Tuesday, September 30, 2025

“आँसुओं के सागर में एक धुन”

“आँसुओं के सागर में एक धुन” 

सज गई दीवार, तैयार दिल,
मंडप में फिज़ा में घुला प्रेम का सिलसिल।
मधुर रेशम की बुनाई,
चाँदनी में महकती हर कली।

(सज गई दीवार…)

आँसू बहें जैसे नदियाँ,
स्वप्न जागे मीठी बातों में।
भोर में प्यार के फूल खिलें,
फूलों की छाँव में दिल धड़कें।

(सज गई दीवार…)

मोती जैसी मुस्कान बिखरी,
मेघ की रौशनी में उजली।
चाँदनी की लय में संगीत बहे,
जीवन के रास्तों में संग-संग हम रहे।

(सज गई दीवार…)

जी आर कवियुर 
01 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Monday, September 29, 2025

गहराईयों में ख्वाब

गहराईयों में ख्वाब

नींद की लहरों में बहते,
बेचैन दिल में सपने उठते,
गहराइयों में खोज जारी,
उभरते स्वप्न हैं हमारी भारी।

भले ही उम्मीदें कम हों,
नया सवेरा फिर उभरें हों,
हर आँसू बनता बीज प्यार का,
खिल उठे फूल, मिलन के आकार का।

जीवन यात्रा बहती धारा सी,
समय और लहरें, स्वप्नों का किनारा सी,
मौन के क्षितिज में ले चले,
जहाँ सन्नाटा है, वहीं लक्ष्य भले।


जी आर कवियुर 
29 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

छुपी हुई मेहनत

छुपी हुई मेहनत

प्रस्तावना

यह कविता गहन चिंतन, गहन भावना और रचनात्मक प्रयास का परिणाम है। डिजिटल उपकरणों ने विषय के गहन अर्थ की खोज करते हुए शब्दों को आकार दिया है। लेकिन दृष्टिकोण, विचार और भावनाएँ कवि की अपनी हैं, और प्रत्येक पंक्ति मानवीय कलात्मकता और मंशा को दर्शाती है।

कविता - छुपी हुई मेहनत

शब्द धीरे बहते हैं, पर रखते हैं भार,
हर निर्णय एक मौन दीप का उद्गार।
कल्पनाएँ गगन में रचती हैं रंग,
भावनाएँ उठती हैं मौन की तरंग।

विचारों का आदान-प्रदान, एक नाजुक नृत्य,
रेखाओं को मिलती है सही दिशा।
धड़कनों से बनती है छुपी कला,
हर विराम है महत्वपूर्ण हिस्सा इसका।

सपनों का निर्माण, परत परत,
अर्थ खिलते हैं हवा के पार।
अदृश्य हाथ थामते हैं हर धागा,
सौंदर्य जीवित रहता है जहां मेहनत लाया।

जी आर कवियुर 
29 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

समुद्र पंख

समुद्र पंख 

लहरों के ऊपर सपने उड़ें,
रंगीन आकाश आँखों में जुदें।

नमकिले किनारे पदचिह्न बिखरे,
हवा के सुर से मन में मिठास भरे।

मछलियाँ खेलती जल में घूमें,
छुपी कथाएँ फुसफुसा कर ऊँचें।

संध्या की सुनहरी किरणें तट पर गिरे,
चाँदनी चमके समुद्र की लहरों में हिरे।

लहरों के साथ यात्राएँ समाप्त हों,
छायाओं में यादें धीरे बहें।

लंबे पंखों में स्वतंत्रता मिले,
जीवन के गीत लहरों में गूँजें।

जी आर कवियुर 
29 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

तितली

तितली 

फूलों के पंखों पर रंग खिले,
धूप की नरमी में नृत्य मिले।

बादलों से आगे सपने उड़ें,
हवा के सुर मधुर बन झरें।

मधु की गुनगुन हँसी लुटाए,
पंखों का स्पर्श सुगंध जगाए।

बग़ीचे की राहें रोशन हों,
कुमुदिनी की खुशबू मन में बुनें।

प्रकृति का गीत कविता बने,
भोर की आशा जीवन तले।

हरियाली में सौंदर्य खिले,
जीवन का संगीत नया मिले।

जी आर कवियुर 
29 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

काव्य मंच

काव्य मंच 

शब्दों के परदे में विचार खिलें,
सपनों की गलियों में सुर मिलें।

कवि के दिल में गगन चमके,
पंक्तियाँ बहें जैसे धारा दमके।

चाँदनी जैसी वाणी बजे,
तारों जैसी आशा सजे।

श्रोताओं की आँखें जगमगाएँ,
तालियों में मित्र भाव आए।

प्रेम की खुशबू छा जाए,
हर पंक्ति मन को छू जाए।

जीवन की गाथा गूंज उठे,
कला का आशीष जग में बिखरे।

जी आर कवियुर 
29 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)


हवाओं की लहरों में, (गीत)

हवाओं की लहरों में, (गीत)

हवाओं की लहरों में,
साँसों में महकता है,
तेरी यादों का जादू,
दिल में उतर जाता है।

काजल भरी तेरी आँखें,
बालों की मस्त रवानी,
झुमके की मीठी खनक,
दिल को करे दीवानी।

पायल की झनकार में,
प्यार का संगीत बसता,
तेरी मुस्कान की दुनिया,
सपनों में हर पल सजता।

जी आर कवियुर 
28 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

पहाड़ (गीत)

पहाड़ (गीत) 

पहाड़, पहाड़, पहाड़, बादल में छिपा,
दिल की गहराई में गूँजे सुरा.

बर्फ गिरी तो सपने सो जाएं,
नदी गुनगुनाए, घाटी में बह जाएं।
देवदार बोले हवा की कहानी,
संग हवा गाए मधुर रवानी।

पक्षियों की बोली सुबह जगाए,
सूरज की किरणें संध्या सजाए।
चट्टानों में लिखी है गाथा पुरानी,
राहों में अंकित यादों की निशानी।

ठंडी हवा मन को सहलाए,
बरसात शिखरों से बहे जाए।
ऊँचाई में झलके गौरव महान,
प्रकृति का गीत बजे अनजान।

पहाड़, पहाड़, पहाड़, बादल में छिपा,
दिल की गहराई में गूँजे सुरा। 

जी आर कवियुर 
27 09 2025
(कनाडा , टोरंटो)

धान का खेत

धान का खेत

भोर की ओस में हरियाली खिल उठती है,
पंछियों के गीत से मन में उमंग जगती है।

मंद समीर में धान की बाली लहराती है,
शीतल तट पर झरना कल-कल गाता है।

किसान के पसीने में भविष्य के सपने चमकते हैं,
पंख फैलाकर कौए आकाश में खो जाते हैं।

मिट्टी की सुगंध हृदय को महका देती है,
चित्र सा सुंदर खेत जगमगाता दिखाई देता है।

ओस की बूँदें पत्तों पर मुस्कुराती हैं,
तितलियाँ पंखों से रंग बिखेर जाती हैं।

प्रकृति की कृपा से फसल की आशा पूरी होती है,
धान के खेत में जीवन की कविता खिल उठती है।

जीआर कवियूर 
23 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)

Saturday, September 27, 2025

मचल रहा है मन,(गीत)

मचल रहा है मन,(गीत)

धीरे-धीरे मचल रहा है मन,
धरती-अम्बर खिल उठा।
धड़कनें तेज़ हुई हृदय की,
कैसे कहूँ आभार तेरा आगमन पर।

सपनों में रंग भर गए,
हर दिशा गुनगुनाने लगी।
तेरी मुस्कान से जग सजा,
मेरी रूह महकने लगी।

नज़रों में चमक बसी,
सांसों में मिठास उतर आई।
तेरे संग हर पल लगे,
जैसे जन्नत यहाँ उतर आई।

तू आया तो जीवन खिला,
ख़्वाब हकीकत में बदल गया।
तेरी चाहत में डूबकर,
मेरा हर सफ़र सफल हुआ।

जी आर कवियुर 
27 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Friday, September 26, 2025

प्यार की गलियों में ( गीत)

प्यार की गलियों में ( गीत)

प्यार की गलियों में
तुम्हारे लिए मैंने इंतजार किया
मधुर पीड़ा के सपनों में
आँखों में भीगी हुई चमक

फूलों में खिलती हुई खुशबू
बसंत के लिए सजग
विरह की छाया और बादल
हवाओं के हाथों में बहकने को तैयार

प्यार की गलियों में
तुम्हारे लिए मैंने इंतजार किया

दिल के सुरों में
तुम आए मेरी राहों में
एक पल भी
मैं बिना कहे छुपा रहता हूँ

प्यार की गलियों में
तुम्हारे लिए मैंने इंतजार किया

भोर ने सोने की रौशनी बिखेरी
तुम यादों के रूप में आए
सपनों में जब तुम खिलते हो
मेरा मन गुनगुनाता है

प्यार की गलियों में
तुम्हारे लिए मैंने इंतजार किया

नीले आकाश की बारिश में
तुम छाया की तरह बसे हो
सच्चे प्यार की यादों में
क्षण मधुर होकर छुप जाते हैं

प्यार की गलियों में
तुम्हारे लिए मैंने इंतजार किया

जी आर कवियुर 
26 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)


