मैं राग हूँ, और तू रागिनी,
तेरे बिना अधूरी हर धुन बनी।
मैं रंग हूँ, और तू सत्यरंगी,
तेरे बिना न चमकी कोई कली।
मैं दीप हूँ, तू बाती बन जाना,
तेरे संग ही जगमगाती जिंदगी।
मैं साज़ हूँ, तू उसकी तान बनी,
तेरे बिना अधूरी पहचान बनी।
मैं शब्द हूँ, तू अर्थ बन जाना,
तेरी नज़रों से ही निकले कविता सभी।
तेरे इश्क़ की धुन में डूबा है "जी आर",
वो राग है, जो बजे बस तेरी संगिनी।
जीआर कवियूर
21 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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