सूरज उगा, प्रतिज्ञाएँ खिलीं,
निशब्द फुसफुसाहट, प्रार्थनाएँ मिलीं।
हाथ जोड़, आँखें बंद करीं,
मन उड़ चला, शांति में भरी।
दीप झिलमिलाए, धूप घुमती,
हृदय जागा, आत्मा भी थिरकती।
भूख याद दिलाए, मन शांति पाए,
समय धीरे बहे, पूर्णता लाए।
गाने मधुर उठे, आशा बढ़ाए,
विश्वास मजबूत हो, प्रेम में समाए।
संध्या आई, अनुष्ठान पूरे,
कृतज्ञता हृदय में मीठे सुर जुड़े।
जीआर कवियूर
22 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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