संध्या की हवा आकाश को छूती है,
नरम पवन में पंछी उड़ते हैं।
सुनहरी किरणें ढलते प्रकाश में,
छायाएँ नाचती हैं धीरे-धीरे।
पत्तों में मधुर गीत गूँजते हैं,
बादल सपनों की ओर बहते हैं।
आकाश संध्या रंग में जगमगाता,
प्रकृति का संगीत हर तरफ बजता।
शांति भूमि पर उतरती है,
सितारे चमकते, रोशनी फैलाते हैं।
क्षण मधुर और सुहाने बने रहते हैं,
हवा मन को तरोताजा कर देती है।
जी आर कवियुर
17 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)
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