दिलों को सुकूँ का यही सिलसिला रहा है,
हक़ीक़त में जीना वही मसअला रहा है।
माँ की दुआ से मिला जो उजाला सदा,
पिता की नज़र से वही रास्ता रहा है।
शहद-सी मिठासें, घटा-सी नमी,
ग़मों को मिटाकर वही मरहला रहा है।
अँधेरों में जलता है दीपक सदा,
उजालों का संग ही बस आसरा रहा है।
नफ़रत टिके कब जहाँ की ज़मीं पर,
मुहब्बत का रिश्ता ही बस फ़ैसला रहा है।
"जी आर" के लफ़्ज़ों में पैग़ाम सुनो,
तमाम हक़ीक़त मोहब्बत ही रहा है।
जी आर कवियुर
09 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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