Thursday, October 30, 2025

दे गई दर्द, ( ग़ज़ल)

दे गई दर्द, ( ग़ज़ल)

दिल में बस गई याद, दे गई दर्द,
हर एक सांस में बात, दे गई दर्द।(2)

वो चुप रही तो सदा बन गई ख़्वाब,
ख़्वाबों की हर बरसात, दे गई दर्द।(2)

रातों में जागते तारे भी रोए,
तन्हाई की वो रात, दे गई दर्द।(2)

लब पर दुआ थी मगर नम हुई आँख,
हर लफ़्ज़ की सौग़ात, दे गई दर्द।(2)

मंज़िल मिली न सफ़र भी न पूरा,
राहों की वो सौग़ात, दे गई दर्द।(2)

अब भी महकता है दिल उस हवाओं में,
जो उसकी थी सौग़ात, दे गई दर्द।(2)

“जी आर” ने जब भी लिखी तेरी यादें,
हर शेर, हर जज़्बात, दे गई दर्द।(2)

जी आर कवियुर 
29 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

उसका चाँद (ग़ज़ल)

उसका चाँद (ग़ज़ल)

काली बादल की गुनगटों से झाँका मुखड़ा चाँद,
दिल की तन्हाई में फिर उजला हुआ उसका चाँद।(2)

रात की चुप्प में गूँजी उसकी मधुर हँसी उसका चाँद,
सपनों की गलियों में बिखरी उसकी मुस्कान उसका चाँद।(2)

चाँदनी की ओट में छुपा नूर का रंग उसका चाँद,
हवा के झोंकों में महका हर प्यार का संग उसका चाँद।(2)

सितारों की महफ़िल में बस वही दीखता उसका चाँद,
हर तरफ़ बिखरी यादें जैसे बहार का रंग उसका चाँद।(2)

आँखों की गहराई में बसे उसकी नज़रों के जादू उसका चाँद,
दिल के वीराने में खिल उठे जैसे गुलाब का फूल उसका चाँद।(2)

रूह की सुनसान राहों में भी उसका असर रहे उसका चाँद,
हर धड़कन में बसता नाम उसका, हमेशा तेरा असर रहे उसका चाँद।(2)

जी आर की मोहब्बत में यह ग़ज़ल समेटी,
इश्क़ की ताबीर में हर लम्हा बस रहा उसका चाँद।(2)


जी आर कवियुर 
30 10 2025
(कनाडा , टोरंटो)

होश खो बैठा (ग़ज़ल)

होश खो बैठा (ग़ज़ल)


मैं होश खो बैठा तेरी याद में,
झलकता है दिल मेरा आईने में। (2)

चाँदनी रात में तेरी बातें आईं,
हर सुकून मेरा तेरे नाम में छुपा।(2)

सन्नाटों में गूंजे तेरा हँसना,
हर एक लम्हा मेरा तेरी याद में डूबा।(2)

फूलों की खुशबू भी तुझसे मिली,
हवा में घुला है तेरी बातों का जादू।(2)

टूटे दिल को सजाया तेरा ख्याल,
माना कि तुझसे जुदा हूँ पर नाम तेरा।(2)

जी आर का नाम हर शेर में बसे,
मेरे गीतों में तेरा सुर अब तक गूंजे।(2)

जी आर कवियुर 
30 10 2025
(कनाडा , टोरंटो)

तुम्हारे लिए (ग़ज़ल)

तुम्हारे लिए (ग़ज़ल)

अगर इजाज़त हो तुम्हारे लिए,
दिल में बसेरा बना दूँ मैं तुम्हारे लिए।(2)

रात की खामोशियों में धड़कनें कहें,
हर साँस को दुआ दूँ मैं तुम्हारे लिए।(2)

चाँद भी शरमाए तेरी यादों में,
रात को रौशन बना दूँ मैं तुम्हारे लिए।(2)

तेरे बिन वीरान लगे ये जहाँ,
सपनों का गुलशन सजा दूँ मैं तुम्हारे लिए।(2)

हर दर्द भी मीठा लगे अब तो,
ज़ख़्म को मरहम बना दूँ मैं तुम्हारे लिए।(2)

दूर रहकर भी पास तू हर पल,
ख़ुद को फ़ना सा बना दूँ मैं तुम्हारे लिए।(2)

जी आर कहे, ये दिल अब बस यही चाहता,
ज़िंदगी को ग़ज़ल बना दूँ मैं तुम्हारे लिए।(2)

जी आर कवियुर 
29 10 2025

आँखों में नमी-सी थी क्यों (ग़ज़ल)

आँखों में नमी-सी थी क्यों (ग़ज़ल)

मेरी आँखों में नमी-सी थी क्यों,
तेरी यादों में तेरा चेहरा था क्यों।(2)

हर सवेरे में तेरी ख़ुशबू मिली,
रात भर दिल को तड़पता था क्यों।(2)

चाँद भी पूछे तेरी बातें मुझसे,
मेरे होंठों पे तेरा ज़िक्र था क्यों।(2)

सामने तू न था फिर भी हर घड़ी,
दिल को तेरे कदमों का एहसास था क्यों।(2)

ख़्वाब में तू मिली मुस्कुरा के यूँ,
नींद से उठ के मैं रोता था क्यों।(2)

जी. आर. कहे अब ये हक़ीक़त है साफ़,
प्यार में दिल मेरा तन्हा था क्यों।(2)

जी आर कवियुर 
 29 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Tuesday, October 28, 2025

तुलसी का तड़

तुलसी का तड़

सुबह की सुनहरी बूँदें चूमती हैं तड़ को,
गर्म हवा में तुलसी के पत्ते धीरे-धीरे झूलते हैं।
सदा जलती दीपक प्रार्थना की रोशनी बिखेरती है,
सारा घर शांति की महक से भर जाता है।

माँ की प्रार्थना से तुलसी को जीवन मिलता है,
बच्चे के छोटे हाथों से पानी पत्तियों पर गिरता है।
रात की शांति में देवता जागते हैं,
आंगन में डैंगफ्लाइज नृत्य करते हैं।

समय बीत जाए तब भी तड़ अडिग रहता है,
आत्मा की स्मृति का प्रतीक बनकर।
हर पत्ता अनकहे सत्य बोलता है,
हृदय पवित्र अनुभूति और शांति से भर जाता है।

जी आर कवियुर 
28 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

सदा साथ देना हे भगवान

सदा साथ देना हे भगवान

मैं तेरे चरणों में आया,
तूने मुझे आश्रय दिया।
सदा तेरी ही पूजा करूंगा,
सदा साथ देना हे भगवान(2)

तेरे नाम से जग में उजियारा,
तेरी कृपा से जीवन संवारा।
भक्ति में मन मेरा खो जाए,
तेरी मूरत में प्रेम समाए (2)

मैं तेरे चरणों में आया,
तूने मुझे आश्रय दिया।

हर सुबह तेरा नाम पुकारूँ,
हर रात तुझे ही याद करूँ।
सारे दुख तू दूर कर देना,
मुझको सदा अपने पास रखना (2)

मैं तेरे चरणों में आया,
तूने मुझे आश्रय दिया।

तेरे चरणों का धूल अमृत है,
तेरे वचनों में सच्चा सत्य है।
भक्ति की ज्योति जलाए रखना,
मेरे दिल में विश्वास रखना (2)

सदा तेरी ही पूजा करूंगा,
सदा साथ देना हे भगवान॥

जी आर कवियुर 
28 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

मौन में गीत भर गया,

मौन में गीत भर गया,

बीत गए फासले हवाओं में घुलकर,
दिल ने चुराए सपने, ख्वाबों में पलकर।
समय की यादें बन गईं गीत पुरानी,
मौन में गीत भर गया, छुपा हर कहानी...(2)

ओस की बूँदों सा सुबह का नूर,
हवा में लहराता, छुपा हर दूर।
नदी किनारे खोई लंबी परछाई,
सैकड़ों यादें बन गईं जुदाई।
बीत गए फासले हवाओं में घुलकर...(2)

सूरज की मुस्कान में सन्नाटा समाया,
अधरों की खामोशी दिल में गाया।
संध्या की रौशनी तट पर चमकती,
संगीत बनकर धड़कनों में बसती।
बीत गए फासले हवाओं में घुलकर...(2)

बदलता समय, कहानी बनकर गया,
सालों की ख्वाहिशें सपनों में समाया।
रात के तारे ज्यों मन में चमके,
मौन में गीत भर गया, हर पल गूंजे।
बीत गए फासले हवाओं में घुलकर...(2)

जी आर कवियुर 
28 10 2025
(कनाडा, टोरंटो))

ज़रा-सी बात (ग़ज़ल)

ज़रा-सी बात (ग़ज़ल)

ज़रा-सी बात पर क्यों तुम मुँह मोड़ लिए,
हम तो तुम्हारे ही थे, फिर क्यों छोड़ लिए(2)

तेरी यादों से दिल का रिश्ता जोड़ा था,
तुमने निगाहों के तीरों से वो तोड़ लिए।(2)

महफ़िल में आज फिर तेरी बातें चलीं,
लोग मुस्कराए, हम आँसू ओढ़ लिए।(2)

वो शाम आज भी यादों में जलती रही,
हमने तो ख़्वाब तेरे सीने से जोड़ लिए।(2)

जो दर्द तूने दिया, वो भी अपना लगा,
हमने तो ज़ख़्मों को ग़ज़लों में जोड़ लिए।(2)

“जी आर” कहे, मोहब्बत की यही रीत है,
कभी हँस लिए, कभी ग़म भी हम तो ओढ़ लिए।(2)

जी आर कवियुर 
27 10 2025
(कनाडा, टोरंटो))

हृदय की धुन”

हृदय की धुन”


दिल की तारों में धीरे-धीरे,
उठती है एक दुर्लभ धुन,
मधुर पीड़ा में गाई जाने वाली गीत,
लहरें भी इसका संगीत गुनगुनाती हैं। (2)

मन के गहराई में, खिलते फूलों की तरह,
प्रेम की नई रोशनी बिखरती है,
हवा में बहता स्पर्श सा,
स्मृतियों में सुख भरा बहता है। (2)

दिल की तारों में धीरे-धीरे,
उठती है एक दुर्लभ धुन,
मधुर पीड़ा में गाई जाने वाली गीत,
लहरें भी इसका संगीत गुनगुनाती हैं।

रात की खामोशी में मिलते संगीत के पल,
सबेरे, चिड़ियों के गीत जैसे सुनाई देते हैं,
हृदय जागता है, गाता गहन अनुराग,
स्वप्निल आंखों में प्रतिबिंबित कोमल भावना।(2)

दिल की तारों में धीरे-धीरे,
उठती है एक दुर्लभ धुन,
मधुर पीड़ा में गाई जाने वाली गीत,
लहरें भी इसका संगीत गुनगुनाती हैं।

जी आर कवियुर 
28 10 2025
(कनाडा, टोरंटो))

समय की सरगोशियाँ

समय की सरगोशियाँ 

यादों को संभालना नहीं, उन्हें जीना है,
दिल की नरम हवा में उनका जन्म होता है।
आँखों की नमी में वे चमक उठती हैं,
सांझ की ख़ामोशी में क्षितिज में खो जाती हैं।

सुगंध भरी बयार में वे नाच उठती हैं,
पत्तों के गीतों में वे छिप जाती हैं।
नज़रों की शांति में वे विश्राम करती हैं,
चाँद की बातें सितारे सुनते हैं।

वे पल जिन्हें समय भी छू नहीं पाता,
प्रेम की प्रतिध्वनियों में वे बस जाती हैं।
दृश्यों में बाँध न सके कोई वह मिठास,
जीवन के क्षणों में वे अमर हो जाती हैं।

जी आर कवियुर 
28 10 2025
(कनाडा, टोरंटो))

ग़ज़ल - "तेरी यादों ने मुझे सोने न दिया"

ग़ज़ल - "तेरी यादों ने मुझे सोने न दिया"


तेरी यादों ने मुझे सोने न दिया
सांसों में तेरी महक जीने न दिया (2)

हर सुबह तेरी आहट से जागे ये दिल
रात भर तेरा ख्याल सीने न दिया (2)

तेरी आँखों की चमक में खो गया मैं
किसी और रौशनी ने मुझे देखे न दिया(2)

ख़ामोशियों में भी तेरी आवाज़ रही
दर्द ने फिर भी किसी को चीने न दिया(2)

तेरे जाने के बाद भी महका है जहाँ
तेरी चाहत ने मुझे मुरझाने न दिया(2)

तन्हाई के सफर में भी मुस्कुराता रहा
क़लम ने जी.आर. को रोने न दिया(2)

जी आर कवियुर 
27 10 2025
(कनाडा, टोरंटो))


Sunday, October 26, 2025

मधुर सा सुर।

मधुर सा सुर।

महकते जंगल में मैं तुम्हें याद करता,
तुम देते हो यह मधुर सा सुर।
क्या है यह दक्षिण की हवा, या
संगीत की स्वर लहरियाँ softly बताती हैं?

