Sunday, September 21, 2025

ऊँचाई से शहर

ऊँचाई से शहर

मीनार की चोटी से नज़ारा देखा,
रेल की पटरी चमकी तारों सा।
इमारतें खड़ी, पत्थर जैसी,
छोटे लोग चलते राहों में अकेले।

आसमान ने ज़मीन को गले लगाया,
पहिये घूमते रहे, अनंत आवाज़ में।
खिड़कियां चमकी, साफ और उजली,
सपने छुपे रहे, उम्मीदें बनी रौशनी।

एक कोने में बहता मौन,
वृद्ध चेहरा हाथ फैलाए, खोई हुई गरिमा दिखा रहा।
ऊँचाई ने दिखाया चमक और गिरावट,
शहर कहता अपनी कहानियाँ, छोटी और बड़ी।

जीआर कवियूर 
20 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)


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