Tuesday, September 2, 2025

पदचिह्न

पदचिह्न

रेत किनारे बने पदचिह्न,
लहरों ने आकर कर दिए क्षीण।

हवा की सरगोशी ने राह छुपाई,
बस यादें ही दिल में समाई।

पथ पर चलते रहे अनजाने,
चुपचाप पूरे हुए अफसाने।

बारिश की बूँदें जब धरती पर गिरीं,
नई कहानियाँ वहीं जन्मीं।

बीते समय की पगडंडियों पर,
मौन ही रह गया हर डगर।

सीढ़ियों पर गिरती परछाई जैसे,
जीवन बढ़ता चला हर क्षण वैसे।

जी आर कवियुर 
02 09 2025
( कनाडा , टोरंटो)

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