कान फैलती है उजाले की तरह,
समय के घाव धीरे-धीरे मिटते हैं।
बारिश में खिलते फूलों की तरह संगीत फैलता है,
पास-पास होना आकाश की छाया को पार करता है,
हर पल प्रेम की लय में नृत्य करता है,
ठंडी हवा में सपने फैलते हैं।
संध्या की किरणें फूलों पर गुजरती हैं,
जीवन की राहों पर प्रकाश फैलता है,
मीठापन धीरे-धीरे, कोमलता के साथ फैलता है,
अनंत प्रेम की ओर, संध्या का निद्रा समर्पित होती है।
जीआर कवियूर
23 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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