इंद्रधनुष से भरा आसमान,
तुम फैलाते हो रंग और गाते हैं।
नदी की कल-कल की आवाज़ सुनता हूँ,
सपनों में भी ये दृश्य दिखाई देते हैं।

छोटे पक्षियों के गीतों में,
मैं तुम्हें पाता हूँ, सामने खड़े।
दिल में भरा यह आनंद,
तुम्हारी याद में हृदय चमकता है।

जी आर कवियुर 
26 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

आंसुओं की मिठास (गीत)

आंसुओं की मिठास (गीत)

आँखों से बहतीं मोती-सी बूंदें
मीठा दर्द लाती हैं,
तुम्हारा पास न पता चले,
सपनों में ही छुपा है प्यार का रंग।(2)

तुम्हारी आँखों में खिलते हो,
दिल मेरा खोजे तुम्हें हर ओर,
तुम्हें न पता चले, बिना कहे चले जाओ
यादों में बस तुम ही रहो।(2)

आँखों से बहतीं मोती-सी बूंदें
मीठा दर्द लाती हैं,
तुम्हारा पास न पता चले,
सपनों में ही छुपा है प्यार का रंग।

तुम्हारे लिए चाँद गाता है,
दिल में भरते गीतों की धुन,
हल्की शाम की हवा में छूकर,
तुम मेरी रूह में बस जाओ।(2)

आँखों से बहतीं मोती-सी बूंदें
मीठा दर्द लाती हैं,
तुम्हारा पास न पता चले,
सपनों में ही छुपा है प्यार का रंग।


जी आर कवियुर 
26 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

सपने ने पंख फैलाया (गीत)

सपने ने पंख फैलाया (गीत)


चांदनी बरसी फिज़ाओं में
सपने ने पंख फैलाया
संगम गया कोयलों ने
ओस की बूंदें मुस्कुराए (2)

ठंडी हवाओं में प्यार ने धीरे मिलन किया,
सर्दियों ने फुसफुसाया, दिल थिरक उठे।
हर साँस में भीतर आग फैल गई,
दिलों में मोहब्बत की खुशबू महक गई।(2)

चांदनी बरसी फिज़ाओं में
सपने ने पंख फैलाया
संगम गया कोयलों ने
ओस की बूंदें मुस्कुराए

मृदु हवा ले आई सर्दी पास,
सुनहरी पत्तियाँ नाचें, खुशियों के साथ।
जब हवा ने हमारे प्रेम गीत गाए,
हर रंग में हम छुप गए, जैसे छाए।(2)

चांदनी बरसी फिज़ाओं में
सपने ने पंख फैलाया
संगम गया कोयलों ने
ओस की बूंदें मुस्कुराए

सूरज की नरम, गर्माहट भरी किरण में,
हर स्पर्श से मन ने जागरूकता पाई।
नदियों में बहा प्रेम, स्वतंत्र और प्यारा,
प्रभात की रोशनी में दिलों ने झूम कर मनाया।(2)

चांदनी बरसी फिज़ाओं में
सपने ने पंख फैलाया
संगम गया कोयलों ने
ओस की बूंदें मुस्कुराए

शाश्वत प्रेम के ऋतु में,
सपनों ने रंग भरे आकाश में।
चाँदनी से लेकर सूरज की किरण तक,
प्रकृति ने गाया हमारा अनंत प्रेम का गीत।(2)

चांदनी बरसी फिज़ाओं में
सपने ने पंख फैलाया
संगम गया कोयलों ने
ओस की बूंदें मुस्कुराए

जी आर कवियुर 
26 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)



“कोहरे में तुमसे मुलाक़ात हुई”

“कोहरे में तुमसे मुलाक़ात हुई”

कोहरे में तुमसे मुलाक़ात हुई,
ख़ामोश सुबह मुस्कुराई नई।
तेरी आँखों में इक सपना था,
दिल में सुरों की रौशनी छाई। (2)

हवा ने छूकर गीत सुनाया,
यादों ने मन को भींगाया।
चाँदनी बन तू उँगलियों पर आई,
प्यार का सागर बहता गया। (2)

कोहरे में तुमसे मुलाक़ात हुई,
ख़ामोश सुबह मुस्कुराई नई।
तेरी आँखों में इक सपना था,
दिल में सुरों की रौशनी छाई।

फूलों पे ओस की बूँद बनकर,
धीरे कहा “मैं तेरे संग हूँ”।
दिल की राहों में तुम रह गए,
बिन बोले प्यार का रंग छा गया। (2)

कोहरे में तुमसे मुलाक़ात हुई,
ख़ामोश सुबह मुस्कुराई नई।
तेरी आँखों में इक सपना था,
दिल में सुरों की रौशनी छाई।

जी आर कवियुर 
26 10 2025
(Canada, toronto)

“कोहरे की ठंडक में”

 “कोहरे की ठंडक में”

कोहरे की ठंडक में खेत चमक उठे,
चाँद मुस्काया, नदी धीरे बह चली।
हवा की लय पर सुर बरसे,
फूलों की खुशबू मन में बस चली।

रास्ते पर अकेली सी धारा,
ओस की बूँदों ने सब सँवारा।
पंछियों की तान से भोर जगी,
पेड़ों ने यादों की छाँव बिछाई।

आसमान ने सपनों को रंग दिया,
धूप ने पत्तों पे हँसना सिखाया।
सोचों में सन्नाटा गाने लगा,
समय कहानी बन बह चला।

जी आर कवियुर 
26 10 2025
(Canada, toronto)

Saturday, October 25, 2025

आख़िरी धुआँ

 आख़िरी धुआँ 



धुआँ आख़िरी, कहीं खो गया,

गिलास का क़तरा भी गिर पड़ा।

निगाहें भटकीं शहर की रौशनी में,

कभी जो सपने थे, अब धुंधला पड़ा।


बारिश सी गूँजें मन में उठीं,

चाँदी सी रोशनी सिखाए नई राहें चलना।

हवा से पूछा उसने ख़ामोशी में,

वक़्त कहाँ गया, कौन सुना?


पुरानी आग, नया सर्दपन — दोनों जलते हैं,

हर नाम में वक़्त की साँस बसती है।

कदम बहकते हैं बदलती राहों में,

ख़ामोशी फिर वही तराना कहती है।


जी आर कवियुर 

25 10 20

25

(कनाडा, टोरंटो)

तेरे बिना। (ग़ज़ल)

तेरे बिना। (ग़ज़ल)

तेरे बिना कहीं जाना मुमकिन नहीं,
हर ख़्वाब भी खिला नहीं तेरे बिना(2)

तेरी यादों में मैं खो जाता हूँ,
तेरी हँसी के बिना मन खाली है तेरे बिना(2)

चाँदनी रातों में मैं तेरा नाम लेता हूँ,
तारे भी पूछते हैं, तू कहाँ है तेरे बिना (2)

दिल की यात्रा अधूरी लगती है,
हर रास्ते में मैं तेरा इंतज़ार करता हूँ तेरे बिना(2)

सपनों में ही तू खिलता है,
हर साँस में तू मेरे साथ है तेरे बिना(2)

जी आर कहते हैं,
तेरे बिना यह जिंदगी पूरी नहीं तेरे बिना(2)

जी आर कवियुर 
25 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Friday, October 24, 2025

कविता - हैलोवीन, भूत और कुमाट्टी

 प्रस्तावना 


कविता - हैलोवीन, भूत और कुमाट्टी



त्यौहार हमारे जीवन को अलग-अलग तरीकों से जगमगाते हैं—

सोने की दीपक, खेलती परछाइयाँ, गीत और नृत्य।

भारत में दीवाली से लेकर कनाडा में हैलोवीन तक,

रिवाज भले ही अलग हों अलग-अलग जगहों पर,

खुशी, प्रेम और स्नेह हर दिल में समान रूप से बहते हैं।


हैलोवीन, भूत और कुमाट्टी


दीवाली चमके सोने की रौशनी में,

अँधेरा हारे, उजाले की कहानी में।

घर भर जाएँ हर्ष और प्यार से,

सपने जागें, दिल खुशियों के साथ।


हैलोवीन की रात, कनाडा की गलियों में,

कद्दू के दीपक झिलमिलाएँ सजीली।

बच्चों की हँसी, परछाइयों का खेल,

पूर्वजों के आशीर्वाद जगाएँ मेल।


बंगाल में, भूत चतुर्दशी की रात,

पूर्वजों की स्मृति जगाए प्रकाश साथ।

दीपक झिलमिलाएँ, कहानियाँ सुनाएँ,

स्नेह और श्रद्धा घरों में छाएँ।


तमिलनाडु में, आड़ी गीत गूँजे,

भक्ति और विश्वास दिलों में भूँजे।

केरल में, ओणम की खुशियाँ फैले,

कुमाट्टी के मुखौटे नृत्य में खिले।


सारी दुनिया में, त्यौहार मिल जाएँ,

दिलों में रौशनी और प्रेम पल जाएँ।

रिवाज अलग हों, पर स्नेह वही रहे,

अमर प्रकाश हर दिल में जगे।


जी 

आर कवियुर 

24 10 2025

(कनाडा, टोरंटो)

याद और जाम (ग़ज़ल)

याद और जाम (ग़ज़ल)

याद ने मुझे सताया,
जाम ने भी सताया(2)

हर रात तेरी यादों में खो गया,
हर जाम में तेरी तस्वीर सताया(2)

मोहब्बत की राह में तनहा चला,
हर कदम पर तेरी याद सताया(2)

संगीत की ताल में हर सुर गूँजा,
हर धुन में तेरी हँसी सताया(2)

तेरी आँखों में जो देखा,
हर पल में तेरा जादू सताया(2)

जमाने को क्या खबर,
जी आर का दिल तुझ पे सताया(2)

जी आर कवियुर 
23 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

मदिरा की बरस (ग़ज़ल)

मदिरा की बरस (ग़ज़ल)

तेरी बस्ती में मदिरा बरसता है,
तेरी मस्ती में लोक तरसता है।

जाम से जाम मिलते रहे इस राह में,
तेरी याद का नशा भी साथ बहता है।

हर सुर में तेरा नाम गूंजता है,
हर सांस में तेरी खुशबू बहता है।

मधु जैसी तेरी बातें मुझमें घुलती हैं,
हर दिल में तेरी याद बहता है।

मोहब्बत की ये रातें तनहा नहीं हैं,
तेरी हँसी में जहाँ बहता है।

संगीत की हर ताल पे तेरा असर है,
हर सुर में तेरी मस्ती बहता है।

इस दिल की प्यास बुझाए नहीं कोई,
जी आर का दिल फिर भी तुझ पे रहता है।

जी आर कवियुर 
23 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

तेरी याद उभर आई (ग़ज़ल)

