सुनहरी कली खिली भोर में,
चमक बिखरी हर कोने में।
पंखुड़ियाँ गुनगुनाती समीर संग,
खुशबू बहती मधुर तरंग।
तितली मंडराए रंग भरकर,
मैदान सजे सुंदर रहकर।
बूँद चमके पत्तों ऊपर,
आभा फैले नभ के भीतर।
पंछी गाएँ उजले साज,
सृष्टि सँवरे अनोखे राज।
मुकुट सजे प्रकृति शान,
अनमोल धरोहर जीवन गान।
जी आर कवियुर
17 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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