पिता

पिता

पिता सदा हैं जगमग चाँद,
मार्गदर्शक तारा महान।

जीवन भर की मेहनत सारी,
हृदय में थी करुणा भारी।
अनगिनत दिन, अनगिनत रातें,
प्यार से खोले जीवन की राहें।

पिता सदा हैं जगमग चाँद,
मार्गदर्शक तारा महान।

अन्न दिया और शिक्षा दी,
सपनों की राहें रोशन की।
स्नेह भरे वे मधुर वचन,
जीवन में बन गए प्रदीपन।

पिता सदा हैं जगमग चाँद,
मार्गदर्शक तारा महान।

समय बदलता, चाल भी बदले,
करुणा की ज्योति कभी न बुझे।
पिता सदा हैं जगमग चाँद,
मार्गदर्शक तारा महान।

पिता सदा हैं जगमग चाँद,
मार्गदर्शक तारा महान।

जी आर कवियुर 
26 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

तेरी यादों का सफ़र (ग़ज़ल)

तेरी यादों का सफ़र (ग़ज़ल)

तेरी ख़बर नहीं है, ऐ साजन,
दिल में बस गई तेरी यादें, ऐ साजन।

राहों में खोजा तुझे हर पल,
मिल न सकी तेरी आहटें, ऐ साजन।

चिट्ठी न पैग़ाम कोई पहुँचा,
आँखों में बस गई तसवीरें, ऐ साजन।

तेरे बिना ये मौसम वीरां,
फूलों में सूनी महकें, ऐ साजन।

कह रहा है ये दिल अभी भी,
तेरे नाम गा रहा “जी आर”, ऐ साजन।

जी आर कवियुर 
26 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Thursday, September 25, 2025

कविता - विचारों की यात्रा

कविता - विचारों की यात्रा 

सार
यह कविता मन की यात्रा है, बचपन से वृद्धावस्था तक। यह दर्शाती है कि वर्षों में हमारी सोच, आशाएँ और बुद्धि कैसे बदलती हैं, और

कविता - विचारों की यात्रा 

दस में, दुनिया है खेल का रंग,
सपनों की लहरें, हर तरफ़ उमंग।

बीस में, आशाएँ उड़ान भरें,
तारों को छूते, नयी राह तलाशें।

तीस में, रास्ते फैलें, दूर तक,
विकल्प हमारे साथ चलें हर कदम तक।

चालीस में, संदेह धीरे आए,
पर साहस दिल को थामे रहें साए।

पचास में, बुद्धि फुसफुसाए,
सत्य की राह दिल को दिखाए।

साठ में, यादें चमक उठें,
सिखाएँ हर पल, हर रात, हर दिन।

सत्तर में, शांति पास लगे,
जीवन धीरे-धीरे, सरल और स्पष्ट रहे।

अस्सी में, मौन गाता गीत,
आत्मा पंख फैलाए, ऊँचाई की जीत।

सालों के पार, विचार उड़ान भरें,
सिर्फ़ शांति और आनंद हमारे संग रहें।

जी आर कवियुर 
25 09 2025
(कनाडा , टोरंटो)

"यादों का क़ाफ़िला" (ग़ज़ल)

 "यादों का क़ाफ़िला" (ग़ज़ल)

ये शाम ढलने को आई है,
यादों का क़ाफ़िला चलता रहा है।

हर एक ख्वाब अधूरा सा रह गया,
निगाहें मगर रास्ता तकती रही हैं।

सुकून दिल को न आया किसी तरह,
उलझनों में मोहब्बत सुलगती रही है।

हवा में ग़म का धुआँ सा घुला हुआ,
मगर आँखें चुपचाप बरसती रही हैं।

तेरा नाम लबों पर आता गया यूँ,
दुआ बनके हर सांस सजती रही है।

जी आर के दिल से निकली ये दास्ताँ,
तेरी याद ही मेरी ग़ज़ल बनती रही है।

जी आर कवियुर 
25 09 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

श्री कृष्ण भजन

श्री कृष्ण भजन 


हरे कृष्णा द्वारकावासी श्रीकृष्ण
तुम ही शरण शरण

देवदंती बज उठी
दैत्यसंहारक बनकर आए
दिव्यवीर्य चमक उठा
मन में दर्शन हो द्वारकावासी श्रीकृष्ण का

हरे कृष्णा द्वारकावासी श्रीकृष्ण
तुम ही शरण शरण

दीपप्रकाश फैल गया
दुष्कर्म नष्ट करने वाले
दिव्यगंध बिखेरी
दुखहरता हमारे संग

हरे कृष्णा द्वारकावासी श्रीकृष्ण
तुम ही शरण शरण

द्वारका और पुण्यभूमि
दासभाव जगाने वाले
दीप्त बनता है हृदय में
दिव्यप्रेम भरता जीवन में

हरे कृष्णा द्वारकावासी श्रीकृष्ण
तुम ही शरण शरण

जी आर कवियुर 
25 09 2025
(कनाडा , टोरंटो)

समय की दौड़ (कविता)

समय की दौड़ (कविता)

प्रस्तावना

समय एक ऐसा प्रवाह है जो कभी स्थिर नहीं रहता।
यह पुकार की तरह गूंजता है, घोड़े की तरह दौड़ता है।
इसके लय में जीवन आगे बढ़ता है, सपनों और आशाओं को आकार देता है।

इस कविता में, समय की गति और उसकी अद्भुत शक्ति पंक्तियों में झलकती है।
समय वह अदृश्य साथी है जो हमारा हाथ थामे रखता है,
जीवन की यात्रा में हमें मार्गदर्शन करता है और हर क्षण को नवीनता से भर देता है।

कविता – समय की दौड़

एक पुकार की तरह, तुम आगे बढ़ते हो,
दिन की तरह, हर रास्ते को रोशन करते हो।

घोड़े की तरह, तुम कूदते और दौड़ते हो,
बादल की तरह, चारों ओर घेर लेते हो।

रास्तों को जोड़कर, तुम नई कहानियाँ बनाते हो,
संगीत की तरह, यादों में गूंजते हो।

हवा की तरह, तुम आगे बढ़ते हो,
लहरों की तरह, लय में धड़कते हो।

चाँद की तरह, तुम शांत प्रकाश बिखेरते हो,
सपनों को दिल में फैलाते हो।

जीवन की तरह, तुम यात्रा बन जाते हो,
आकाश को काटते हुए संगीत बन जाते हो।

सूर्य की तरह, तुम्हारा तेज फैलता है,
तारों की तरह, तुम्हारी आशा चमकती है।

समय — ऐसा लगता है कि तुम सब कुछ हो,
आत्मा के माध्यम से कहानियाँ गाते हो।

जी आर कवियुर 
25 09 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Wednesday, September 24, 2025

यादों की मृदुल रेखा (सरल गीत)

यादों की मृदुल रेखा (सरल गीत)


चाँदनी की नीली छाँव में
दिल की लहरें धीरे से छूतीं,
अनकहे प्यार के सपने बिखरते हैं।

चाँद की नीरव रोशनी में
तुम्हारे लिए जागते हुए,
नयनों में खिलते हुए
प्रेम के मधुर स्वप्न।

सन्नाटे की घड़ी में बहते
मन का सांत्वन गीत,
हवाओं की उंगलियाँ छूतीं
दिल गा रहा है प्यार का राग।

चाँदनी में बहती यादों की लकीर,
विरह की बूंदें आँसुओं की तरह,
प्रेम की महक भर देती हैं
अनकहे प्यार की।

कह न सकी, छिपी हुई
दिल की अनकही मोहब्बत,
एक दिन खिल उठेगी इसकी आशा में
समय गिनकर इंतजार कर रहा हूँ।

जी आर कवियुर 
24 09 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Tuesday, September 23, 2025

ग़ालिब नहीं मैं ( ग़ज़ल)

ग़ालिब नहीं मैं ( ग़ज़ल)

ग़ालिब नहीं मैं, दिल में संजोया एक ख्वाब,
तेरी आँखों में खिलते, रंग-बिरंगे सपनों की ग़ज़ल।

विरह का दर्द मिटाने को, चाँदनी मुस्कुराए,
हृदय की तारों को छूते हुए, संगीत बन जाए ग़ज़ल।

तितली रंग भर कर बहती, वसंत की मीठी खुशबू,
तेरी हँसी की नमी में घुल जाए मधुर ग़ज़ल।

सपनों की खुशबू फैलाकर, प्रेम की राहों में हवा,
आँखों के अश्कों में भी, प्रेम भरी हो जाए ग़ज़ल।

हर साँस में तेरी यादें, हर लम्हा तुझसे जुड़ा,
दिल की गहराई से उठती, बहती रहती ग़ज़ल।

चाँदनी रात में तेरा नाम, हवा भी गाए,
राहों में तेरे ख्वाब बिखरें, हर पल बोले ग़ज़ल।

जी आर के दिल से उठती, राग की मीठी सरगम,
प्रियतम, सिर्फ़ तुम्हारे लिए, हर धड़कन कहे ग़ज़ल।

जी आर कवियुर 
23 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

नवरात्रि १ से ९ दिन में की कीर्तन

शैलपुत्री माँ (Navaratri – Day 1)