तेरी याद उभर आई (ग़ज़ल)

जाम से जाम जब टकराई
अंजाम में तेरी याद आई (2)

शराब भी तेरी आँखों सी थी
पीते ही रगों में आग आई(2)

लबों की ख़ुशबू, ग़ज़ल का सफ़र
हर सुर में बस तेरी बात आई(2)

कभी तू नज़रों में ढलकर बसी
कभी ख़्वाब बन के दिल में समाई(2)

वो आई तो महफ़िल महक उठी
हर साँस में जैसे जान आई(2)

ये ग़ज़ल लिखते हुए जी आर को
तेरी याद फिर से उभर आई(2)

जी आर कवियुर 
23 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)


अधूरी बात (ग़ज़ल)

अधूरी बात (ग़ज़ल)

अधूरी बात अधूरी ही रहने दो,
ये राज़ अधूरा रहने दो(2)

नज़र से नज़रों की बात हुई,
लबों की खामोशी रहने दो(2)

वो चाँद अभी पर्दे में है,
उसकी रोशनी को रहने दो(2)

दिल की सदा को सुनने दो,
इन सांसों का सुरूर रहने दो(2)

मिलन की रात अभी अधूरी है,
ख़्वाबों का सफ़र यूँ ही रहने दो(2)

‘जी आर’ ने भी अब सीखा है,
हर दर्द को शेर में रहने दो(2)

जी आर कवियुर 
23 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

“बाँस के जंगल में”

“बाँस के जंगल में”

बाँस के जंगल में दिन की रोशनी चमके,
आधे छाए पेड़ शांति से खड़े मुस्कुराए।

नदी अपनी मधुर धुन गाती,
करुणा की मुस्कान हर मन को भाती।

हरे बगिचों में फूल फैलाते मीठी खुशबू,
सूरज की किरणें चिड़ियों के पंखों पर चमकें।

तुलसी की पत्तियाँ मन को महकाएँ,
हवा में बिखरी खुशबू हृदय को छू जाए।

नाव के पानी में लहरें नाचती हैं,
मिट्टी की पगडंडियाँ मन को बहलाती हैं।

रात में आकाश तारों से जगमगाए,
बाँस के जंगल में सपने गाने गाए।

जी आर कवियुर 
23 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

“भक्ति की छाया में”

 “भक्ति की छाया में”

भक्ति की छाया में हृदय जगमगाए,
दिव्य प्रकाश में विचारों का फूल खिले।

नामों की मधुरता कानों में बहे,
नेत्रों में दीपक प्रेम से जले।

मौन प्रार्थना में विचार डूब जाएँ,
करुणा की लहरों में दुख दूर हो जाए।

तुलसी की पत्तियों में आशा खिले,
मुद्रित हाथों में फूल खिल उठे।

देव का नाम जब उच्चारित हो,
अंतर्मन में आनंद और शांति फैल जाए।

नीला आकाश सबका साक्षी बने,
उसकी असीम करुणा से जग जगमगाए।

जी आर कवियुर 
23 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Thursday, October 23, 2025

“अनुराग गीत”

“अनुराग गीत”

तेरी आँखों में चाँदनी झिलमिलाए,
मौन में स्वर कोई जाग उठे।

हवा सुनहरी फुहारें लाए,
दिल में मधुर फूल खिल उठे।

सपने गहराई में तैर रहे,
आशा की लहरें बहती जाएँ।

बादल छूकर खुशबू लुटाएँ,
ठंडी राहों पर कदम गुनगुनाएँ।

रंग मिलें, समय मुस्कराए,
प्यार के बोल सुर बन जाएँ।

साँझ की साँस जब थम जाए,
गीत बन जाए प्रेम की छाँव।

जी आर कवियुर 
23 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

“प्रेम की नींद”

“प्रेम की नींद”

नींद की राह में
मुलायम स्पर्श बह रहा है
आँखों में नीली परछाइयाँ
होंठों पर मधुर मौन

हवा में घुला सुगंधित खुशबू
दिल की धड़कन जाग उठी
तेरा आगमन रोशन करेगा रात
सपने सहज रूप से आएँगे

तेरी मौजूदगी हर पल भर देती है
यादें मेरे दिल को भीगाती हैं
छायाओं में तुझको ढूँढता हूँ
प्रेम की चाँदनी नृत्य करती है

जी आर कवियुर 
22 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Wednesday, October 22, 2025

राह में (ग़ज़ल)

राह में (ग़ज़ल)

आते जाते ज़िंदगी की राह में,
ज़िंदा दिलों का नाम है राह में(2)

हर कदम पर मिला हमें कोई पैग़ाम है राह में,
कभी ग़म, कभी मुस्कान का इम्तिहान है राह में(2)

दिल के अरमान लुटे मगर ये ग़ुमाँ रहा,
कहीं न कहीं तो इनायत का सलाम है राह में(2)

सफ़र की धूल में भी चमकते हैं कुछ निशाँ,
शायद किसी का छोड़ा हुआ इनाम है राह में(2)

जो ढूँढता रहा प्यार को सच्चे एहसास से,
वो जान ले कि यही असल मुक़ाम है राह में(2)

‘जी आर’ अब हर सफ़र में मिलता है सुकून,
तेरा ख़याल ही मेरा पयाम है राह में(2)

जी आर कवियुर 
22 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

नीला चाँद(गीत)

नीला चाँद(गीत)

नीला चाँद
नीला चाँद
तुम्हें कैसे
हमेशा खिलते देखा जाता है (2)

हमारा प्यार तुमने कभी देखा?
आँखों की खामोशी तुमने सुनी?
उसकी मौन मुस्कान जब खिला,
मेरे दिल में संगीत मधुर हो गया (2)

नीला चाँद
नीला चाँद
तुम्हें कैसे
हमेशा खिलते देखा जाता है

तुम हो गवाह उस पहले पल के,
दिलों की धड़कनें क्या जान पाएंगी?
उसकी हँसी अब भी गूंजती है,
हवा में क्या तुम उसे महसूस कर सकते हो?(2)

नीला चाँद
नीला चाँद
तुम्हें कैसे
हमेशा खिलते देखा जाता है

क्या हम फिर कभी मिलेंगे?
क्या वह भी इन किनारों पर मिल पाएगी?(2)

नीला चाँद
नीला चाँद
तुम्हें कैसे
हमेशा खिलते देखा जाता है

जी आर कवियुर 
22 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

“समय की करुणा”

“समय की करुणा” 

जो सपने बड़े लगे थे कभी,
कुछ पलों में ही खो गए,
छोटे से लम्हे बस रह गए,
दिल में अमर होकर सो गए।

जब समय ने छुआ कोमलता से,
स्मृतियाँ मोती बन चमकीं,
आधी बातें मौन में खो गईं,
बाकी हवा में बिखर गईं।

अहंकार रे, समझ ले ये बात —
कल शायद आ भी न पाए,
जीवन की राह छोटी सी है,
चलते-चलते याद बन जाए। 

जी आर कवियूर
22 10 2025

Tuesday, October 21, 2025

तन्हाई का आलम” (ग़ज़ल)

तन्हाई का आलम” (ग़ज़ल)

तन्हाई की रात थी, दिल भी अकेलता था,
यादों का सहारा था, अकेला ही अकेला था(2)

तेरे बिना वो चाँद भी कुछ धुंधला-सा लगता था,
सितारों की महफ़िल में तेरा ही नूर जलता था(2)

हवा में तेरी ख़ुशबू थी, सन्नाटा भी कहता था,
हर सांस तेरी याद में एक नज़्म-सा बहता था(2)

वो लम्हे तेरे साथ के अब ख़्वाबों में मिलता था,
हर ख्वाब की तह में भी बस तेरा असर रहता था(2)

जब सन्नाटा गहराता था, दिल आहें भरता था,
हर लफ़्ज़ में, हर सुर में तेरा नाम गूंजता था(2)

जी आर के दिल में अब भी तेरा ही आलम था,
हर दर्द में, हर ख़ुशी में बस तू ही शामिल था(2)

तेरे लिए (ग़ज़ल)


 तेरे लिए (ग़ज़ल)

कैसे फटका नैना तेरे लिए
आंसू बर आईं यादें तेरे लिए(2)

चाँदनी भी अब फीकी लगती है
तेरी यादों की रोशनी तेरे लिए(2)

गुलों की महक भी अब सुनी-सुनी
महकती खुशबू सारी तेरे लिए(2)

दिल की हर धड़कन सिर्फ़ तेरे नाम
हर सांस मेरी कुर्बां तेरे लिए (2)

रातें कटती हैं तन्हाई में खामोश
हर जज़्बात छुपा लिए तेरे लिए(2)

सपनों की दुनिया में भी बस तुम
हर ख्वाब सजाए तेरे लिए (2)

जी आर ने लिखी ये दास्तान
प्यार की हर लकीर बस तेरे लिए(2)

जी आर कवियुर 
19 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

मेरा मन जागा (गाना)

मेरा मन जागा (गाना)

धीरे से लहराता, मेरा मन जागा,
सपने उठे धीरे-धीरे भीतर।
अनकही प्रेम की लहरें फैलीं,
सुख का आंगन अब खुला(2)

जब तुम जीवन में संग आए,
सवेरे की तरह मुस्कान बरसी।
बचे हुए आँसू अब जाग गए,
मधुरता बहती है जहाँ तुम हो(2)

खुशी की धुन भरी हृदय में,
दिन की शांति में भी गूँजती।
नज़रों में हल्की लालसा चमकी,
यादें बरसीं नरम झरनों सी(2)

जी आर कवियुर 
19 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

यादों का सांझ"

यादों का सांझ"

मैं, आपका दादाजी, कभी बन गया
हाथी, घोड़ा,
चरवाहा, जोकर,
सिर्फ खेलने के लिए, मेरे नन्हे साथी के साथ।

मैंने तुम्हें अपनी पीठ पर उठाया हाथी की तरह,
खेतों में दौड़ा घोड़े की तरह,
कल्पनाओं के भेड़ियों का पीछा किया,
जादुई गीत गाए,
सूरज और तारों के नीचे हम हँसते रहे।

अब सीमाएँ मद्धम और शांत पड़ी हैं,
जिस दुनिया को मैंने बनाई, वह दूर चली गई।
खिलखिलाती चेहरा अब झुर्रियों भरा,
फिर भी यादें मेरे बिस्तर के चारों ओर नाचती हैं।

मेरी आँखें अब आकाश की ओर नहीं उठतीं,
नदी और खेत दूर हैं।
कोई छोटे हाथ मुझे नहीं पकड़ते,
सिर्फ परछाइयाँ ठहरी हैं,
और मौन ही भर गया है।

हाथ में एक पुराना घड़ी
दिनों से शांत है।
मन में कोई धीरे पुकारता है —
"दादाजी, उठो…"

लेकिन मैं आँखें खोलकर बादलों की ओर देखता हूँ,
धीरे मुस्कान के साथ, हल्की साँस —
जैसे बचपन के खेलों की गूँज हो,
मैं धीरे-धीरे चुप्पी में चला जाता हूँ,
सनातन शांति की ओर।


जी आर कवियुर 
21 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

Saturday, October 18, 2025

“तेरी यादों की छाया में”

“तेरी यादों की छाया में”

