कल जो बारिश बरसी थी,
वो ठंडी शाम भी,
शीतल चाँदनी भी,
तेरी यादें मन में
महमान बनकर आईं।
तेरी राहें, जिनसे तू गुज़री थी,
राह किनारे खिले वो पेड़,
शहद सी मिठास में भीगे सपनों की तरह
जुदाई का दर्द दे गए।
आँसू यूँ ही बहते हैं,
रात-दिन तेरे
साये मुझमें
चुपके से बस गए हैं।
तेरी यादों में खोकर,
मैं हर पल जीता हूँ,
दिन के खिले फूलों की महक
रात की हवा में घुल गई है।
कल जो बारिश बरसी थी,
वो ठंडी शाम भी,
शीतल चाँदनी भी,
तेरी यादें मन में
महमान बनकर आईं।
जी आर कवियूर
04 11 2024
No comments:
Post a Comment