शैलपुत्री माँ, भक्तिदायिनी माँ,
शिवशक्ति रूपा, करुणा की धारा।

पर्वतराज की बेटी, परमज्योति,
संकट मिटाओ, दो वरदान माँ।

त्रिशूल है हाथों में, चंद्रकला शोभे,
धर्म की ज्योति से, जीवन को निहारे।

भक्त गाएँ मिलकर, चरणों में झुककर,
नवरात्रि पूजा में, वास करो माँ।

सत्य का सहारा, प्रेम की रखवाली,
माँ तेरे रहते, दुःख न आए कोई।

पर्वत पर विराजे, परमशक्ति माता,
भक्तों के दिलों में, सदा वास करो माँ।

जी आर कवियुर 
22 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)


माँ ब्रह्मचारिणी (Navaratri – Day 2)

माँ ब्रह्मचारिणी, तप की ज्योति,
भक्ति का दान दो, शक्ति की ज्योति।

हाथों में जपमाला, कर कमंडलु,
साधना स्वरूपा, सत्य की धारा।

भक्त तुम्हें पुकारें, चरणों में नत हों,
संकट हरो माता, सुख के पथ दो।

नवदुर्गा में माँ, दूसरी ज्योति,
अनंत कृपा कर दो, जीवन में शांति।

व्रत और उपवास से, तप की पहचान,
माँ तेरे आशीष से, कटे सब तूफ़ान।

ध्यान और समाधि की, अद्भुत ज्योति,
माँ ब्रह्मचारिणी, दे सद्बुद्धि।

जी आर कवियुर 
22 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)


माँ चंद्रघंटा (Navaratri – Day 3)

माँ चंद्रघंटा, शांति की धारा,
भय मिटाने वाली, करुणा की धारा।

सिंह पर विराजे, दसों हथियार,
भक्तों के जीवन में, भर दो प्यार।

घंटे की ध्वनि से, हटे अंधियारा,
तेरे चरणों में माँ, मिले सहारा।

तेरा स्वरूप है, साहस की मूरत,
तेरी कृपा से कटे, जीवन की मुश्किल।

भक्ति का दीपक, जले हर द्वारे,
माँ चंद्रघंटा, कृपा बरसाओ।

शक्ति की साधना, रक्षा का वचन,
तेरी शरण में माँ, पूर्ण हो जीवन।

जी आर कवियुर 
22 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)


 कूष्माण्डा (Navaratri – Day 4)

माँ कूष्माण्डा, प्रकाश की मूरत,
सृजन की शक्ति, करुणा की धारा।

सूर्यकिरणों में, ज्वलित रूप आपकी,
भक्तों के हृदय में, भय दूर करें माँ।

आठ हाथों में, आयुधों का तेज,
सृष्टिशक्ति बन, आशीष दे आप।

फूलों की महक, भक्ति के गीत,
नवदुर्गा में माँ, दीप बनकर रहें।

दिन-रात आपके सहारे उजियारे,
भक्तों के मन में शांति भर दें।

जीवन के मार्ग में, प्रेम की रोशनी,
माँ कूष्माण्डा, सदा वास करें।

जी आर कवियुर 
23 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

माँ स्कंदमाता (Navaratri – Day 5)

माँ स्कंदमाता, करुणा की माता,
संतानों की रक्षक, भक्तों की धनदाता।

सिंह पर विराजे, बालक कंधे पर लिए,
भक्तों के हृदय में प्रेम और शांति बिठाएं।

त्रिपुंड और कमलधारी, रूप अद्भुत आपका,
संकट हर लें माँ, जीवन में सुख बढ़ाएं।

भक्ति भाव से गाएं, चरणों में नत हों,
नवदुर्गा में माँ, अनंत कृपा बरसाएं।

ज्ञान और शक्ति का प्रकाश आप फैलाएं,
भक्तों के मार्ग को सरल और उज्जवल बनाएं।

माँ स्कंदमाता, कृपा की मूरत,
सदा हमारे हृदय में वास करें।

जी आर कवियुर 
23 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)


माँ कात्यायनी (Navaratri – Day 6)

माँ कात्यायनी, धैर्य की मूरत,
भक्तों को रक्षक, करुणा की धारा।

सिंह पर विराजे, हाथों में आयुध लिए,
भय दूर करें माँ, जीवन में सुख भरें।

फूलों की खुशबू, हवा में नृत्य करती,
नवदुर्गा में माँ, दीप बनकर रहें।

भक्त मिलकर गाएँ, चरणों में नतमस्तक हों,
कात्यायनी माँ, कृपा बरसाएँ आप।

शक्ति से संसार को सुंदर बनाएं,
भक्ति और विश्वास से हृदय भरें।

भक्त हृदयों में सदा वास करें आप,
कात्यायनी माँ, दिव्य मार्ग दिखाएं।

जी आर कवियुर 
23 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)


Day 7 – माँ कालयात्रि

माँ कालयात्रि, भयमुक्त करने वाली,
भक्तों की रक्षक, करुणा की मूरत।

रक्तज्वाला रूपी, संकट हराने वाली,
संकट दूर कर, जीवन में सुख लाने वाली।

भयभीत रूप के बावजूद, करुणामयी,
नवदुर्गा में माँ, दीप बनकर रहें।

भक्त गाएँ, चरणों में नतमस्तक हों,
कालयात्रि माँ, कृपा बरसाएँ आप।

शक्ति से सभी बुरी शक्तियों को हराएँ,
भक्त हृदयों में सदा शांति भरें।


8 th day माँ महागौरी

माँ महागौरी, पवित्र मूरत,
भक्तों के हृदय में सदा वास करने वाली।

दीप जैसी उज्जवल, पापों को हराने वाली,
भक्त जीवन में सुख और आनंद भरने वाली।

हवा में फूलों की खुशबू, नीले आकाश में,
नवदुर्गा में माँ, दीप बनकर रहें।

भक्त मिलकर गाएँ, चरणों में नत हों,
महागौरी माँ, कृपा बरसाएँ आप।

विश्वास का प्रकाश, करुणा की ज्योति,
भक्त हृदयों में सदा स्थायी रहें आप।

संकट दूर करने वाली, सुख देने वाली,
महागौरी माँ, सदा वास करें।

9 th day माँ सिद्धिदात्री

माँ सिद्धिदात्री, कृपा देने वाली,
भक्तों के हृदय में सफलता देने वाली।

अच्युत और सत्य का वरदान, ज्ञान की देवी,
जीवन में समृद्धि और शांति फैलाने वाली।

चरणों में अनुग्रह की ज्योति,
नवदुर्गा में माँ, दीप बनकर रहें।

भक्त मिलकर गाएँ, नतमस्तक हों,
सिद्धिदात्री माँ, कृपा बरसाएँ आप।

संकट दूर करने वाली, सफलता देने वाली,
भक्तों में सदा वास करें आप।

सत्य, धर्म और प्रेम का वरदान,
सिद्धिदात्री माँ, शांति प्रदान करें।

जी आर कवियुर 
23 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)



अंक

अंक

एक से सपनों की राह खुल जाती है,
दो से मित्रता की डोर बंध जाती है।

तीन के गीतों में बचपन मुस्कुराता है,
चार की राह में नया सफ़र बुलाता है।

पाँच उँगलियों में शक्ति का संगीत है,
छः बादलों से बरसती बूँदों की प्रीत है।

सात रंगों में इन्द्रधनुष झिलमिलाता है,
आठ कदमों में नया दृश्य जगमगाता है।

नौ दिल में आशा की लौ जगाता है,
दस से संसार को शांति मिल जाता है।

ग्यारह किरणों से भोर खिल उठती है,
बारह क्षणों में जीवन कविता बन जाती है।

जीआर कवियूर 
23 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)


धान का खेत

धान का खेत

भोर की ओस में हरियाली खिल उठती है,
पंछियों के गीत से मन में उमंग जगती है।

मंद समीर में धान की बाली लहराती है,
शीतल तट पर झरना कल-कल गाता है।

किसान के पसीने में भविष्य के सपने चमकते हैं,
पंख फैलाकर कौए आकाश में खो जाते हैं।

मिट्टी की सुगंध हृदय को महका देती है,
चित्र सा सुंदर खेत जगमगाता दिखाई देता है।

ओस की बूँदें पत्तों पर मुस्कुराती हैं,
तितलियाँ पंखों से रंग बिखेर जाती हैं।

प्रकृति की कृपा से फसल की आशा पूरी होती है,
धान के खेत में जीवन की कविता खिल उठती है।

जीआर कवियूर 
23 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)

“तेरे सुरों में जागना”

“तेरे सुरों में जागना”

आज जब मैं जागता हूँ,  
तेरा स्वर मेरे चारों ओर घुलता है,  
इशारों में छुपा प्यार है,  
बीते कल की यादें धीरे से दिल को छूती हैं।  

चाँदनी में बहती खामोशियाँ,  
आँखों में छिपा मीठापन धीरे-धीरे बहता है,  
मृदु मुस्कान फैलती है उजाले की तरह,  
समय के घाव धीरे-धीरे मिटते हैं।  

बारिश में खिलते फूलों की तरह संगीत फैलता है,  
पास-पास होना आकाश की छाया को पार करता है,  
हर पल प्रेम की लय में नृत्य करता है,  
ठंडी हवा में सपने फैलते हैं।  

संध्या की किरणें फूलों पर गुजरती हैं,  
जीवन की राहों पर प्रकाश फैलता है,  
मीठापन धीरे-धीरे, कोमलता के साथ फैलता है,  
अनंत प्रेम की ओर, संध्या का निद्रा समर्पित होती है।

