Friday, November 15, 2024

जलवायु संकट एक स्वास्थ्य संकट है

जलवायु संकट एक स्वास्थ्य संकट है

हवा जो साँसों में बहती थी साफ़,
अब उसमें छिपा है ज़हर का नाप।
धुआँ और धुंध हर कोना भरते,
साँसें चुराकर जीवन हरते।

नदियाँ सूखतीं, पानी खोता,
गर्मी में साया भी जलता-रोता।
फसलें मुरझाईं धूप की मार,
भूख-प्यास की चढ़ी तलवार।

जहाँ मच्छर कभी न उड़े,
वहाँ बीमारियाँ नई जगहें घेरे।
आंधियाँ, तूफान तोड़ते सब,
तारे के नीचे टूटे हैं ढब।

धरती रो रही, हम भी रोते,
स्वास्थ्य धरती का हमसे होते।
बचाएँ इसे, हो समझदार,
वरना होगा जीवन बेकार।

जी आर कवियूर
15 11 2024

No comments:

Post a Comment