Tuesday, September 16, 2025

नीला झील और मेरा मन

 नीला झील और मेरा मन




नीला झील और मेरा मन

सांत स्वरों के तट पर ठहरा

हवा की छुअन दिल को छूती है

छायाएँ पानी में नृत्य करती हैं


आज, कन्नी मास की हवा मेरे देश से छूकर चली गई

फूलों की खुशबू हवा में बहती हुई

आकाश नीली आँखों में बरसता है

चमकती लहरें सपने बिखेरती हैं

नदी का प्रवाह दिल से मिलता है


सितारे रात के आँसुओं में चमकते हैं

चाँदनी पंखों की तरह फैलती है

सांझ के रंग दुनिया को भर देते हैं

मेरे भीतर कविता शांति से गूंजती है


जी आर कवियुर

 17 09 2025

(कनाडा, टोरंटो)

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