जीआर कवियूर 
23 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)



सुबह की फुसफुसाहट

सुबह की फुसफुसाहट

सूरज की किरणें शांत आकाश में बहती हैं,
नीली आँखों में अभी भी सपने जगे हैं।
कोमल हवा अनकहे गीत गाती है,
स्मृतियाँ धीरे-धीरे दिल में खिलती हैं।

विचार नदी की तरह बहने लगते हैं,
जहाँ सिर्फ़ आत्मा ही जा सकती है।
शब्द सहज, सच्चे, स्वतः उभरते हैं,
पुराने और नए अनुभवों का संगम लाते हैं।

हर धड़कन एक गीत कहती है,
समय थम सा गया है इस पल में।
इस शांति में, जीवन नज़दीक लगता है,
और आत्मा बोलती है, बिलकुल साफ़।

जीआर कवियूर 
23 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)

संध्याकाश

संध्याकाश

संध्या की हवाओं में खुशबू बह रही है,
नीला आकाश मृदु प्रकाश से जगमगा रहा है।
तैरते हुए नाव के पत्ते पानी में नाच रहे हैं,
हल्की लहरें फैलती हैं, वर्षा के बादल मिलते हैं।

गिरे हुए काले पत्ते लय में झूल रहे हैं,
खजूर के पेड़ों में सुगंध फैल रही है।
पक्षियों का गीत कानों तक पहुँचता है,
ठंडी धरती में शांति छा रही है।

सुबह में तारे अपनी आँखें बंद करके सोते हैं,
पर्वत की चोटियाँ नीले आकाश से बातें करती हैं।
पेड़ मौन होकर सुनते हैं,
हृदय आराम से छाया में विश्राम करता है।

जीआर कवियूर 
23 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)

संघर्ष की सरगम

संघर्ष की सरगम

बरसों साथ जिए सभी,
सुनने को कान, देखने को नयन।
साँसों की धुन में नाक रही,
जीवन का हर अनुभव दिया भरण।

जिह्वा कई बार भटका देती,
शांत गगन को आँधी कर देती।
पर बिना स्वर के गीत कहाँ,
प्रेम की वाणी बोलें कहाँ?

साथ मिलकर सिखलाते हैं,
संघर्ष और दिल की कला बताते हैं।
दुख-सुख में चलती है राह,
जीवन आगे बढ़ता हर साँस।

तालियाँ चाहे मौन हो जाएँ,
प्रयास हमारे चमक दिखाएँ।
अंत में गूँज उठेगी यही,
“जीवन है एक संगीत सभा।”

जीआर कवियूर 
23 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)

Monday, September 22, 2025

हृदय का प्रतीक

 हृदय का प्रतीक


एक नीरव दृश्य में, यादें गाती हैं नई धुन।

भले ही कई रास्ते बंद हों, तुम्हारे भीतर की रोशनी टिकती रहती है।

आँसुओं की बारिश में, मुस्कानों के सूरज में,

हर क्षण एक नया अनुभव देता है।


धन नहीं, केवल प्रेम ही,

हृदय को उसका विशाल स्थान देता है।

जागो, उठो, और अपने भीतर खुद को खोजो,

तुम्हारे चमकते प्रतिबिंब आकाश में उड़ते हैं।


कविताओं में, सपनों में, हर विचार में —

सृजन हमेशा तुम्हारे हृदय के केंद्र में वास करता है।

कहीं भी खुद को खोने मत दो,

हृदय की तेज़ी में तुम्हारा स्थान हमेशा उज्ज्वल रहे।


जी आर कवियुर 

22 09 2025


( कनाडा , टोरंटो)

अदृश्य स्थान”

 अदृश्य स्थान”


एक नीली झील, जो कभी स्थिर नहीं,

जिसमें तारे डूबते नहीं, छिपते नहीं।

मंदिर की कबूतर-सी उड़ान निरंतर,

किसी की नहीं, फिर भी सबकी लगती।


सबके बीच होकर भी कोई न पहुँचे,

न सीढ़ी, न द्वार, न राह कहीं।

एक मृगतृष्णा-सी झलकती छवि,

एक मौन, जो छूने में कठिन।


लगता है है, पर पकड़ा न जाए,

ऋषियों ने कहा इसका गुप्त ठिकाना।

जहाँ भृकुटि मिलती है मौन में,

वहीं छिपा है इसका प्राचीन सत्य।


जो जग में भटके अनजाने,

वो चक्कर काटते रहते सदा।

पर जो जागे, वो पाए शिखर को —

यह अदृश्य स्थान है मन।


जी आर कवियुर 

22 09 

2025

( कनाडा , टोरंटो)


Sunday, September 21, 2025

खाना पकाना

खाना पकाना

रसोई में खुशबू फैल रही है,
मसाले खेलते हैं गरमी में हलचल से।
बर्तन टकराते और संगीत जगाते हैं,
स्वाद मिलकर बनाते हैं मीठा अहसास।

भाप धीरे-धीरे बर्तन से उठती है,
हाथ सावधानी से मिलाते हैं व्यंजन।
ताजी सब्जियाँ रंग भरती हैं दृश्य में,
मिर्च, हल्दी और चमेली कहते हैं रहस्य।

पिट्ठा, दाल और कुरकुरा पापड़ सुनहरी तरह,
घर भर जाता है मिठास और गर्माहट से।
भोजन बनता है प्रेम और देखभाल के साथ,
हर कोने में खुशियाँ फैलती हैं सबके साथ।

जीआर कवियूर 
22 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)

उपवास

उपवास

सूरज उगा, प्रतिज्ञाएँ खिलीं,
निशब्द फुसफुसाहट, प्रार्थनाएँ मिलीं।
हाथ जोड़, आँखें बंद करीं,
मन उड़ चला, शांति में भरी।

दीप झिलमिलाए, धूप घुमती,
हृदय जागा, आत्मा भी थिरकती।
भूख याद दिलाए, मन शांति पाए,
समय धीरे बहे, पूर्णता लाए।

गाने मधुर उठे, आशा बढ़ाए,
विश्वास मजबूत हो, प्रेम में समाए।
संध्या आई, अनुष्ठान पूरे,
कृतज्ञता हृदय में मीठे सुर जुड़े।

जीआर कवियूर 
22 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)

संगीत संध्या

संगीत संध्या

इंद्रधनुष में चमके रंग,
सुबह में गूंजे पक्षियों के संग।

ढोल बजे चाँदनी की राह में,
बाँसुरी बहे हवा की पाँखों में।

तारों की धुन कोमल सुनाई दी,
राग फैल गए बादलों की छाँव में।

ताल की लय में नृत्य प्रकट हुआ,
सपनों में संगीत ने जगह बनाई।

सुरों ने मिलकर सुनहरी रेखा बुनी,
शांति में खिले भावनाओं के फूल।

गीत बन गया प्रकाश,
हृदय जुड़े, समय भी थम गया।

जीआर कवियूर 
22 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)

राग और रागनी ( ग़ज़ल)

राग और रागनी ( ग़ज़ल)


मैं राग हूँ, और तू रागिनी,
तेरे बिना अधूरी हर धुन बनी।

मैं रंग हूँ, और तू सत्यरंगी,
तेरे बिना न चमकी कोई कली।

मैं दीप हूँ, तू बाती बन जाना,
तेरे संग ही जगमगाती जिंदगी।

मैं साज़ हूँ, तू उसकी तान बनी,
तेरे बिना अधूरी पहचान बनी।

मैं शब्द हूँ, तू अर्थ बन जाना,
तेरी नज़रों से ही निकले कविता सभी।

तेरे इश्क़ की धुन में डूबा है "जी आर",
वो राग है, जो बजे बस तेरी संगिनी।

जीआर कवियूर 
21 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)

ऊँचाई से शहर

ऊँचाई से शहर

मीनार की चोटी से नज़ारा देखा,
रेल की पटरी चमकी तारों सा।
इमारतें खड़ी, पत्थर जैसी,
छोटे लोग चलते राहों में अकेले।

आसमान ने ज़मीन को गले लगाया,
पहिये घूमते रहे, अनंत आवाज़ में।
खिड़कियां चमकी, साफ और उजली,
सपने छुपे रहे, उम्मीदें बनी रौशनी।

एक कोने में बहता मौन,
वृद्ध चेहरा हाथ फैलाए, खोई हुई गरिमा दिखा रहा।
ऊँचाई ने दिखाया चमक और गिरावट,
शहर कहता अपनी कहानियाँ, छोटी और बड़ी।

जीआर कवियूर 
20 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)


Friday, September 19, 2025

अकेले विचार – 119. एक फूल खिलने पर ( गीत)

अकेले विचार – 119

एक फूल खिलने पर ( गीत)

मुखड़ा

फूल खिलते ही खुशबू दिल में उतर आती है,
एक पल में मोहब्बत जागती, आँखों में हँसी छा जाती है।

 अंतरा 1

रंग बिखरते हैं जैसे, मन में उमंग जगाते,
एक नजर से पंखुड़ियाँ, दिल को महका जाते।
लेकिन जब मुरझा जाए, राहें भूलों में खो जाएँ,
वो ख़ूबसूरती मिट जाए, खामोशी में रह जाए।

