Thursday, October 30, 2025
दे गई दर्द, ( ग़ज़ल)
उसका चाँद (ग़ज़ल)
होश खो बैठा (ग़ज़ल)
तुम्हारे लिए (ग़ज़ल)
आँखों में नमी-सी थी क्यों (ग़ज़ल)
Tuesday, October 28, 2025
तुलसी का तड़
सदा साथ देना हे भगवान
मौन में गीत भर गया,
ज़रा-सी बात (ग़ज़ल)
हृदय की धुन”
समय की सरगोशियाँ
ग़ज़ल - "तेरी यादों ने मुझे सोने न दिया"
Sunday, October 26, 2025
मधुर सा सुर।
आंसुओं की मिठास (गीत)
सपने ने पंख फैलाया (गीत)
“कोहरे में तुमसे मुलाक़ात हुई”
“कोहरे की ठंडक में”
Saturday, October 25, 2025
आख़िरी धुआँ
आख़िरी धुआँ
धुआँ आख़िरी, कहीं खो गया,
गिलास का क़तरा भी गिर पड़ा।
निगाहें भटकीं शहर की रौशनी में,
कभी जो सपने थे, अब धुंधला पड़ा।
बारिश सी गूँजें मन में उठीं,
चाँदी सी रोशनी सिखाए नई राहें चलना।
हवा से पूछा उसने ख़ामोशी में,
वक़्त कहाँ गया, कौन सुना?
पुरानी आग, नया सर्दपन — दोनों जलते हैं,
हर नाम में वक़्त की साँस बसती है।
कदम बहकते हैं बदलती राहों में,
ख़ामोशी फिर वही तराना कहती है।
जी आर कवियुर
25 10 20
25
(कनाडा, टोरंटो)
तेरे बिना। (ग़ज़ल)
Friday, October 24, 2025
कविता - हैलोवीन, भूत और कुमाट्टी
प्रस्तावना
कविता - हैलोवीन, भूत और कुमाट्टी
त्यौहार हमारे जीवन को अलग-अलग तरीकों से जगमगाते हैं—
सोने की दीपक, खेलती परछाइयाँ, गीत और नृत्य।
भारत में दीवाली से लेकर कनाडा में हैलोवीन तक,
रिवाज भले ही अलग हों अलग-अलग जगहों पर,
खुशी, प्रेम और स्नेह हर दिल में समान रूप से बहते हैं।
हैलोवीन, भूत और कुमाट्टी
दीवाली चमके सोने की रौशनी में,
अँधेरा हारे, उजाले की कहानी में।
घर भर जाएँ हर्ष और प्यार से,
सपने जागें, दिल खुशियों के साथ।
हैलोवीन की रात, कनाडा की गलियों में,
कद्दू के दीपक झिलमिलाएँ सजीली।
बच्चों की हँसी, परछाइयों का खेल,
पूर्वजों के आशीर्वाद जगाएँ मेल।
बंगाल में, भूत चतुर्दशी की रात,
पूर्वजों की स्मृति जगाए प्रकाश साथ।
दीपक झिलमिलाएँ, कहानियाँ सुनाएँ,
स्नेह और श्रद्धा घरों में छाएँ।
तमिलनाडु में, आड़ी गीत गूँजे,
भक्ति और विश्वास दिलों में भूँजे।
केरल में, ओणम की खुशियाँ फैले,
कुमाट्टी के मुखौटे नृत्य में खिले।
सारी दुनिया में, त्यौहार मिल जाएँ,
दिलों में रौशनी और प्रेम पल जाएँ।
रिवाज अलग हों, पर स्नेह वही रहे,
अमर प्रकाश हर दिल में जगे।
जी
आर कवियुर
24 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)
याद और जाम (ग़ज़ल)
मदिरा की बरस (ग़ज़ल)
तेरी याद उभर आई (ग़ज़ल)
अधूरी बात (ग़ज़ल)
“बाँस के जंगल में”
“भक्ति की छाया में”
Thursday, October 23, 2025
“अनुराग गीत”
“प्रेम की नींद”
Wednesday, October 22, 2025
राह में (ग़ज़ल)
नीला चाँद(गीत)
“समय की करुणा”
Tuesday, October 21, 2025
तन्हाई का आलम” (ग़ज़ल)
तेरे लिए (ग़ज़ल)
मेरा मन जागा (गाना)
यादों का सांझ"
Saturday, October 18, 2025
“तेरी यादों की छाया में”
ग़ज़ल — “नज़र में तू ही तू”
कविता - धरती का कल
Friday, October 17, 2025
तेरी तलाश में। (ग़ज़ल)
Thursday, October 16, 2025
ग़ज़ल: दिल से दिल एक बस
तन्हा ख़यालों में (ग़ज़ल)
Wednesday, October 15, 2025
ग़ज़ल – "दीवाली की रात"
प्रिय राग
चंदन की खुशबू
Tuesday, October 14, 2025
मोहब्बत याद आई,(ग़ज़ल)
Monday, October 13, 2025
किसीको भी पता न चला (ललित गान )
प्यार के मौसम की यादें” ( ग़ज़ल)
लहर और किनारा
आनंद नर्तन
किसीको भी पता न चला (ललित गान )
लहर और किनारा
