Tuesday, September 23, 2025

ग़ालिब नहीं मैं ( ग़ज़ल)

ग़ालिब नहीं मैं ( ग़ज़ल)

ग़ालिब नहीं मैं, दिल में संजोया एक ख्वाब,
तेरी आँखों में खिलते, रंग-बिरंगे सपनों की ग़ज़ल।

विरह का दर्द मिटाने को, चाँदनी मुस्कुराए,
हृदय की तारों को छूते हुए, संगीत बन जाए ग़ज़ल।

तितली रंग भर कर बहती, वसंत की मीठी खुशबू,
तेरी हँसी की नमी में घुल जाए मधुर ग़ज़ल।

सपनों की खुशबू फैलाकर, प्रेम की राहों में हवा,
आँखों के अश्कों में भी, प्रेम भरी हो जाए ग़ज़ल।

हर साँस में तेरी यादें, हर लम्हा तुझसे जुड़ा,
दिल की गहराई से उठती, बहती रहती ग़ज़ल।

चाँदनी रात में तेरा नाम, हवा भी गाए,
राहों में तेरे ख्वाब बिखरें, हर पल बोले ग़ज़ल।

जी आर के दिल से उठती, राग की मीठी सरगम,
प्रियतम, सिर्फ़ तुम्हारे लिए, हर धड़कन कहे ग़ज़ल।

जी आर कवियुर 
23 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

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