अंतरा 2

प्यार के लम्हे उड़ते, जैसे हवाओं में बीज,
वक़्त बदलते ही रिश्ते, बनते सिर्फ़ ताज्जुब की चीज़।
चेहरे खिलते–मुरझाते, हँसी रह जाती पीछे,
यादें ही गाती रहतीं, मन में सुर बनकर सींचे।

अंतरा 3

वीणा की मधुर तान-सी, धड़कन बजती है,
यादें हर दिन गुनगुनातीं, मोहब्बत की रागिनी सजती है।
एक पल अगर खो जाए, प्यार अधूरा हो जाए,
नज़रें खोजें फिर चाहे, कोई लौटकर न आए।

जी आर कवियुर 
15 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

Thursday, September 18, 2025

तेरी तस्वीर" (ग़ज़ल)

तेरी तस्वीर" (ग़ज़ल)

अगर-मगर की बातों में कहाँ उलझता हूँ,
दिल के आईने में तेरी ही तस्वीर रखता हूँ।

तेरे ख़याल से ही दिल को सुकूँ मिलता है,
हर एक लम्हे को मैं तेरे हवाले करता हूँ।

तेरे बिना ये महफ़िल अधूरी सी लगती है,
तेरी मौजूदगी से मैं जहाँ सजाता हूँ।

फ़िज़ा में गूँजती रहती है तेरी आवाज़ सदा,
हर एक साज़ पे मैं तेरा तराना छेड़ता हूँ।

तेरी नज़र का जादू दिल पे असर करता है,
तेरे ही नाम से मैं हर दुआ माँगता हूँ।

जी आर के लबों पे बस तेरा ही ज़िक्र रहा,
जहाँ भी जाता हूँ मैं तुझे ही याद करता हूँ।

जीआर कवियूर 
18 09 2025
 (कनाडा, टोरंटो)


Wednesday, September 17, 2025

स्मृतियों की परछाइयाँ – (ग़ज़ल)

स्मृतियों की परछाइयाँ – (ग़ज़ल)

मिरी आँखों में भीगी हुई आरज़ू सामने है
तेरी छवि हर घड़ी, हर जगह सामने है

रात के आँचल में चाँदनी मुस्कुराई
तेरी यादों की उजली लहर सामने है

सहर की किरण जब बदन को छुए
तेरा साया ही जीवनभर सामने है

आँगन में चम्पा ने ख़ुशबू बिखेरी
उड़ी तितलियाँ रंगों का घर सामने है

पुरब की हवा में चन्दन की महक
पर्वत पे मंदिर का स्वर सामने है

‘जी आर’ के लफ़्ज़ों में बस एक दास्ताँ
वो जो दिल में है, अब साफ़कर सामने है

जी आर कवियुर 
17 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

तेरी खोज में

तेरी खोज में

तेरी छाया में रहूँ सदा,
चाँदनी में घुलता सपना।
शरमाई तेरी बंद पलकें,
यादों में बसती तू प्रिये।

वीणा की तारों सा संगीत,
दर्द और प्यार का मिलन अजीत।
जब सुनती तू दिल की तान,
डूब जाऊँ एहसासों में जान।

फूलों की पंखुरी संग उड़ती हवा,
लाती है तेरे स्पर्श की दवा।
तू वो रोशनी जो कभी न मिटी,
आकाश में चमके सदा प्रीति।

वक्त बदले, रातें हों लंबी,
आँखों में तुझे खोजूँ हर घड़ी।
प्यार की राहों में डूबा मैं,
सदा तुझे बाँध लूँ प्रिये।

जी आर कवियुर 
17 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

तेरी यादें में (ग़ज़ल)

तेरी यादें में (ग़ज़ल)

तेरी यादों में चुपके चलना चाहते हैं,
फिर उन सुनहरे बीते दिनों में रहना चाहते हैं।

तेरे ख्यालों की बारिश में भीगना चाहते हैं,
हर बूंद में बस तेरा नाम लेना चाहते हैं।

चाँद की चांदनी भी तेरी हँसी सी लगे,
रात भर तेरे ख्यालों में खो जाना चाहते हैं।

गुज़रते लम्हों की स्याही में लिख दी है,
हर ख्वाब तेरा ही पलटना चाहते हैं।

सन्नाटे में भी तेरी आवाज़ गूँजती है,
दिल से तुझे हरदम पुकारना चाहते हैं।

जी आर के नाम से रोशनी फैलाई,
तेरी मोहब्बत में ये दिल बस जाना चाहते हैं।

जी आर कवियुर 
17 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Tuesday, September 16, 2025

नीला झील और मेरा मन

 नीला झील और मेरा मन




नीला झील और मेरा मन

सांत स्वरों के तट पर ठहरा

हवा की छुअन दिल को छूती है

छायाएँ पानी में नृत्य करती हैं


आज, कन्नी मास की हवा मेरे देश से छूकर चली गई

फूलों की खुशबू हवा में बहती हुई

आकाश नीली आँखों में बरसता है

चमकती लहरें सपने बिखेरती हैं

नदी का प्रवाह दिल से मिलता है


सितारे रात के आँसुओं में चमकते हैं

चाँदनी पंखों की तरह फैलती है

सांझ के रंग दुनिया को भर देते हैं

मेरे भीतर कविता शांति से गूंजती है


जी आर कवियुर

 17 09 2025

(कनाडा, टोरंटो)

संध्या की हवा

संध्या की हवा

संध्या की हवा आकाश को छूती है,
नरम पवन में पंछी उड़ते हैं।
सुनहरी किरणें ढलते प्रकाश में,
छायाएँ नाचती हैं धीरे-धीरे।

पत्तों में मधुर गीत गूँजते हैं,
बादल सपनों की ओर बहते हैं।
आकाश संध्या रंग में जगमगाता,
प्रकृति का संगीत हर तरफ बजता।

शांति भूमि पर उतरती है,
सितारे चमकते, रोशनी फैलाते हैं।
क्षण मधुर और सुहाने बने रहते हैं,
हवा मन को तरोताजा कर देती है।

जी आर कवियुर 
17 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

सुनहरा फूल

सुनहरा फूल

सुनहरी कली खिली भोर में,
चमक बिखरी हर कोने में।
पंखुड़ियाँ गुनगुनाती समीर संग,
खुशबू बहती मधुर तरंग।

तितली मंडराए रंग भरकर,
मैदान सजे सुंदर रहकर।
बूँद चमके पत्तों ऊपर,
आभा फैले नभ के भीतर।

पंछी गाएँ उजले साज,
सृष्टि सँवरे अनोखे राज।
मुकुट सजे प्रकृति शान,
अनमोल धरोहर जीवन गान।

जी आर कवियुर 
17 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Monday, September 15, 2025

तुम्हें भूल न सकूँ”

तुम्हें भूल न सकूँ”

तेरी आँखों में चमक निराली,
जैसे धरती पर उतरे सितारे।
नवरत्न जैसे जन्म लिए हों,
तेरा कमल मुख मोहित करे प्यारे।

फूलों सा तेरा प्यार महकता,
दिल में छुपी मिठास जगाता।
हवा में घुली तेरी खुशबू,
रात की चाँदनी गीत सुनाता।

बारिश की बूंदें होंठ सजाएँ,
सपनों में तेरी छवि मुस्कुराए।
मैं तुझको हरदम ढूँढता रहूँ,
भुलाना तुझको मुमकिन न पाए।

जी आर कवियुर 
16 09 2025
(Canada,Toronto)



स्वर संगम

स्वर संगम

चाँद सोता है घाटियों में
सपने मिलकर बहते समय में
हमेशा एक सपना, मेरे प्यार
दिल की धड़कनों में… संगीत की तरह

आँखों में खिलते सुरों का संगम
दिल में जागती है कोमल अनुभूति
मौन पलकों पर गिरता
मीठी, हल्की बारिश की तरह

हवाओं के हाथों में एक कोमल सपना
धीरे-धीरे खिलता अपने समय में
रास्तों में चमकते तारे
विचारों की तरह गिरते, रात को भरते

जी आर कवियुर 
16 09 2025
(Canada,Toronto)

उड़ान भरे,

 उड़ान भरे,


नन्हा पंखों वाला चमत्कार उड़ान भरे,

दमकते रंग जैसे दीपक झिलमिल करें।

फूलों के ऊपर ठहर कर मंडराए,

पंखुरियों को चूम कर रहस्य सुनाए।


निशब्द उड़ानें निर्मल सरिता पर,

धूप को लेकर सपनों में उतरे।

प्रकृति सजाए नाज़ुक चित्रकारी,

हर मन को छू ले उसकी कोमल लयकारी।


क्षणिक पल, सौंदर्य अल्प महान,

फिर भी सभी को करता मोहित ज्ञान।

आनंद का दूत, रश्मि प्रभात,

ऋतु उपहार ग्रीष्म दिवस में साथ।



जी आर कवियूर

15.09.20

25

 (कनाडा, टोरंटो)

समुद्र की हवा

 समुद्र की हवा


किनारे छूते लहरों के गीत,

कोमल स्पर्श जगाए प्रीत।


नमकीन सांस महके हवा,

क्षण जगाए दिल की दवा।


तरंगें गाती सुरों की तान,

सागर गूँजे हर एक स्थान।


बूँदें चमके रजनी के संग,

तारे बरसे उजली उमंग।


मंद छुअन मन को भाए,

सपने जग में फूल बन जाए।


जी आर कवियूर

15.09.202

5

 (कनाडा, टोरंटो)