विरह की छाया में मैं,
मौन होकर तुम्हें याद करता हूँ।
स्मृतियाँ चारों ओर उड़ती हैं,
दिल के भीतर धीरे-धीरे बस जाती हैं।

फूल भी तुम्हारी मुस्कान जैसे,
छुपे हुए पलों में सच बयां करते हैं।
हवा में तुम्हारी यादों की खुशबू फैलती है,
मन में एक पीड़ा धीरे-धीरे उठती है।

जहाँ तुम नहीं हो वहाँ,
मैं तुम्हें ढूँढते हुए चलता हूँ।
रात की छाया में भी,
तुम्हारी यादें हमेशा मेरे साथ रहती हैं।

जी आर कवियुर 
18 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)


ग़ज़ल — “नज़र में तू ही तू”

ग़ज़ल — “नज़र में तू ही तू”


नज़र में तू ही तू, दिल में आग भी तू ही तू,
हर सांस में खुमार, हर राग भी तू ही तू(2)

शब की ख़ामोशी में, तेरी सदा गूंजती रही,
मेरा दिल हो गया बेपरवाह भी, तू ही तू(2)

जला के रूह में यादों की चाँदनी रख दी,
हर दर्द में छुपा इकरार भी, तू ही तू(2)

तन्हाई ने लिखा नाम तेरा हवाओं में,
हर धड़कन में छुपा पैग़ाम भी, तू ही तू(2)

तारों ने छोड़ दीं राहें सभी सुबह होते,
रात भर मेरा इंतज़ार भी, तू ही तू(2)

जी आर कह गया, अब तो मेरी दुनिया वही,
हर गीत में बस इज़हार भी, तू ही तू(2)

जी आर कवियुर 
18 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

कविता - धरती का कल

कविता - धरती का कल
प्रस्तावना 

यह कविता धरती के साथ हमारे नाज़ुक रिश्ते की याद दिलाती है।
हर पत्ता, हर नदी, हर साँस एक अमूल्य वरदान है — जिसे हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए सँभालना है।
यदि हम आज संवेदना से जीएँ, तो हमारे बच्चे जीवन से भरी दुनिया पाएँगे, न कि विनाश से।
आओ हम प्रेम और उत्तरदायित्व को अपना धर्म बनाएँ,
क्योंकि यही हैं कल की धरती की जड़ें।

कविता - धरती का कल

पत्ते हँसें, न सूखें कभी,
नदियाँ बोलें, रुकें न सभी।
हवा बहे, सुगंध लिए,
मेघ बरसें, स्नेह पिए।

वन गाएँ, जीवन खिले,
भोर जगे, सपने मिले।
पर्वत सँभाले धरती का मान,
सागर सुनाए प्रकृति की तान।

कदम रखें हलके निशान,
बीज बनें दया की जान।
हाथ मिलें, अम्बर सजे,
प्यार हमारा सदा बहे।

जी आर कवियुर 
18 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

Friday, October 17, 2025

तेरी तलाश में। (ग़ज़ल)

तेरी तलाश में। (ग़ज़ल)

दिल को पाया न कभी तेरी तलाश में,
खुद को खोता रहा तेरी तलाश में।

रात जागी तो उजाला उतरता गया,
दिल धड़कता रहा तेरी तलाश में।

हर सोच में बस तेरा ज़िक्र रहा,
साँस महकती रही तेरी तलाश में।

राह चलते हुए भी ठहर सा गया,
कदम रुकते रहे तेरी तलाश में।

जुदाई की आग में जलते हुए भी सुकून,
दिल मुस्काता रहा तेरी तलाश में।

जी आर कहे अब यही है मंज़िल,
रब से मिलता रहा तेरी तलाश में।


जी आर कवियुर 
17 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

Thursday, October 16, 2025

ग़ज़ल: दिल से दिल एक बस

ग़ज़ल: दिल से दिल एक बस

दूर कितने ही हो बस,
दिल से दिल एक बस(2)

तेरी यादों का आलम,
रात की सान्झ में बस(2)

हर नज़र ढूंढे तुझे ही,
ख़्वाब में, नींद में बस(2)

ज़िन्दगी की किताब में,
तेरा ही नाम है बस(2)

रह गई है जो कमी,
वो तेरी बात थी बस(2)

मिल न पाए अगर भी,
रूह से रूह एक बस(2)

‘जी आर’ कहे मोहब्बत,
कह सकी न कुछ, बस(2)

जी आर कवियुर 
15 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

तन्हा ख़यालों में (ग़ज़ल)

तन्हा ख़यालों में (ग़ज़ल)

तेरी नज़रों की ख़ुशबू से महके फ़ज़ा,
हम वहीं रात-दिन जलते रहे(2)

तेरे कदमों की आहट जो आई कभी,
हम दुआ बनके गिरते रहे(2)

हर ख़त में तेरी तसवीर उभर आई,
हम हर सफ़्हे पे सजते रहे(2)

तेरे जाने की आहट ने तोड़ा सुकून,
हम ख़ुद से ही लिपटते रहे(2)

हर ग़म को तेरे नाम से जोड़ा हमने,
तेरे बिन भी तुझे कहते रहे(2)

जी आर की ग़ज़ल में तेरा ही असर,
हम तेरी याद में लिखते रहे(2)

जी आर कवियुर 
16 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Wednesday, October 15, 2025

ग़ज़ल – "दीवाली की रात"

ग़ज़ल – "दीवाली की रात"

तेरे आने की ख़ुशबू थी उस दीवाली की रात,
मन में जगी थी फिर आशा उस दीवाली की रात(2)

दीयों के संग जब तेरी हँसी झिलमिलाई थी,
दिल ने लिखा था वो पंक्ति उस दीवाली की रात(2)

तू पास थी तो जग सारा जैसे थम-सा गया,
स्वप्नों में रंग भरे प्यारा उस दीवाली की रात(2)

तेरी बातों में मीठी सी रुनझुन बजती रही,
गीतों में ढल गई धारा उस दीवाली की रात(2)

अब भी जलते हैं दीपक पर तू नहीं पास है,
सूनी लगी हर उजियारा उस दीवाली की रात(2)

जी आर के मन में अब भी वो दीप जलते हैं,
यादों में फिर तेरा चेहरा उस दीवाली की रात(2)

✍️ जी आर कवियुर 
15 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

प्रिय राग

प्रिय राग

जब मैं प्रिय राग सुनता हूँ,
मन में नए, सुंदर सपने जाग उठते हैं।

हवा में नाचते गुच्छों वाले फूलों की तरह,
मेरा हृदय धीरे-धीरे गाता है।

छायाओं में छुपी यादें
क्षणों में लौट आती हैं।

चंदन की खुशबू की तरह,
दुख आँखों से धीरे-धीरे दूर हो जाते हैं।

प्रेम का संगीत, कोमल देखभाल से भरा,
मौन में स्वर्गीय लयों में गाता है।

मेरा हृदय उमड़ता है,
हर साँस आनंद की ओर मुड़ती है।

जी आर कवियुर 
14 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

चंदन की खुशबू

चंदन की खुशबू

चंदन की हवा धीरे-धीरे आई,
हृदय में सोई यादों को जगाती हुई।

ठंडी सुबह की तरह,
सभी विचार आत्मा में बहते हैं।

पगडंडी पर फूलों की माला सजी,
सपनों की खुशबू से वातावरण भरती।

मौन के विराम में,
प्रेम के रंग उभरते और विलीन होते हैं।

बिना कोई निशान छोड़े, पल आते हैं,
रंग मन में खिल उठते हैं।

हृदय भर जाता है, साँसें गीत गाती हैं,
आनंद की लय दूर-दूर तक फैलती है।

जी आर कवियुर 
14 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

Tuesday, October 14, 2025

मोहब्बत याद आई,(ग़ज़ल)

मोहब्बत याद आई,(ग़ज़ल)

आज तेरी मोहब्बत याद आई,
रात भर तेरी सूरत मुस्कुराई।(2)

चाँदनी में तेरी खुशबू बिखरी,
हर हवा में तेरी बातें समाई।(2)

ख़ामोशी में भी तेरी आवाज़ आई,
दिल ने तन्हाई को भी महकाई।(2)

सपनों की गलियों में तेरा नाम गूंजा,
हर लम्हा तेरी यादें साथ लाई।(2)

आँखों में बस गए तेरे मंज़र,
जैसे बारिश में रंगत छलक आई।(2)

जी आर ने जब कलम उठाई,
तेरी मोहब्बत फिर याद आई।(2)

जी आर कवियुर 
14 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

Monday, October 13, 2025

किसीको भी पता न चला (ललित गान )

किसीको भी पता न चला (ललित गान )

किसीको भी पता न चला
चमेली के फूल खिले
तुम्हारे मन के गहराई में
बहार ने हलचल मचाई

छायाओं में बहती बूँदें
यादों में खुशबू बन गईं
हवा छू रही नीली जादू
हृदय की धड़कन जाग उठी

फूलों के द्वार खुलकर गाए
यादों की सरगम शांत हुई
क्षणों ने पंख फैलाए उड़ते हुए
चुंबन के सपनों में जन्म लिया

रंगों की आभा में एक स्पर्श
मौन राग प्रेम बनकर बिखर गया
चाँदनी के नीचे उजास
तुम्हारा चेहरा हृदय में चमका

किसीको भी पता न चला
चमेली के फूल खिले
नए सपनों की ओर तुम बढ़ रहे
पीड़ा की छाया में आनंद भर गया

जी आर कवियुर 
13 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)


प्यार के मौसम की यादें” ( ग़ज़ल)

प्यार के मौसम की यादें” ( ग़ज़ल)

जब हम मिले थे, सावन की चहक थे
फूलों के खिलने, तितलियाँ उड़ते थे (2)

चिड़ियों की बोली, चाँद की मुस्कराहट थे
आज मैं और मेरी तन्हाई, बस साथ थे(2)

वो बहारें लौटें, यादों के संग साथ थे
हर पतझड़ में तेरी खुशबू, मेरे दिल में बसते थे(2)

सर्दियों की ठंडी रातें, आग के पास थे
तेरे गीतों की गूँज में, हम दोनों पास थे(2)

वसंत की हवा में, फूलों की तरह खिले थे
तेरे हँसते चेहरे में, मेरे अरमान मिले थे(2)

बरसात की बूंदों में, तेरी यादें भीगते थे
छत पर हम मिलते, हर गीत में झूमते थे(2)

पतझड़ की पत्तियों में, तेरे कदम थे
संग चलकर बतकही, जैसे सपनों के हमदम थे(2)

जी आर, ये दिल तेरे लिए हमेशा रहते थे
हर साँस में तेरी यादें मेरी रूह में बसते थे(2)

जी आर कवियुर 
13 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

लहर और किनारा

लहर और किनारा

लहरें दौड़ीं, नीले गगन को निहारा,  
रेत के कणों ने मौन में सब कुछ सुना।  

समुद्र की बोली हवा में गूंज उठी,  
मछलियाँ लहरों पर हँसी में झूम उठीं।  

हर लहर उंगलियों पर नृत्य रचती,  
नीला रंग आँखों में बसता जाता।  

रेत की राहों पर कदम कहानी कहते,  
गर्म हवाएँ बिन शब्दों के गुनगुनातीं।  

सांझ के बादल सौंदर्य में घिर आते,  
चाँदनी किनारे का मन छू जाती।  

लहर और किनारा साथ में स्वप्न सजाते,  
जीवन फिर सागर बनकर उठ आता।  

जी आर कवियुर 
13 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

आनंद नर्तन

आनंद नर्तन

सूर्यकिरण बादलों के द्वार पर थपकियाँ देते हैं,  
बारिश की बूँदें गीत बनकर धरती को भिगोती हैं।  