कविता -कनाडा का थैंकसगिविंग दिन
भूमिका
कविता -कनाडा का थैंकसगिविंग दिन
कनाडा में अक्टूबर के दूसरे सोमवार को ‘थैंकसगिविंग डे’ मनाया जाता है।
यह दिन ईश्वर, प्रकृति और जीवन के सभी आशीर्वादों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है।
परिवार एक साथ बैठकर भोजन साझा करते हैं और आभार प्रकट करते हैं।
कविता - कनाडा का थैंकसगिविंग दिन
सुनहरी फसलें कहानी सुनाएँ,
शरद की बयार सपने जगाएँ।
परिवार हँसे, दिल मिल जाएँ,
प्यार भरे आलिंगन खिल जाएँ।
मेपल पत्ते रंग दिखाएँ,
नेकी की बातें सब दोहराएँ।
सजी हुई थाली, आशीष नई,
सच्ची भावना, कोमल दुआ यही।
स्मृतियाँ रहें, मुस्कानें बिखरें,
कृतज्ञता से जीवन निखरें।
याद रहे यह पावन क्षण,
आभार में बसता है जीवन।
जी आर कवियुर
(कनाडा, टोरंटो)
Sunday, October 12, 2025
तन्हाई तड़पाती रही ( ग़ज़ल)
अकेला तो, अकेला ही सही (ग़ज़ल)
कविता - मन की मेघ मल्हार
दिल के नग़मे (ग़ज़ल)
Friday, October 10, 2025
बाग़ की फुसफुसाहट
बाग़ की फुसफुसाहट
ठंडी बारिश में बिखरे फूलों के पंखुड़ियाँ,
सुगंध बहती हवा में, मन को भाए।
जंगल की ठंडी छाँव धीरे छूती है,
बिजली और सांझ साथ मिलकर गाती हैं।
हरे पत्तों पर ठंडी कली खिलती है,
रात की पीली रोशनी धीरे-धीरे चमकती है।
नदियों में सपनों के गीत उठते हैं,
चट्टानों पर पक्षी अपनी शरण ढूँढते हैं।
पंख फैलाकर, फूलों का उत्सव मनाते हैं,
सूरज की किरणें हवा में परछाइयाँ बनाती हैं।
दिल की मिठास प्यार में बहती है,
वातावरण शांति से सपनों में बहता है।
जी आर कवियुर
10 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)
कविता - नोबेल पुरस्कार का सपना
कविता के बारे में – “नोबेल पुरस्कार का सपना”
यह कविता किसी पदक को जीतने के बारे में नहीं है —
यह मानवता की सेवा करने की भावना, सच्चाई और करुणा से भरे सपनों के बारे में है।
यहाँ “नोबेल पुरस्कार” एक वैश्विक आशा का प्रतीक बन जाता है —
महत्व केवल प्रसिद्धि या सम्मान में नहीं है,
बल्कि हर उस कार्य में है जो दुनिया को बेहतर बनाता है, सीख देता है और दिलों को जोड़ता है।
आज, हम इस कविता को समर्पित करते हैं,
वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, और 2025 की नोबेल शांति पुरस्कार विजेता, मारिया कोरीना मचाडो को।
उनकी साहसिकता, संघर्ष, और लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता ने हमें यह प्रेरणा दी है कि सपने केवल कल्पना नहीं, बल्कि वास्तविकता बन सकते हैं।
उनके संघर्ष ने यह सिद्ध कर दिया है कि सच्चे सपने वही हैं जो मानवता की सेवा करें।
कविता - नोबेल पुरस्कार का सपना
धरती भर में, एक ही आकाश के नीचे,
सपने उठते हैं जो कभी नहीं मरते।
हर दिल से एक स्वर उठ सकता है,
धीरे से कहता है — “नोबेल पुरस्कार।”
स्वर्ण या अस्थायी प्रसिद्धि के लिए नहीं,
बल्कि प्रेम के प्रकाश को फैलाने के लिए।
दुनिया को ठीक करने, पीड़ा को खत्म करने,
हर दिल में उम्मीद जगाने के लिए।
हर विचार, हर कार्य एक चमकती धागा है,
जहाँ भय फैला है वहाँ शांति बुनता है।
हर सपना देखने वाला, चाहे पास हो या दूर,
अपने भीतर नोबेल की चिंगारी रखता है।
यह पदक या तालियों के लिए नहीं,
बल्कि मानवता को जागृत करने वाली सच्चाई के लिए है।
जब एक दयालु आत्मा दुनिया को ऊँचा उठाता है,
नोबेल का सपना मन में चमक उठता है।
जी आ
र कवियुर
10 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)