लाल छतरी के नीचे

 लाल छतरी के नीचे



लाल छतरी की छाँव तले,

टोरंटो की गलियों में बैठे हम चले।

छोटी-सी चाहत, दिल का सहारा,

फ्रेंच फ्राइज़ संग डाइट कोला प्यारा।


शहर की रफ़्तार, गाड़ियों का शोर,

फिर भी मिलता सुकून, दिल के अंदर और।

तेरा हाथ थामे, प्रेम का सहारा,

ये बेंच ही लगता है घर हमारा।


जी आर कवियूर

15.09.2025

 (

कनाडा, टोरंटो)

हेमंत की रातों में

हेमंत की रातों में

हेमंत की संध्या संवरती हैं सिंदूर से,
फिकी चांदनी मुस्कुराती हुई खड़ी है।
हवा में गूँजते हैं भारत के गीत,
बर्फ से ढकी पर्वत की ढलानें सजती हैं।

इंतजार के अंत में वह आया,
सूरज की सुनहरी रोशनी बिखरी।
सपनों की फुसफुसाहट सुनने को,
वसंत झुककर सुनता है लालसा से।

जब फूल खिलते हैं, सपने पनपते हैं,
तारों की इंद्रधनुष में प्रेम चमकता है।
पत्तों में संगीत बुनता है,
हृदय के अनकहे शब्द धीरे-धीरे गूंजते हैं।

बूँदें मोती की तरह छतों को छूती हैं,
प्रेम के नोटों में राग गूंजते हैं।
काले बादल चाँद को आलिंगन करते हैं,
इस सुंदर रात में कविता जाग उठती है।

जी आर कवियूर
14.09.2025
 (कनाडा, टोरंटो)

अकेले विचार – 118

अकेले विचार – 118

दिल न खोओ जब शक उठे,
हिम्मत रखो, नज़रें उठे।

सोने से बढ़कर दमक है अंदर,
सच्चाई बिखेरती है जीवन का सुंदर।

आवाज़ें पूछें, साया गिरे,
खुद पर भरोसा सब ऊपर करे।

लोहा मज़बूत, सोना तौला,
पवित्रता का नूर न कभी डोला।

गर्व से चलो, आत्मा दमके,
रास्ते में विश्वास, ज्ञान चमके।

हर कदम में उजियारा लाए,
तुम दीप बन अंधेरा मिटाए।

जी आर कवियुर 
15 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

Sunday, September 14, 2025



अकेले विचार – 117

आशा है तूफ़ानों की लौ,
रास्ते बंद हों तो भी दे संबल वो।

रात में धीरे से बात सुनाए,
सुबह की किरण फिर से दिल तक आए।

सपनों के बीज यही बोती है,
सूखी ज़मीं में भी जीवन देती है।

शक्ति जगाती है उसकी रौशनी,
ग़म को बदल देती है मंज़िल की गिनती।

अँधेरों से पार यही साथ निभाए,
आसमान को नए रंगों से सजाए।

हार कभी इसको रोक न पाए,
आगे ही आगे हमें ले जाए।

जी आर कवियुर 
15  09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

अकेले विचार – 116

अकेले विचार – 116

अनुभव खोलता है हर राह,
जीवन देता है सच्चा गवाह।

पीड़ा सिखाती गहरी बातें,
मन में भरती नई सौगातें।

हर ठोकर बनती है गान,
कमज़ोर भी होता है मज़बान।

जीवन है विद्यालय अनंत,
हर मोड़ पर है पाठ संत।

धरती माँ है सच्ची गुरु,
सिखाती धैर्य, साहस, रु।

सबसे बड़ा शिक्षक वही,
यात्रा ही ज्ञान की नदिया बही।

जी आर कवियुर 
15 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

विश्व हिंदी दिवस गीत

विश्व हिंदी दिवस गीत

हिन्दी है प्यारी भाषा,
भारत की सच्ची आशा।

मिलकर दिलों को जोड़ती,
संसार में पहचान देती।

माँ के स्वर सी मधुर ध्वनि,
राष्ट्र का यह गौरव गगन।

संस्कृति का है यह आभूषण,
हर मन का अमर आलोकन।

विश्व में फैले इसकी महिमा,
प्यार, शांति और सत्य की रीतिमा।

हिन्दी का रखो मान सदा,
यही है जीवन का संदेश सदा।

जी आर कवियुर 
१४ ०९ २०२५
(कनाडा, टोरंटो)

Saturday, September 13, 2025

राधा को प्राप्त भाग्य

राधा को प्राप्त भाग्य


 के लिए ही
राग में भाव बहे
राधाकृष्णा काली रूप में
सुंदर दृश्य देखा हमने
राधा ही ने देखा, है कन्हैया

काली रूप में भी
देखा उनके मस्तक पर
मोर के पंख झूमते
बाँसुरी में मधुर बजी
राधा ही ने सुना

कन्ना, तेरी माया के भावों से
न देखा कोई और, केवल तू ही
निर्मल रूप तेरा
कृपा करके दिखा दे, है कन्हैया

असीम प्रेम में
हम तेरे सामने झुके
प्रेम का सूरज चमका
हृदय में शिक्षा दी

तारों ने सजाया
तेरे पाद कमल को
मधुर संगीत हृदय में
जीवन को भर देगा, है कन्हैया

जी आर कवियुर 
13 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

Friday, September 12, 2025

आशाओं के पंख

आशाओं के पंख

सुरहीन,
ताल और भावहीन,
मैं भटका,
टूटे तारों के साथ,
वीणा का दर्द फैलता है।

मौन से उठकर
एक राग पूर्ण खिल उठा,
सारी पीड़ा मिट जाएगी,
भोर की तरह उजाला आएगा।

टूटते स्वर में भी,
संगीत फिर से जन्म ले सकता है,
हृदय में सुबह खिल उठेगी,
कल आशाओं के पंखों पर उड़ेगा।

जी आर कवियुर 
13 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)


अकेले विचार – 115

अकेले विचार – 115


एक मुस्कान अंधेरी रात को रोशनी देगी,
आशा खिलेगी और दिल चमक उठेगा।
खुशी धीरे-धीरे दर्द में गूंजेगी,
तूफ़ान कटेंगे, सूरज फिर चमकेगा।

चमकती आंखें मन को शांत करेंगी,
प्यार में ही ताकत हमें मिलेगी।
मुरझाए चेहरे मिट जाएंगे, दिल ठीक होगा,
दोस्तों के साथ हिम्मत बढ़ेगी।

मुलायम हँसी आत्मा को चंगा करेगी,
शांति लौटेगी और मन भर जाएगा।
कठिनाइयाँ लंबे समय तक नहीं रहेंगी,
जीवन गाने में रोशन होगा, और उजाला फैलेगा।

जी आर कवियुर 
12 09 2025
( कनाडा, टोरंटो

Thursday, September 11, 2025

अकेले विचार – 114

अकेले विचार – 114

शोर से बढ़कर शांति चुनो,
मौन ही अपनी वाणी बनाओ।
मधुर नदियाँ धीरे राह बनातीं,
धैर्य अँधियारे को हराता है।

बादल छिपाएं तो क्या हुआ,
यात्रा हमेशा चलती रहेगी।
मन दृढ़ हो तो भय मिटेगा,
सत्य उठकर प्रकाश बिखेरेगा।

रायें बरसें जैसे झड़ी हों,
शांति ही स्थायी रहेगी।
स्थिर हृदय उजाला लाएगा,
हर रात में ताकत जगाएगा।

जी आर कवियुर 
11 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

Wednesday, September 10, 2025

अकेले विचार – 112

अकेले विचार – 112

किसी की पीड़ा देखकर,
गहराई से सीखो इसे।
निराशा में मत हंसो,
दिल को करुणा से जोड़ो।

साहसपूर्वक धैर्य रखो,
उनकी आँखों में चमक देखो।
आने वाले दुख को समझो,
कल की परीक्षा में याद रखो।

मजाक के लिए रास्ता मत बनाओ,
मदद के लिए हाथ बढ़ाओ।
अपने अंदर की पीड़ा में,
दयालुता और सौम्यता भरो।

जी आर कवियुर 
10 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

पेड़ के पदचिह्न

पेड़ के पदचिह्न

पेड़ के पदचिह्नों पर बच्चे खेलते गाएँ
हँसी की गूँज हवा में धीरे बहाएँ

पत्तियों से सूरज की रोशनी उठती है
छाँव खिलती है और मन को भरती है

फूलों की खुशबू में सपने पलते हैं
पक्षियों की गूँज सुबह को जगाती है

पंख फैलाकर जलपतंग उड़ते हैं
नदी की बहती धारा खुशबू लहराती है

छाया की तरह सुरक्षा स्थिर रहती है
समय सबका साक्षी बनकर खड़ा रहता है

मिट्टी पर पदचिह्न धीरे-धीरे मिटते हैं
जीवन की कहानियाँ धीरे-धीरे बोलती हैं

जीआर कवियूर
10 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

मधुर पीड़ा

मधुर पीड़ा

कल की यादें सपनों में ढलती,
आज की उम्मीदें जाग उठीं,
भविष्य के लिए सुर सजते,
मन में गूंजती मीठी तानें।