हवा की हल्की छूअन से फूलों पर मुस्कान खिलती है,  
चाँदनी रेत पर नृत्य करती है।  

पक्षियों की आवाज़ सपनों की तरह बुलाती है,  
पेड़ ताल में संगीत रचते हैं।  

झील की लहरों पर सूरज की किरणें बहती हैं,  
किनारे की रेत कोमल ताल बजाती है।  

नीले बादल हँसते हुए लहराते हैं,  
सारा ब्रह्मांड आनंद में जाग उठता है।  

हृदय धीरे-धीरे उनके साथ झूलता है,  
प्रकृति गाती है अपना आनंद नर्तन।

जी आर कवियुर 
13 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

किसीको भी पता न चला (ललित गान )

किसीको भी पता न चला (ललित गान )

किसीको भी पता न चला
चमेली के फूल खिले
तुम्हारे मन के गहराई में
बहार ने हलचल मचाई

छायाओं में बहती बूँदें
यादों में खुशबू बन गईं
हवा छू रही नीली जादू
हृदय की धड़कन जाग उठी

फूलों के द्वार खुलकर गाए
यादों की सरगम शांत हुई
क्षणों ने पंख फैलाए उड़ते हुए
चुंबन के सपनों में जन्म लिया

रंगों की आभा में एक स्पर्श
मौन राग प्रेम बनकर बिखर गया
चाँदनी के नीचे उजास
तुम्हारा चेहरा हृदय में चमका

किसीको भी पता न चला
चमेली के फूल खिले
नए सपनों की ओर तुम बढ़ रहे
पीड़ा की छाया में आनंद भर गया

जी आर कवियुर 
13 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)


लहर और किनारा

लहर और किनारा

लहरें दौड़ीं, नीले गगन को निहारा,  
रेत के कणों ने मौन में सब कुछ सुना।  

समुद्र की बोली हवा में गूंज उठी,  
मछलियाँ लहरों पर हँसी में झूम उठीं।  

हर लहर उंगलियों पर नृत्य रचती,  
नीला रंग आँखों में बसता जाता।  

रेत की राहों पर कदम कहानी कहते,  
गर्म हवाएँ बिन शब्दों के गुनगुनातीं।  

सांझ के बादल सौंदर्य में घिर आते,  
चाँदनी किनारे का मन छू जाती।  

लहर और किनारा साथ में स्वप्न सजाते,  
जीवन फिर सागर बनकर उठ आता।  

जी आर कवियुर 
13 10 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

कविता -कनाडा का थैंकसगिविंग दिन

 भूमिका

कविता -कनाडा का थैंकसगिविंग दिन 



कनाडा में अक्टूबर के दूसरे सोमवार को ‘थैंकसगिविंग डे’ मनाया जाता है।

यह दिन ईश्वर, प्रकृति और जीवन के सभी आशीर्वादों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है।

परिवार एक साथ बैठकर भोजन साझा करते हैं और आभार प्रकट करते हैं।



कविता - कनाडा का थैंकसगिविंग दिन 


सुनहरी फसलें कहानी सुनाएँ,

शरद की बयार सपने जगाएँ।

परिवार हँसे, दिल मिल जाएँ,

प्यार भरे आलिंगन खिल जाएँ।


मेपल पत्ते रंग दिखाएँ,

नेकी की बातें सब दोहराएँ।

सजी हुई थाली, आशीष नई,

सच्ची भावना, कोमल दुआ यही।


स्मृतियाँ रहें, मुस्कानें बिखरें,

कृतज्ञता से जीवन निखरें।

याद रहे यह पावन क्षण,

आभार में बसता है जीवन।


जी आर कवियुर 

(कनाडा, टोरंटो)

Sunday, October 12, 2025

तन्हाई तड़पाती रही ( ग़ज़ल)

तन्हाई तड़पाती रही ( ग़ज़ल)

तेरी लौट आने की ख़्वाब देखता रहा,
इस क़दर तन्हाई तड़पाती रही(2)

हर सदा में तेरे नाम की गूंज थी,
रात भर दिल में खामोशी जगाती रही(2)

तेरी यादों का समंदर गहरा बहुत,
हर लहर मुझको किनारे से हटाती रही(2)

तेरे जाने के बाद भी महक उठे लम्हे,
तेरे गजरे की खुशबू मुझे बुलाती रही(2)

चाँदनी में तेरा चेहरा उतरता रहा,
मेरी नज़्मों में वो रौशनी सजाती रही(2)

अब सुकून ढूँढता हूँ तेरे निशानों में,
‘जी आर’ की तन्हा कलम लिखती रही(2)

जी आर कवियुर 
12 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

अकेला तो, अकेला ही सही (ग़ज़ल)

अकेला तो, अकेला ही सही (ग़ज़ल)

अकेला तो, अकेला ही सही,  
रास्ता फिर भी मेरा है सही(2)

चाँद संग चलता साया नहीं,  
दिल में जलता उजाला सही(2)

ख़ामोशी में भी गीत हैं छुपे,  
हर सांस में कुछ सपना सही(2) 

मिलने की आस अब भी है कहीं,  
टूटी उम्मीद का सहारा सही(2)

दर्द को गले लगाकर जियूं,  
ज़िंदगी का ये फ़साना सही (2)

“जी आर” मुस्कुरा कर कहे,  
तन्हाई भी कोई सज़ा नहीं, दवा सही(2)

जी आर कवियुर 
12 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

कविता - मन की मेघ मल्हार

कविता - मन की मेघ मल्हार

जब मन के आकाश में बादल घिरते हैं,
यादें बरसात की बूँदों बनकर दिल पर गिरती हैं।
उसी मौन में जन्म लेती है “मन की मेघ मल्हार” —
भावनाओं की एक संगीत-यात्रा, बारिश की ताल पर लिखी कविता। 

कविता - मन की मेघ मल्हार

बोल थम जाते हैं,
आँखें भर आती हैं,
भूल की चादर के पीछे
धीरे-धीरे लिखता हूँ मैं।

हवा की गर्जना में
ताल बनकर बरसती है धुन,
बारिश की बूँदों की झंकार में
मन खोकर बह जाता है।

कोहरे की चादर में
यादें मुस्कराती हैं,
समय के ठहरे पल में
दिल कविता बन जाता है।

मोरपंख के टुकड़ों-से
विचार बहते चले आते हैं,
मन के किनारों तक
बिन ताल की लहरों जैसे।

जब आसमान धूसर होता है,
अंतर मन नीला हो जाता है,
बादलों के पीछे छिपी
एक मुस्कान को खोजता हूँ मैं।

जब बादल दूर चले जाते हैं,
मन उजियारा बन जाता है,
बरसात के बाद की मिट्टी की खुशबू-सा
नया जीवन साँस लेता है।


जी आर कवियुर 
11 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

दिल के नग़मे (ग़ज़ल)

दिल के नग़मे (ग़ज़ल)

गले लगाया तूने मेरे नग़मे,
प्रीत से सजाया तूने अपने नग़मे(2)

तेरे लबों से छनके जो सुर के नग़मे,
दिल में बसाएँ हमने तेरे नग़मे(2)

रात की खामोशी में जब तू गुनगुनाए,
सितारे झुककर सुनते तेरे नग़मे(2)

हर दर्द को तूने साज पे सुलाया,
प्रीत ने बाँधे आँसू से नग़मे(2)

तेरी मुस्कान में जो मिठास उतरी,
वो बन गए फिर मेरे नग़मे(2)

जी आर कहे, तेरे इश्क़ की महक से,
ज़िंदा रहें ये दिल के नग़मे(2)

जी आर कवियुर 
11 10 2025

Friday, October 10, 2025

बाग़ की फुसफुसाहट

बाग़ की फुसफुसाहट


ठंडी बारिश में बिखरे फूलों के पंखुड़ियाँ,

सुगंध बहती हवा में, मन को भाए।

जंगल की ठंडी छाँव धीरे छूती है,

बिजली और सांझ साथ मिलकर गाती हैं।


हरे पत्तों पर ठंडी कली खिलती है,

रात की पीली रोशनी धीरे-धीरे चमकती है।

नदियों में सपनों के गीत उठते हैं,

चट्टानों पर पक्षी अपनी शरण ढूँढते हैं।


पंख फैलाकर, फूलों का उत्सव मनाते हैं,

सूरज की किरणें हवा में परछाइयाँ बनाती हैं।

दिल की मिठास प्यार में बहती है,

वातावरण शांति से सपनों में बहता है।



जी आर कवियुर 

10 10 2025

(कनाडा, टोरंटो)


कविता - नोबेल पुरस्कार का सपना

 कविता के बारे में – “नोबेल पुरस्कार का सपना” 



यह कविता किसी पदक को जीतने के बारे में नहीं है —

यह मानवता की सेवा करने की भावना, सच्चाई और करुणा से भरे सपनों के बारे में है।

यहाँ “नोबेल पुरस्कार” एक वैश्विक आशा का प्रतीक बन जाता है —

महत्व केवल प्रसिद्धि या सम्मान में नहीं है,

बल्कि हर उस कार्य में है जो दुनिया को बेहतर बनाता है, सीख देता है और दिलों को जोड़ता है।


आज, हम इस कविता को समर्पित करते हैं,

वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, और 2025 की नोबेल शांति पुरस्कार विजेता, मारिया कोरीना मचाडो को।

उनकी साहसिकता, संघर्ष, और लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता ने हमें यह प्रेरणा दी है कि सपने केवल कल्पना नहीं, बल्कि वास्तविकता बन सकते हैं।

उनके संघर्ष ने यह सिद्ध कर दिया है कि सच्चे सपने वही हैं जो मानवता की सेवा करें।



 कविता - नोबेल पुरस्कार का सपना 


धरती भर में, एक ही आकाश के नीचे,

सपने उठते हैं जो कभी नहीं मरते।

हर दिल से एक स्वर उठ सकता है,

धीरे से कहता है — “नोबेल पुरस्कार।”


स्वर्ण या अस्थायी प्रसिद्धि के लिए नहीं,

बल्कि प्रेम के प्रकाश को फैलाने के लिए।

दुनिया को ठीक करने, पीड़ा को खत्म करने,

हर दिल में उम्मीद जगाने के लिए।


हर विचार, हर कार्य एक चमकती धागा है,

जहाँ भय फैला है वहाँ शांति बुनता है।

हर सपना देखने वाला, चाहे पास हो या दूर,

अपने भीतर नोबेल की चिंगारी रखता है।


यह पदक या तालियों के लिए नहीं,

बल्कि मानवता को जागृत करने वाली सच्चाई के लिए है।

जब एक दयालु आत्मा दुनिया को ऊँचा उठाता है,

नोबेल का सपना मन में चमक उठता है।


जी आ

र कवियुर 

10 10 2025

(कनाडा, टोरंटो)

Thursday, October 9, 2025

“डाक दिवस”

“डाक दिवस”

स्याही में सोई यादें फिर से जाग उठीं,
हाथों की लिखावट में मिठास थी कभी।

गली-गली मुस्कान लिए आता था डाकिया,
हर दिल उसे अपनेपन से देखता था तभी।

कागज़ पे लिखे शब्द गाने लगते थे,
दूरियों को मिटाकर रिश्ते बनते थे।

समय की धारा में बदल गया ये ज़माना,
अब उंगलियों पे घूमता है सारा जमाना।

पुराने ख़त अब भी यादों में महकते हैं,
हर दिल में आज भी डाक दिवस खिलते हैं।

जी आर कवियुर 
09 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)


अकेले विचार – 122

अकेले विचार – 122

प्रकाश बिखरता है, दुनिया को मुस्कुराता हुआ,
फूल खिलते हैं, हर रास्ते में खुशबू फैलाते हुए।

