तेरी यादों की कैद में (ग़ज़ल)
तेरी यादों की कैद में
तूने जो दिया सज़ा मुझको,
तनहाई ही है साथी अब,
संग तेरे गुज़रा हर लम्हा,
ज़ख्म देता है तसल्ली अब।
तेरी राहों में खड़े रहे,
हर आहट पर संभलते रहे,
मगर तेरी सूरत दिखी नहीं,
हम ख़्वाबों से बहलते रहे।
तेरी खुशबू जो हवा में थी,
वो भी हमसे जुदा हो गई,
अब तो चांदनी भी बेगानी है,
हर सहर भी ख़फ़ा हो गई।
मेरे अश्कों की गवाही है,
हर दर्द तेरा ही लगता है,
जी.आर. ने लिखा ये दिल से ग़म,
जो तेरी यादों से सजता है।
जी आर कवियूर
20 11 2024
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