ज़िक्र (ग़ज़ल )
जब भी महफ़िल में तुम्हारा ज़िक्र हुआ,
मन के भीतर हर एक भाव का ज़िक्र हुआ।
तुम्हारा निगाह मिलाकर झुका लेना,
दिल मेरा रेशे–रेशे का ज़िक्र हुआ।
तेरी हँसी की खनक सुनते ही,
सारा जहाँ मेरे लिए का ज़िक्र हुआ।
तेरे बिना कोई पल भी अधूरा लगे,
हर लम्हा तेरा एहसास का ज़िक्र हुआ।
जी आर कहते हैं अब तो यही दुआ,
तेरी यादों में ही मेरा सारा जीवन का ज़िक्र हुआ।
जी आर कवियुर
08 09 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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