ज्ञान की किरणें हर जगह बहती हैं,
शक्ति दूसरों के सपनों को पोषित करती है।

स्नेह का स्पर्श कभी न खोने वाला,
मौन प्रेरणा दिलों को जगाती है।

की गई क्रियाएँ पंखों पर उड़ती हैं,
शांत शक्ति दुनिया को उत्तेजित करती है।

हर सुंदर दृश्य चमकता है,
जो दिया गया वह लौटकर फिर आता है।

जीवन की रचनात्मकता में सब चमकता है,
साझा किया गया प्रकाश फिर दुनिया तक पहुँचता है।

जी आर कवियुर 
09 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)

पागल हुआ (ग़ज़ल गीत)

पागल हुआ (ग़ज़ल गीत)

तेरे इश्क़ में पागल हुआ
आशियाना ढूँढते पागल हुआ(2)

रात की चादर ओढ़ के मैं सोया
तेरे ख्यालों में खोया, पागल हुआ(2)

चाँदनी भी शरमाई तेरे नूर से
हर साया तुझसे डरा, पागल हुआ(2)

तेरी हँसी की खुशबू में बह गया
हवा के संग गा उठा, पागल हुआ(2)

दिल की गली में तू बसेरा कर गया
हर धड़कन तेरी पुकार से, पागल हुआ(2)

तेरी मोहब्बत की गहराई में डूबा,
जी आर भी पागल हुआ।(2)

जी आर कवियुर 
09 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

तू ही किनारा (ग़ज़ल)

तू ही किनारा (ग़ज़ल)


तनहा तनहा दिल ने पुकारा,
तुम ही हो हमरे किनारा(2)

हर लम्हा तेरा नाम लिया है,
तेरे बिना सब सूना नज़ारा(2)

ख्वाबों में तू रौशन चाँद बनी,
दिल ने समझा तुझको सहारा(2)

तेरी हँसी से महका आलम,
तेरे बिना हर रंग गुज़ारा(2)

रातों में तेरी यादें बोलीं,
कब लौटेगा मेरा सितारा(2)

अब जी रहा हूँ बस तेरे दम पे,
जी आर कहे, तू ही किनारा(2)


जी आर कवियुर 
09 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

मगर तू नहीं आए (ग़ज़ल)

मगर तू नहीं आए (ग़ज़ल)

मिला बिछड़ा तेरी यादें, मगर तू नहीं आए
सदियों से पुकारता चला हूँ, मगर तू नहीं आए

रातें भीगी हैं तन्हाई में तेरे नाम से
हर सुबह ने पूछा क्यों, मगर तू नहीं आए

ख़ुशबू तेरे गेसू की अब तक है हवाओं में
दिल ने भी कहा बारहा, मगर तू नहीं आए

आँखों में तेरे ख़्वाब अब भी मुस्कुराते हैं
जागे तो हर पल लगा, मगर तू नहीं आए

क़दम रुक गए तेरी राहों के किनारों पर
आशा ने फिर कहा चुपके, मगर तू नहीं आए

जी आर के दिल में अब भी वही दर्द बाकी है
हर शेर में तेरा ज़िक्र है, मगर तू नहीं आए

जी आर कवियुर 
09 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

साजन बिना (ग़ज़ल)

साजन बिना (ग़ज़ल)

साजन बिन कैसे बीते,
सावन की रातिया कैसे बीते।(2)

दिल की धड़कन सूनी लगती,
तेरे बिना सभी पल बीते।(2)

चाँद भी तन्हा लगता अब,
बादल की बात किया करे बीते।(2)

पलकों पे बसी तेरी छाया,
नींद भी अब रूठी सी बीते।(2)

तेरी यादों की महक उड़े,
हर सांस में बस तू ही बीते।(2)

जी आर कहे अब क्या लिखे,
तेरे बिन ये शेर भी बीते। (2)

जी आर कवियुर 
08 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

नींद नहीं आए सजनी” (ग़ज़ल )

“नींद नहीं आए सजनी” (ग़ज़ल )


क्या करूँ नींद नहीं आए सजनी,
कानों में गूँजें तेरे कजरारे सजनी।(2)

चाँद भी शर्मा जाए तेरी अदाओं से,
रातें भी महकें तेरे इशारों से सजनी।(2)

तेरे बिन सूना ये दिल का आशियाँ,
हर साँस में तेरा नाम पुकारे सजनी।(2)

हवा भी ठहर जाए तेरे आँचल पे,
बादल भी गीत तेरे गुनगुनाएँ सजनी।(2)

तेरी मुस्कान में छुपा है जादू कोई,
जिससे बहक जाए हर नज़ारे सजनी।(2)

अब तो ख्वाबों में ही मिल पाऊँ तुझसे,
कहता है जी आर दिल हारे सजनी।(2)

जी आर कवियुर 
08 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Tuesday, October 7, 2025

जब मदार खिलते हैं (शिव भजन)

जब मदार खिलते हैं (शिव भजन)

ॐ नमः शिवाय गाओ मेरे मन,
सारे दुःख दूर हो जाएँ।
ॐ नमः शिवाय गाओ मेरे मन,
सारे दुःख दूर हो जाएँ। (2)

जब खुले मैदानों में मदार खिलते हैं,
भक्तगण, माला पहनाये 
शब्दों से शिव को स्पर्श करते हुए,
शिव का स्मरण करें।(2)

ॐ नमः शिवाय गाओ मेरे मन,
सारे दुःख दूर हो जाएँ।

पलाझी की शांति के बीच,
जब वासुकी विष उगलते हैं,
महादेव जगत के उद्धार के लिए उसे पी जाते हैं,
बूँदें छलकतीं, फूल नीला हो गया। (2)

ॐ नमः शिवाय गाओ मेरे मन,
सारे दुःख दूर हो जाएँ।

वन के फूल औषधि की तरह खिलते हैं,
जीवन का संचार करते हैं,
शिव की कृपा से हृदय भर जाता है,
भक्त हृदय में शांति फैलती है। (2)

हे नीलकंठ वाले, दयालु,
भक्त हृदय में आप राज करें,
ॐ नमः शिवाय, माला में,
मेरी आत्मा को आप भर दें। (2)

ॐ नमः शिवाय गाओ मेरे मन,
सारे दुःख दूर हो जाएँ।

जी आर कवियुर 
07 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

यादों का मिलन

यादों का मिलन

यादें बुनती हैं चुपके-चुपके पल
हजारों सपने खिले फूलों की तरह
एक पल जो कभी लौटकर न आए
तुम मेरी कोमल सोच में समाए

मधुर गीत जैसे ओस में खिलते
आसमान के पंछी भी गुनगुनाते
क्षण भले ही बदल जाएं
तुम मेरे दिल में बारिश बनकर बरसते

सुबह लाती है विरह में शांति
नीले आकाश की तरह, तुम और मैं
इन राहों में तुम्हारी मौजूदगी
भोर में फूलों की तरह खिलती है

जी आर कवियुर 
06 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

मोरे पिया। (ग़ज़ल )

 मोरे पिया। (ग़ज़ल )

दिलमे अपना बनाकर सच्दे पिया,
दाग जो लगे नैननमे मोरे पिया।

तेरी हँसी में बसी है मेरी दुनिया,
हर पल तेरा ही ख्याल है मोरे पिया।

चाँदनी रातों में तेरा दीदार चाहूँ,
सपनों में बस तुझको ही पाऊँ मोरे पिया।

फूलों की खुशबू में तेरा नाम सजाऊँ,
तेरी यादों में हर घड़ी बहाऊँ मोरे पिया।

मौसम भी तेरे प्यार की गवाही दे,
हर एक बूँद कहे बस तेरा ही राज़ मोरे पिया।

जी आर की ये मोहब्बत बनी रहे सदा,
दिल के हर कोने में तेरा ही असर मोरे पिया।

जी आर कवियुर 
07 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

तेजस्वित आकाश

तेजस्वित आकाश 

तेजस्विता गिरती बर्फ़ की तरह,
मन के विस्तार में फैलती नज़र,
हर विचार चमकता प्रकाश की तरह,
बर्फ़ के कण पिघलकर बहते धीरे-धीरे।

हृदय में उठते भाव,
सपने खिलते कोमल साव के साथ,
भोर की नर्म रौशनी में,
हृदय जाग उठता है नई शुरुआत के साथ।

आँसू फैलते हैं नीरव पथों पर,
किसी को न दिखते, धीरे-धीरे उठते,
अपने भीतर के रंग धीरे-धीरे प्रकट होते हैं,
जहाँ आत्मा शांत रहती है।

समय बीतता है, यादें रहती हैं,
अतीत की छायाएँ नहीं मिटतीं,
तेजस्विता की तरह जीवन धीरे बहता है,
हृदय को भरता सुंदर और कोमल रूप से।

जी आर कवियुर 
07 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)

हिमबिंदु

हिमबिंदु 

भोर में जब हिमबिंदु झरते,
चंपा पत्तों पर रंग न उतरते,
मौन की गहराई में कहीं,
मोती-सा कण झिलमिल भरते।

ठंडी मुस्कान बह चली धीरे,
मन में कोई सपना खिले,
धुंध की कोमल छूअन से,
प्रेम की बूंदें जाग उठे।

सूरज की किरणें जब छू जाएँ,
हिम पिघले मन की राहों में,
हर पल गुनगुन कहता जाए —
जीवन का स्पंदन गहराए।

जी आर कवियुर 
07 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

तेरी राहों में" ( गीत)

तेरी राहों में" ( गीत)

पलको की छांव में
बरसाती बहरों में,
तरसता रहा मैं,
तेरी राहों में।

खामोश लम्हों में,
तेरी यादें आईं,
सपनों की गलियों में,
तेरी खुशबू समाई।

चांदनी रातों में,
तेरा चेहरा निखरा,
दिल ने पुकारा,
तू क्यों इतना बिखरा।

हर धड़कन में बस तेरा नाम है,
तेरे बिना मेरा क्या अंजाम है।

जी आर कवियुर 
06 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Monday, October 6, 2025

“वो बात याद है”(ग़ज़ल)

“वो बात याद है”(ग़ज़ल)

आज भी हमें वो बात याद है,
जो तूने मुझसे कह डाला है।

तेरी हँसी का वो मीठा असर,
अब तक दिल में संभाला है।

तेरे बिना जो सूनी घड़ियाँ,
हर पल ने तुझको टाला है।

ख़्वाबों में आता है तू अक्सर,
हर सांस में तेरी जाला है।

तन्हा दिल अब भी कहता यही,
प्यार तेरा जो निराला है।

“जी आर” लिखता है तेरी यादों में,
हर लफ़्ज़ में बस उजाला है।

जी आर कवियुर 
06 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

"रूठे हुए मौसम और तुम" (ग़ज़ल)

"रूठे हुए मौसम और तुम" (ग़ज़ल)


रूठे हुए मौसम और तुम,
हर बात में आती याद तुम।

खामोशियों में छुपा असर तुम,
साँसों में घुलती वो बात तुम।

बरसों पुरानी ख़ुशबू बनी,
हर लम्हे में बसती याद तुम।

आईने में देखूँ तो दिखो,
मेरे ही चेहरे की ज़ात तुम।

धूप में जलता रहा दिल मेरा,
छाँव सी उतरी रहमत तुम।

जी आर के लफ़्ज़ों में बसती,
हर ग़ज़ल की सूरत तुम।

जी आर कवियुर 
06 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)


दिल की हरित यादें

दिल की हरित यादें

सुगंध बिखरती पुष्पों की तरह
मन के हरे मैदान में
समय बनाता है मौन किले
छोड़ता है बीते पलों के निशान

