नदी किनारे उमंगें जाग उठीं,
खिलती टहनियाँ बसंत का स्वागत करें।
हवा की लय पर झूमते रहे,
कोयल की तान ने मन को छू लिया।
छाँव में खुली एक नयी सुबह,
लहरें लोरी गाकर आगे बढ़ीं।
रेत पर बूँदों ने खेल रचाया,
वृक्षों की छाया चुपचाप ठहर गई।
चाँदनी ने मुस्कान बिखेरी,
मन में सपनों की कली सजाई।
उड़ते पंछियों ने राह दिखलाई,
नदी किनारे सुंदरता गुनगुनाई।
जीआर कवियूर
10 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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