कलियों ने खिलकर छाँव बिछाई,
तितली मधु चखने आई,
पंखों से उसने नृत्य रचाया,
प्रेम की खुशबू फैलाई।

दूर गगन में चाँद मुस्काया,
अनुराग से हृदय भर आया,
मोह की लहरें दिल को छूतीं,
भावनाओं का सागर बह आया।

तुझमें डूबा मन रंगों से भरा,
आकाश सा अनंत सदा,
तेरी मुस्कान में गीत जन्मे,
मेरा प्यार रहे राग बन सदा।

जीआर कवियूर
10 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

नदी किनारा

नदी किनारा

नदी किनारे उमंगें जाग उठीं,
खिलती टहनियाँ बसंत का स्वागत करें।

हवा की लय पर झूमते रहे,
कोयल की तान ने मन को छू लिया।

छाँव में खुली एक नयी सुबह,
लहरें लोरी गाकर आगे बढ़ीं।

रेत पर बूँदों ने खेल रचाया,
वृक्षों की छाया चुपचाप ठहर गई।

चाँदनी ने मुस्कान बिखेरी,
मन में सपनों की कली सजाई।

उड़ते पंछियों ने राह दिखलाई,
नदी किनारे सुंदरता गुनगुनाई।

जीआर कवियूर
10 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

अकेले विचार – 111



अकेले विचार – 111

अगर हमारे कर्म से दुःख पैदा हो जाए,
कोई प्रार्थना उस पीड़ा को मिटा न पाए।

दान-दक्षिणा चाहे कितना किया जाए,
दिल के घावों को वह भर न पाए।

पर एक मुस्कान अगर हम दे सकें,
हज़ार प्रार्थनाओं के समान वह बने।

हँसी की किरण जब चेहरे पर खिले,
हर अँधेरा उस पल में ही ढले।

दूसरे के जीवन में जो सुख हम भरते,
वह सबसे पावन इबादत कहलाते।

जी आर कवियुर 
10 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)


अकेले विचार – 109

अकेले विचार – 109

स्मृतियों के पल

बीतते जाते हैं जीवन के पल,
हवा में घुलते हैं सपनों के दल।
समय की धारा थमती नहीं,
राहें बदलतीं, कोई रुकी नहीं।

हँसी की चमक भी फीकी पड़े,
कदमों के निशान कहाँ रह गए।
वचन बिखरते हैं समय की उड़ान,
आवाज़ें खोतीं, बचता है सन्नाटान।

प्यार की रौशनी परछाईं बनी,
यादों में रंगत धीरे-धीरे घटी।
लौटकर आते नहीं वो दिन खास,
धड़कन सँभालो, यही है विश्वास।

जी आर कवियुर 
08 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

मोहब्बत ही रहा है ( ग़ज़ल)

मोहब्बत ही रहा है ( ग़ज़ल)

दिलों को सुकूँ का यही सिलसिला रहा है,
हक़ीक़त में जीना वही मसअला रहा है।

माँ की दुआ से मिला जो उजाला सदा,
पिता की नज़र से वही रास्ता रहा है।

शहद-सी मिठासें, घटा-सी नमी,
ग़मों को मिटाकर वही मरहला रहा है।

अँधेरों में जलता है दीपक सदा,
उजालों का संग ही बस आसरा रहा है।

नफ़रत टिके कब जहाँ की ज़मीं पर,
मुहब्बत का रिश्ता ही बस फ़ैसला रहा है।

"जी आर" के लफ़्ज़ों में पैग़ाम सुनो,
तमाम हक़ीक़त मोहब्बत ही रहा है।

 जी आर कवियुर 
09 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Monday, September 8, 2025

कंधे से कंधा मिलाकर

कंधे से कंधा मिलाकर

कंधे से कंधा मिलाकर वे आज भी खड़े हैं,
ख़ुशी और दुःख में साथ-साथ चलते हैं।
काँपते हाथ प्यार से मिलते हैं,
दिलों की धड़कन में प्रेम की लय झलकती है।

जब एक उठने में संघर्ष करे, दूसरा हाथ बढ़ाए,
एक साथ बढ़ते हैं, पुराने रिश्तों की तरह सच्चे।
आँखों में अभी भी कोमल रोशनी चमकती है,
यादें फुसफुसाती हैं प्यारे नाम जो कभी नहीं मरते।

चरण थक जाएँ भी, आत्मा मजबूत रहती है,
आशा गाती है एक शाश्वत गीत।
बेजान दिनों और तूफ़ानों में भी,
वे एक साथ चलते हैं, दिलों में प्यार पलता है।

जी आर कवियुर 
09 09 3025 
( कर्नाटक टोरंटस)

मुस्कुराता चाँद और लाल क्षितिज

मुस्कुराता चाँद और लाल क्षितिज

शांत पानी के ऊपर लाल चाँद उभरता है,
सीएन टावर के पास इसके प्रतिबिंब झिलमिलाते हैं।
शहर की बत्तियाँ छोटी आग की लौ जैसी चमकती हैं,
सन्नाटे भरी गलियों में रात की हवा धीरे बहती है।

अंधेरे आकाश में बादल धीरे-धीरे तैरते हैं,
चाँद की कोमल रोशनी लहरों में झलकती है।
स्थिर पानी पर पुल धीरे-धीरे घुमते हैं,
चमकते आकाश के तारे चुपचाप देख रहे हैं।

संध्याकालीन धुंध में सितारे लाजवाब नजर आते हैं,
किनारे पर लहरें धीरे-धीरे मुस्कराती हैं।
जहाँ जल और आकाश मिलते हैं वहाँ जादू सा है,
इस गहरी लाल रात में समय थोड़ी देर रुकता है।

जी आर कवियुर 
08 09 2025
(कनाडा , टोरंटो)

मौन क्षितिज

നിശബ്ദ ചക്രവാളം

പ്രഭാപൂരിത സായാഹ്ന സൂര്യൻ ചക്രവാളത്തിലേക്ക് ചാഞ്ഞു,
നിശ്ശബ്ദമായ ഉദ്യാനത്തിൽ നിഴലുകൾ നീളുന്നു.

ഒരു വൃദ്ധൻ വിറയാർന്ന ചുവടുകളോടെ നടക്കുന്നു,
പിഞ്ചിയ സഞ്ചി ഒരു കൈയിലുമായ് നിർവികാരതയോടെ.

വിറയാർന്ന മറ്റു കൈ വടിയിൽ പറ്റിപ്പിടിക്കുന്നു,
ചവറ്റുകുട്ടയുടെ വായിൽ തിരയുന്നു.

നിധികൾക്കോ ലാഭത്തിനോ അല്ല,
വിശപ്പകറ്റാനുള്ള വകക്കായി.

ദൂരെ കുട്ടികളുടെ ചിരി വായുവിൽ ഒഴുകുന്നു,
സ്വർണ്ണ ഗോപുരങ്ങൾ ദൂരെ തിളങ്ങുന്നു.

പക്ഷേ വിശപ്പ് ഒരു ദുർബല ചട്ടക്കൂടിനെ വളയ്ക്കുന്നു,
സൂര്യാസ്തമയം ദു:ഖത്തെ ചുവപ്പിൽ മറയ്ക്കുന്നു.

ജീ ആർ കവിയൂർ
08  09 2025


Silent Horizon

The bright evening sun leans to the horizon,
shadows stretch across the quiet park.
An old man moves with trembling steps,
a faded bag sways at his side.

One hand clings to a weary stick,
the other searches the dustbin’s mouth.
Not for treasures, not for gain,
only a piece of forgotten bread.

Far away, children’s laughter drifts in the air,
golden towers glow in the distance.
But hunger bends his fragile frame,
while the sunset hides his sorrow in red.

GR kaviyoor 
08 09 2025


मौन क्षितिज

संध्या का उजला सूरज क्षितिज की ओर झुक रहा है,
खामोश उद्यान में परछाइयाँ लंबी हो रही हैं।

एक वृद्ध लड़खड़ाते कदमों से चलता है,
एक छोटा सा झोला एक हाथ में शांत भाव से लहरा रहा है।

दूसरा हाथ थके हुए छड़ी को थामे हुए,
कचरे के डिब्बे में खोज रहा है।

ना खजाने के लिए, ना लाभ के लिए,
सिर्फ भूख मिटाने के लिए।

दूर बच्चों की हँसी हवा में बह रही है,
सोने की मीनारें दूर चमक रही हैं।

भूख नाजुक शरीर को झकड़ रही है,
संध्या सूरज दुख को लालिमा में छुपा रहा है।

जी आर कवियुर 
08 09 2025 

ज़िक्र (ग़ज़ल )

ज़िक्र (ग़ज़ल )

जब भी महफ़िल में तुम्हारा ज़िक्र हुआ,
मन के भीतर हर एक भाव का ज़िक्र हुआ।

तुम्हारा निगाह मिलाकर झुका लेना,
दिल मेरा रेशे–रेशे का ज़िक्र हुआ।

तेरी हँसी की खनक सुनते ही,
सारा जहाँ मेरे लिए का ज़िक्र हुआ।

तेरे बिना कोई पल भी अधूरा लगे,
हर लम्हा तेरा एहसास का ज़िक्र हुआ।

जी आर कहते हैं अब तो यही दुआ,
तेरी यादों में ही मेरा सारा जीवन का ज़िक्र हुआ।


जी आर कवियुर 
08  09 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Sunday, September 7, 2025