विचार जड़ पकड़े खड़े हैं
फिर भी हल्की रोशनी में सोते हैं
शब्दों के बादल ऊपर तैरते हैं
अक्षर बन जाते हैं शाश्वत चिन्ह

मौन फैलाता है कोमल आवरण
लहरें शांति को दूर रखती हैं
भीगी यादों के टापुओं पर
प्रकृति की बदलती आकांक्षाएँ खोजती हैं

मौन बारिश में दिल डूबता है
मौसम के आँसू बह जाते हैं
रंगहीन सपने भटकते हैं
शांति के प्रमाण की तलाश में

जी आर कवियुर 
06 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)


मिले (ग़ज़ल )

मिले (ग़ज़ल )

नज़र नज़रों से मिले,
सुर सुरों से मिले,
ताल तालों से मिले,
राग रागों से मिले।

जब ख़ुदा भी मुस्कुराए तेरे ज़िक्र से,
हर दुआ दिल से निकले और तुझसे मिले।

सागर की गहराइयों में तेरा नाम लिखा,
किनारा भी उठे लहर बनके तुझसे मिले।

तेरे होंठों की मिठास में है सरगम का रंग,
हर तराना तेरे साज़ की धुन से मिले।

जैसे चाँद रात में उतरे उजाले के साथ,
वैसे दिल को सुकून तेरी नज़र से मिले।

हर सांस में तेरी यादों की महक है 'जी आर',
ये ग़ज़ल तेरे नाम की ख़ुशबू से मिले।

जी आर कवियुर 
06 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

किसके लिए। ( ग़ज़ल)

किसके लिए। ( ग़ज़ल)

ये तमाम इश्क़ की नज़रे किसके लिए,
चाँद, चाँदनी और तारे किसके लिए।

हर ख्याल में तेरी तसवीर बस गई,
अब ये दिल के किनारे किसके लिए।

तेरे होंठों से निकली दुआ बन गई,
अब ये सांसों के सहारे किसके लिए।

तेरे नाम की खुशबू से महका जहाँ,
ये बहारों के इशारे किसके लिए।

तू जो रूठा तो वीरान लगने लगा,
ये सजदे, ये सहारे किसके लिए।

जी आर कहे, अब तुझ बिन कुछ भी नहीं,
ये ग़ज़ल, ये इशारे किसके लिए।

जी आर कवियुर 
05 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)

दिल से (ग़ज़ल)

दिल से (ग़ज़ल)

शिकायत है हमें अपने दिल से,
यकीन नहीं वो क्यों नाराज़ है दिल से।

छुपा लेता था हर दर्द को मुस्कान में,
आज छलकती है आँखें आवाज़ है दिल से।

वो यादें जो महकती थीं कभी फूलों सी,
अब काँटों का सफ़र बन गया है दिल से।

हर ख़ुशी में भी जो तन्हाई का साया है,
कोई राज़ कह नहीं पाता है दिल से।

तेरे बिना अधूरी सी लगती हर बात मेरी,
कोशिश करता हूँ फिर भी सुलझाए दिल से।

जी. आर. कहता है मोहब्बत का यही मंज़र है,
न जाने कब कौन ख़फ़ा हो जाए दिल से।

जी आर कवियुर 
05 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)

मिले (ग़ज़ल )

मिले (ग़ज़ल )

नज़र नज़रों से मिले,
सुर सुरों से मिले,
ताल तालों से मिले,
राग रागों से मिले।

जब ख़ुदा भी मुस्कुराए तेरे ज़िक्र से,
हर दुआ दिल से निकले और तुझसे मिले।

सागर की गहराइयों में तेरा नाम लिखा,
किनारा भी उठे लहर बनके तुझसे मिले।

तेरे होंठों की मिठास में है सरगम का रंग,
हर तराना तेरे साज़ की धुन से मिले।

जैसे चाँद रात में उतरे उजाले के साथ,
वैसे दिल को सुकून तेरी नज़र से मिले।

हर सांस में तेरी यादों की महक है 'जी आर',
ये ग़ज़ल तेरे नाम की ख़ुशबू से मिले।

जी आर कवियुर 
06 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Sunday, October 5, 2025

अकेले विचार – 121

अकेले विचार – 121

 “सच्चे रिश्ते”

रिश्ते खिलते हैं कठिन पलों में,
साथ खड़ा दिल हर हलचल में।

मुस्कान में जब नयन झिलमिलाए,
सच की रोशनी तब राह दिखाए।

हाथ थामे जब चल पड़ते हैं,
प्यार दुआ बन बरसते हैं।

बिन बोले मन बात बताता,
ख़ामोशी में स्नेह जगाता।

आंधी आए तो मन न टूटे,
छाया बन विश्वास न छूटे।

जीवन पथ पर रिश्ते चमकें,
आस्था से सपने दमकें।

जी आर कवियुर 
04 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)

मेरी शाश्वत संगिनी — मेरी आत्मा की कविता





मेरी शाश्वत संगिनी — मेरी आत्मा की कविता 

कविता मेरी आस, मेरा विश्वास,
मन की छाँव बनी तू खास।
तेरे सुरों में खो गया मन,
मिला नया सा एक गगन।

मौन से जन्मी कोमल ध्वनि,
धड़कनों में गूँजे संगीत बनी।
दुख के तट पर लहर बन आई,
सपनों की बारिश संग लाई।

तू मेरी संतत सहचारिणी,
शब्दों की मधुर संगिनी।
प्रेमधारा बन बहती रहे,
दिल में सदा बसती रहे।

जी आर कवियुर 
05 10  2025
( कनाडा, टोरंटो)

Saturday, October 4, 2025

शरद ऋतु की आशा

शरद ऋतु की आशा

झील किनारे जब सवेरा होता,
सुनहरा रंग आसमाँ में रोता।
बादल छूते दूर इमारतों को,
सूरज हँसता जीवन की राहों को।

गिरते मेपल पत्ते लाल,
सर्द हवा का पहला ख्याल,
शीत करीब है फिर भी मन,
गाता रहता प्रेम राग बन।

हवा में कोई मधुर गान है,
शहर भी जैसे पहचान है,
क्षण बीत जाएँ, सपने रहें,
हृदय की धड़कन में बसे।

हाई पार्क की पगडंडी में,
पतझर की खुशबू बंदी में,
दिन ढले तो भी मन कहे —
प्रेम सदा जीवित रहे।

हर पत्ता जो झर जाता है,
नया संदेश दे जाता है,
शरद घटे तो भी मन में,
वसंत फिर आ जाता है।

जी आर कवियुर 
03 10 2025
(कनाडा , टोरंटो)


Friday, October 3, 2025

जीवन संध्या में

 जीवन संध्या में



जीवन की संध्या में, पलकों को धीरे खोला,
सबिता की नज़रों में एक शांत प्रकाश खिलता है।

बीते दिनों की राहों पर,
स्मृतियाँ फूलों की तरह गिरती हैं,
सबिता के हाथों में संभाली हुई।

सूरज की मद्धम छाया में,
सपने धीरे-धीरे लहराते हैं,
जब हम हाथ में हाथ डालकर चलते हैं।

जहाँ कभी आँसुओं के निशान थे,
आज वहाँ सबिता की मुस्कानों का आवरण है।

अंतिम गीत धीरे गूँजता है,
हृदय को उसकी मौजूदगी में शांति से भर देता है।

जीवन की संध्या, एक कविता की तरह,
मौन में हमारे लिए संगीत बिखेरती है।

जी आर कवियुर 
03 10 2025
(कनाडा , टोरंटो)

रूहानी सफर (ग़ज़ल)

रूहानी सफर (ग़ज़ल)

हर साँस में तेरा नाम तलाशता हूँ,
हर पल में तेरी रहमत पास आता हूँ।

नज़रों में तेरा दीदार बसता है,
दिल के वीराने में तू ही उजास आता हूँ।

तेरी मोहब्बत की खुशबू से महकता हूँ,
तेरी यादों के मौसम में ही बहकता हूँ।

बुझती हुई रोशनी में भी तेरा अक्स है,
अँधेरों में मैं तेरी ओर ही रास्ता बनाता हूँ।

आओ इक पल ठहर जाए, तुझसे मिलने,
तन्हाई में भी मैं तेरा ही गुनगुनाता हूँ।

रूह के दरिया में डूबकर जी आर,
तेरी मोहब्बत की लहरों में बह जाता हूँ।

जी आर कवियुर 
03 10 2025
(कनाडा , टोरंटो)

मरीचिका

मरीचिका

दूर की झलक में परावर्तन चमके,
आँखों में नर्म सा प्रकाश झलके।

हवा की लहरें बहती शांत मन,
सपने दें हृदय को मधुर स्वर की धुन।

जंगल में छुपा उजियारा कुछ,
नदियों में खोजें उत्तर सुखदुख।

अस्पर्श प्रतीक भी चमकते राहों में,
स्मृति के तारे जगमगाएँ पलों में।

संध्या के रंग में बदलती छटा,
रंग बिखरे वन में हर दिशा छटा।

मन की राह जो इंतजार में खड़ी,
मरीचिका की छाया खोजे अंतिम तट यही।

जी आर कवियुर 
03 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)


स्वर संगीत

स्वर संगीत

ध्वनि की लय में दिल गूँज उठता,
उड़ते पंछियों का मधुर गीत सुनता।

ताल की धुन हाथों में लिखी लिपि,
स्मृतियों में खुलता संगीत का दीपि।

चाँदनी की रौशनी में नृत्य भाव,
मध्यरात्रि का मधुर गान छूता भाव।

आँसुओं की लकीरों में पला गीत,
प्रेम की लय में हर दिल झूमित।

प्रकृति का संगीत आत्मा जगाए,
जीवन की कहानी गीतों में समाए।

सपनों पर बुनता संगीत का जाल,
मधुरसंगीत जैसे हृदय में हाल।

जी आर कवियुर 
03 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)


रोना

रोना

गहरी रात की निस्तब्धता में,
आँसू बहे उदासी की गाथा में।

यादों की लहरें उमड़ती जाएँ,
मन सवालों में उलझे रह जाए।

टूटे सपनों की सूनी डगर,
दर्द की प्रतिध्वनि गूँजे भीतर।

एकांत में प्रश्न उमड़ते भारी,
आत्मा ढूँढे सांत्वना प्यारी।

पर आँसुओं की गहराई में,
आशा का बीज छिपा कहीं।

विश्वास की ज्योति जब जगती,
अंधियारा राहों से हटती।

जी आर कवियुर 
03 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)


वसंत वन

वसंत वन

हरी पत्तियों में मधुर सुर गूँजे,
चिड़ियों के राग सदा मन पूजे।

फूलों से सजी रंगीन डाली,
सुगंध लुटाए सुबह निराली।

तितलियों का नृत्य सुहाना,
हवा में गूँजे गीत पुराना।

मधु लुटाएँ मधुमक्खियाँ प्यारी,
किरणें बिखेरें सोने की क्यारी।

शीतल छाया स्नेह लुटाए,
सपनों की धरती परियाँ सजाए।

मन को मिले शांति अपार,
वसंत वन हो सुंदर संसार।

जी आर कवियुर 
03 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)

चंपा का फूल

चंपा का फूल

पीत रंग की मधुर महक,
हवा में बहती कोमल चमक।

भोर की किरणें उजाला लाएँ,
सपनों से हृदय खिले मुसकाएँ।

कलियाँ जागें मधुर मुस्कान,
सुगंध बने पूजा का दान।

मंदिर पथ पर बिखरे उजास,
भक्ति के संग मिले विश्वास।

यादों में महके सुगंध मधुर,
नित्यता दे जीवन को सुर।

बसंत राग में स्वर उमंग,
चंपा का फूल गाए प्रेम संग।

जी आर कवियुर 
03 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)


