आज अब तलक, तेरी यादों की
आशियाने में जी रहा अजनबी बनकर।
ज़िंदगी ने दिए हैं हज़ारों सबक,
फिर भी जी रहा हूँ ग़लतफहमी बनकर।
तेरा चेहरा किताब सा लगता है,
पढ़ रहा हूँ हर लफ्ज़ तलब बनकर।
ख़्वाब में भी तेरा ही दीदार हो,
आँखें जागती हैं दुआ बनकर।
हसरतें दिल की तुझसे वाबस्ता हैं,
ये तमन्ना सजी है ख़ता बनकर।
शायर जी.आर. का बस यही फ़साना है,
इश्क़ में डूबा रहा पारसा बनकर।
जी आर कवियूर
23 11 2024
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