अकेले विचार – 109

अकेले विचार – 109

स्मृतियों के पल

बीतते जाते हैं जीवन के पल,
हवा में घुलते हैं सपनों के दल।
समय की धारा थमती नहीं,
राहें बदलतीं, कोई रुकी नहीं।

हँसी की चमक भी फीकी पड़े,
कदमों के निशान कहाँ रह गए।
वचन बिखरते हैं समय की उड़ान,
आवाज़ें खोतीं, बचता है सन्नाटान।

प्यार की रौशनी परछाईं बनी,
यादों में रंगत धीरे-धीरे घटी।
लौटकर आते नहीं वो दिन खास,
धड़कन सँभालो, यही है विश्वास।

जी आर कवियुर 
08 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

Friday, September 5, 2025

तेरी यादें" ( ग़ज़ल )

तेरी यादें" ( ग़ज़ल )

खो गया सब कुछ मगर यादों से नहीं मिटे निशान तेरे,
दिल के वीराने में अब भी गूँजते हैं अफ़साने तेरे।

रात भर आँखों में जलते हैं उजाले सपनों के,
हर तरफ़ फैले हैं मंज़र, चाहतों के पैमाने तेरे।

विरह की तन्हाइयों में ग़म का दरिया बह गया,
डूबता-उतराता रहा दिल, ढूँढता रहा सहारे तेरे।

चाँदनी भी शर्म खाती है तेरे नाम के साथ,
आसमान में खिल उठे हैं रौशनी के तराने तेरे।

जी आर की दास्ताँ सुन ले कोई दिल के पन्नों से,
हर शब्द में ढल गए हैं दर्द और फ़साने तेरे।

जी आर कवियुर 
05 09 2025
( कनाडा, टोरंटो)

दिल की बातें ( ग़ज़ल)

दिल की बातें ( ग़ज़ल)

आप कहूं या तुम कहूं मगर, दिल की बातों में खो गए हम,
कहते कहते तू पे उतार गये, जज़्बातों की आग में झुलस गए हम।

रातों की तन्हाई में तेरी यादों के साए,
हर ख्वाब में तेरे ही निशाँ पाए, दिल जलस गए हम।

बातें तेरी मुस्कानों में ढूँढते रहे हम,
मौन आँखों में छुपे जज़्बातों से बहस गए हम।

चाँदनी भी शरमा जाए तेरी आँखों के सामने,
हर लम्हा तेरी चाहत में, खुद को खोते गए हम।

अब जी आर कहते हैं, ये दिल का आलम है,
तू मिली या न मिली, बस तेरी यादों में जीते गए हम

जी आर कवियुर 
05 09 2025
(कनाडा , टोरंटो)



Thursday, September 4, 2025

“टोपी से संवाद”

“टोपी से संवाद”

झील किनारे की बेंच पर,
एक टोपी चुपचाप पड़ी है,
मालिक ने शायद भुला दी, या छोड़ दी,
जैसे आधा खुला हुआ एक द्वार।

झील ने प्रेम से धीरे पूछा,
“छोटी टोपी, दुखी मत हो,
तेरी गर्माहट ने कभी सपनों को सँभाला था,
अब तू यादों की रखवाली करती है।”

कवि बैठा सुनता रहा,
हृदय प्रतिध्वनियों से भरा हुआ,
भूली-बिसरी चीज़ें भी
विचारों में खिल उठती हैं।

चिंतन में, कवि टोपी को धीरे उठाता है,
और अनुभव करता है कि निस्तब्धता में भी
कहानियाँ साँस लेती हैं,
हर एक खोया पल जीवन का गीत बन जाता है।

जी आर कवियुर 
05 09 2025
( कनाडा , टोरंटो)

Wednesday, September 3, 2025

कृष्ण वर्णन (भजन)

कृष्ण वर्णन (भजन)

कृष्ण के रंग खिले चारों ओर
बज उठी बांसुरी, मधुर स्वर के साथ
वृंदावन में फूलों का नृत्य प्योर
भक्ति में डूबा हृदय गाए नाम साथ

गोपिकाओं के दिल में जागा प्रेम
गोविंद की मुस्कान में चमके दिव्यता
यमुना किनारे बहे मधुर लय के संग
नयनों में खिल उठा अद्भुत रूप सदा

नील गगन में बादलों की शोभा देखी
सदैव आनंद बिखेरते कृष्ण आए
पदस्पर्श से पवित्र हुई धरती
रंग-बिरंगे प्रभात में उभरा आनंद

जी आर कवियुर 
03 09 2025 
(कनाडा, टोरंटो)

नज़र

नज़र

नज़र खिलती है जैसे मुस्कान,
उसमें छिपा है प्रेम का गान।

चाँदनी जैसी कोमल धारा,
मन में जगाए मीठा सहारा।

झील की लहरों की हल्की थिरकन,
आँखों में जगती चाहत की धड़कन।

फूलों की खुशबू जैसी महक,
हृदय में रचती सुंदर झलक।

हर पल रहता समय से परे,
स्मृति में बसता नयनों के सरे।

जीवन पथ पर दीप समान,
वो नज़र बने अमर पहचान।

जी आर कवियुर 
03 09 2025
( कनाडा , टोरंटो)

सोन की पायल

सोन की पायल

पग में बंधकर खनक उठी सपनों की छाया,
सोने की चमक सी बिखरी मोती की काया।

गाँव की गलियों में गूँजे मधुर ताल,
यादों में झूमे जीवन का सुरमाल।

नन्हीं हँसी में छलकी उमंग की वीणा,
हाथों में दमकी सौंदर्य की गीना।

ओस की बूंदों सी चमकी कोमलता,
मन में सजीव हुई चाहत की ज्योति।

हर्षित मुस्कान में झलके उम्मीदें,
जीवन पथ पर महके रिश्तों की लकीरें।

चाँदनी सी उजली प्रीति की छवि,
सोन की पायल सी सज गई धड़कन सभी।

जी आर कवियुर 
03 09 2025
( कनाडा , टोरंटो)


Tuesday, September 2, 2025

समय ही साक्षी

समय ही साक्षी

समय ही साक्षी, तुम्हें सभी कथाएँ सुनाई,
सूरज की रौशनी, इतिहास को छुपाई।

स्मृतियों के रास्ते धीरे-धीरे उजले,
नई सुबह आशा के साथ आई।

आँखों के आँसुओं में बिखरे सपने,
हँसी की छाया में दर्द छुपा।

सागर की लहरों में प्रेम प्रतिबिंबित हुआ,
फूलों में खिले जीवन के गीत।

सितारों की खामोश बातें,
चाँदनी में खुले रहस्य।

मौसम लाया बदलाव,
दिल की धड़कनें ही सच्चाई बनीं।

जी आर कवियुर 
02 09 2025
( कनाडा , टोरंटो)

पदचिह्न

पदचिह्न

रेत किनारे बने पदचिह्न,
लहरों ने आकर कर दिए क्षीण।

हवा की सरगोशी ने राह छुपाई,
बस यादें ही दिल में समाई।

पथ पर चलते रहे अनजाने,
चुपचाप पूरे हुए अफसाने।

बारिश की बूँदें जब धरती पर गिरीं,
नई कहानियाँ वहीं जन्मीं।

बीते समय की पगडंडियों पर,
मौन ही रह गया हर डगर।

सीढ़ियों पर गिरती परछाई जैसे,
जीवन बढ़ता चला हर क्षण वैसे।

जी आर कवियुर 
02 09 2025
( कनाडा , टोरंटो)

तेराही नाम (ग़ज़ल)

तेराही नाम (ग़ज़ल)

मेरे लब पे तेरा ही नाम,
दिल में लिखा है तेरा ही नाम।

तेरे बिना हर ख़्वाब अधूरा,
हर धड़कन में सजे तेरा ही नाम।

जुदाई में बस एक पैग़ाम,
ज़िंदा रहने का तेरा ही नाम।

तन्हाई में यादों का धाम,
हर सदा में गूंजे तेरा ही नाम।

मोहब्बत के सागर में डूबा,
नाव बने बस तेरा ही नाम।

दीवाना बनकर जीते हैं हम,
रूह की रूह में तेरा ही नाम।

‘जी आर’ की ग़ज़ल का है पैग़ाम,
उनकी ज़ुबाँ पे तेरा ही नाम।

जी आर कवियुर 
02 09 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Monday, September 1, 2025

नियाग्रा का गीत

नियाग्रा का गीत 

(मुखड़ा)
आसमान से झरता जलधार,
गर्जन से गूँजता अपार,
नियाग्रा… तेरी महिमा,
अनंत में गाता मधुर तराना।

(अंतरा 1)
चाँदी का परदा चट्टान ढके,
प्रकृति का स्वर गगन में बजे,
इंद्रधनुष धुंध में सजे,
मन को छू ले, सपनों में बहे।

(अंतरा 2)
निरंतर बहती अमृत धार,
धरती पाए जीवन अपार,
शक्ति का प्रकाश जगमगाए,
नियाग्रा गीत अनंत सुनाए।

(मुखड़ा)
आसमान से झरता जलधार,
गर्जन से गूँजता अपार,
नियाग्रा… तेरी महिमा,
अनंत में गाता मधुर तराना।

जी आर कवियुर 
01 09 2025
( कनाडा , टोरंटो)