छाँव

छाँव

हरी पत्तियों की मधुर छवि,
पग में भर दे शीतल नवी।

तपते सूरज की कठोर अगन,
मनुज को देती शरण सदन।

टहनियाँ फैले दया भरी,
आश्वासन देती छवि सगरी।

चिड़ियों का संगीत बहे,
स्वप्नों का आँगन महके।

थका हुआ मन चैन पाए,
क्षण भर रुककर सुख अपनाए।

जीवन पथ पर संग निभाए,
छाँव सदा अपनापन लुटाए।

जी आर कवियुर 
02 10 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

प्रभात

प्रभात

पूरब का आकाश जगमगाए,
सुनहरी किरणें जग में छाए।

ओस की बूँदें घास पे झलके,
हवा के संग राग उमड़के।

चिड़ियों का मधुर गीत बजे,
फूलों पर उजियारा सजे।

नदी के जल में लहरें झूमें,
शांत सुरों में मन को छू लें।

रात के सपने मिट जाते हैं,
नए उजाले संग अरमान आते हैं।

जी आर कवियुर 
02 10 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

“अनिद्रा की रात”

“अनिद्रा की रात”

सूरज सोता नहीं, सूरज सोता नहीं,
चाँद और तारों की पहरा यहाँ है।
जब इंसान सोते हैं, दुनिया से अनजान।

हवा की आवाज़ हँसी की तरह हल्की,
रेत भरी राहों में बहते शब्द,
रहस्यमय खुशबू रात में उठती है।

नदी की नीली सतह आकाश को दिखाती है,
छिपे गीत, अनदेखे सपने,
प्रकृति का दिल मौन में सुनता है।

पूर्णिमा की चाँदनी सबको कोमलता से छूती है,
पेड़ों के बीच छोटे पंख उड़ते हैं,
रात का संगीत हर दिल में बजता है।

छायाओं की ताल में यादें गिरती हैं,
आशा की रौशनी आँखों में चमकती है,
अनिद्रा की इस रात में, जीवन स्वयं गाता है।

जी आर कवियुर 
03 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)


हृदय में सोना

हृदय में सोना

जब पुरुष का मन हो सच्चा,
आँखों में चमक आए निरंतर।
सत्य और प्रेम बोले जब वह,
जीवन में खिलें फूल हर बार।

साहस के साथ चले कदम उसके,
मार्ग चमके हृदय में उज्ज्वल।
शक्ति जब करुणा से मिले,
संगीत और आनंद भर दे हर पल।

आत्मविश्वास जब उठे भीतर,
सपने हकीकत के बनें राहें।
साहस साथ हो हर कदम में,
अनंत खुशी जीवन को छू ले।

जी आर कवियुर 
03 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)

गीत - हृदय की प्रकृति

गीत - हृदय की प्रकृति

भूमिका :

हर सुबह जो मन को जगाती है,
हर हवा जो फूलों की ख़ुशबू से भर जाती है,
वह प्रेम ही है – हृदय की प्रकृति बनकर।

गीत - हृदय की प्रकृति

फूलों से सजी हुई राहें,
नई सुबह की मधुर बाहें,
उड़ती तितली रंग बिखेरे,
हल्की बयार सपने घेरे।

नीला आकाश खुले ख़ज़ाने,
जगते स्वप्न सुहाने-सुहाने,
मुस्कान भरी किरणें लाए,
प्यार का संदेश सुनाए।

हरी घास पर गूँजे गान,
जीवन का बन जाए विधान,
मन में खिले जो प्रेम पुकार,
स्मृति बने वह सदा साकार।

जी आर कवियुर 
03 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)

Thursday, October 2, 2025

इंद्रधनुष

इंद्रधनुष 

बूंदों में रंग खिले सुहाने,
सूरज की किरणें सपने सजाने।

नदी किनारे हँसी बिखर जाए,
खेतों की गलियों में गीत सुनाए।

बादलों के बीच बना पुल प्यारा,
पहाड़ की चोटी पे उम्मीद सहारा।

बच्चों की आँखों में जादू छाए,
पंछी पंखों से नभ सजाएँ।

फूलों की खुशबू चारों ओर,
बग़ीचे की राहें जगमग घोर।

हर दिल में चित्र नया सा खिले,
प्रकृति के वरदान जीवन में मिले।

जी आर कवियुर 
02 10 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

अकेले विचार – 120

अकेले विचार – 120

देसेरा की शुभ कामनाएं 

विजय की राहें हमेशा रोशन रहें
बाधाओं को पार कर ऊँचाइयाँ छूती हैं
स्मृतियों में मिठास बिखेरती यात्रा चलती है
जीवन की राह में आशा की किरणें चमकती हैं

नई संभावनाओं के दरवाज़े खुलते हैं
साहस से भरी दूरी पार होती है
भाग्य के रंगीन फूल बिखरते हैं
परिश्रम से लक्ष्य हासिल होता है

स्नेह और मित्रता का घेऱा बना रहता है
संकल्प के साथ आगे बढ़ता है
सफलता की झलक आँखों में खिलती है
हर दिन एक नई जीत बताता है

जी आर कवियुर 
02 10 2025
( कनाडा, टोरंटो)

Wednesday, October 1, 2025

सबर्मती की सौम्यता”

सबर्मती की सौम्यता”

सत्य और अहिंसा ने एक साथ गाया,
बापू का मार्ग उजियारा लाया।
चर्खा घूमा, नए सपने बिखेरे,
स्वतंत्रता के गीत दिल में जगे।

सादगी और प्रेम से जीवन सिखाया,
स्नेह के शब्द हम तक पहुँचाया।
राष्ट्रपिता को हम करते नमन,
त्याग के मार्ग पर आपने दिखाया चलन।

अमिट सपने, प्रेम और एकता पाई,
प्रकाशमय पथ से आप आये हम तक आई।
हृदय में बचपन सा तेज आपका चमका,
सत्य और त्याग का संदेश सब तक गया।

जी आर कवियुर 
01 10 2025 
(कनाडा , टोरंटो)
18:59 pm EST/ 02 10 2025
4:30 Am in IST



“स्नेह का दीपक”



“स्नेह का दीपक”

जीवन अनुभवों की किताब है,
नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक और प्रकाश है।

मुस्कान में करुणा, शब्दों में ज्ञान,
हृदयों में फैलता है प्रेम की खुशबू।

वे समय के रास्ते दिखाते हैं,
धैर्य की शक्ति सिखाते हैं।
सपनों को देते हैं उड़ान,
आशीर्वाद जो आत्मविश्वास बढ़ाए हमेशा।

आश्रय देकर, कृपा बांटकर,
परिवार को शक्ति, देश को दीपक।

बुजुर्ग घर की सजावट हैं,
देश का अभिमान, और स्नेह का दीपक।


जी आर कवियुर 
01 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Today is International Day of Older Persons

इंतज़ार की रोशनी (ग़ज़ल)

इंतज़ार की रोशनी (ग़ज़ल)

हर तरफ़ अंधेरे हैं, पर दिल में चराग़ है,
उम्मीद की राहों पे अब भी ये दिमाग़ है।

राहों में बिछे काँटे, तूफ़ान कई आए,
फिर भी मेरा क़दम बस मंज़िल के लिए है।

तन्हाई का आलम भी मीठा-सा लगे अब,
तेरी ही दुआओं का शायद ये असर है।

ग़म से भी गले मिलकर सीखा है मुस्कुराना,
हर दर्द में छुपा एक जीने का हुनर है।

'जी आर' का यक़ीन है, कल फिर सवेरा होगा,
इंतज़ार की आँखों में रौशन ये ख़बर है।

जी आर कवियुर 
01 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)


പ്രതീക്ഷയുടെ വെളിച്ചം (ഗീതം)

പ്രതിബന്ധങ്ങളിലൂടെ ഹൃദയത്തിൽ ദീപം
പ്രതീക്ഷയുടെ വഴികളിൽ, എന്നും ഈ സ്വപ്നം.

വഴികളിൽ മുറിവുകളും കാറ്റും പുത്തൻ വരവുമുണ്ടായി
എങ്കിലും എന്റെ ചുവടുകൾ ലക്ഷ്യത്തിലേക്ക് നീങ്ങി.

തനിയെ ഉള്ള തണൽ പോലും മധുരം പോലെ തോന്നുന്നു
നിന്റെ പ്രാർത്ഥനകളുടെ ആഴത്തിൽ ഹൃദയം സ്പന്ദിക്കുന്നു.

വേദനയും സുഖവും ചേർന്ന് പാടാൻ ഞാൻ പഠിച്ചു
ഓരോ ദു:ഖത്തിലും ജീവിതം കലവു പോലെ ഉണരുന്നു.

'ജി ആർ' വിശ്വസിക്കുന്നു, പകലെത്തന്നെ തിരികെ വരും
പ്രതീക്ഷയുടെ കണ്ണികളിൽ വെളിച്ചം മായുന്നില്ല.

ജീ ആർ കവിയൂർ
01 10 2025 
(കാനഡ, ടൊറൻ്റോ)


इंतज़ार की रोशनी (ग़ज़ल)

इंतज़ार की रोशनी (ग़ज़ल)

हर तरफ़ अंधेरे हैं, पर दिल में चराग़ है,
उम्मीद की राहों पे अब भी ये दिमाग़ है।

राहों में बिछे काँटे, तूफ़ान कई आए,
फिर भी मेरा क़दम बस मंज़िल के लिए है।

तन्हाई का आलम भी मीठा-सा लगे अब,
तेरी ही दुआओं का शायद ये असर है।

ग़म से भी गले मिलकर सीखा है मुस्कुराना,
हर दर्द में छुपा एक जीने का हुनर है।

'जी आर' का यक़ीन है, कल फिर सवेरा होगा,
इंतज़ार की आँखों में रौशन ये ख़बर है।

जी आर कवियुर 
01 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

ज़िन्दगी की राहें(ग़ज़ल)

ज़िन्दगी की राहें(ग़ज़ल)

कल अगर न होता तो आज भी कहाँ होता,
हर सफ़र का मुक़ाम तो वक़्त की रज़ा होता।

इन लंबी राहों में ठोकरें हज़ार मिलती हैं,
मगर हौसला हो तो मंज़िलें जवाँ होता।

सुख-दुख की धड़कनों में राग एक ही बसता,
ये जीवन तो इक चलती हुई सदा होता।

ख़्वाबों की धुन हवा में बिखर भी जाए चाहे,
यादों का हर साज़ हमेशा ग़ुंजा होता।

समय की धार में इंसान बहता जाता है,
हर लम्हा नए सफ़र का इशारा होता।

'जी आर' के दिल में अब भी उजाला ज़िंदा है,
हर अंधेरे के बाद नया सवेरा होता।

जी आर कवियुर 
01 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)


जीवन की राहों में

जीवन की राहों में

अगर न होता बीता कल,
क्या आज जन्म ले पाता?
और अगर आज भी खो जाता,
क्या कल कभी आ पाता?

इन लंबी अनजानी राहों पर,
पाँव कभी न डगमगाएँ,
संकेतों का मधुर संगीत,
सदा ही अमर हो जाए।

साँझ की हवा में खो गया,
सपनों का नन्हा राग,
परछाइयों-सा मिट गया,
अनुभव का हर एक स्वर।

दुख-सुख रहे दूर कहीं,
समय की लय में बहते हुए,
फिर भी दिल खोजता उजियारा,
उस पल में जो केवल एक ही बार।

मिट्टी के स्नेह की छाया में,
जीवन ने दिए कितने पाठ,
नवीनता से गगन को छूकर,
जीवन-यात्रा फिर से होगी आरंभ।

जी आर कवियुर 
01 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)