नीला झील और मेरा मन
नीला झील और मेरा मन
सांत स्वरों के तट पर ठहरा
हवा की छुअन दिल को छूती है
छायाएँ पानी में नृत्य करती हैं
आज, कन्नी मास की हवा मेरे देश से छूकर चली गई
फूलों की खुशबू हवा में बहती हुई
आकाश नीली आँखों में बरसता है
चमकती लहरें सपने बिखेरती हैं
नदी का प्रवाह दिल से मिलता है
सितारे रात के आँसुओं में चमकते हैं
चाँदनी पंखों की तरह फैलती है
सांझ के रंग दुनिया को भर देते हैं
मेरे भीतर कविता शांति से गूंजती है
जी आर कवियुर
17 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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