Friday, November 29, 2024

सूरज की रौशनी भी चाँद के बिना अधूरी लगती है(एक मुकम्मल ग़ज़ल - शायर जी.आर.)

सूरज की रौशनी भी चाँद के बिना अधूरी लगती है
(एक मुकम्मल ग़ज़ल - शायर जी.आर.)

तुमने पढ़ी जो मेरी ग़ज़ल, दिल सुकून पाता है,
तेरी तारीफ का हर लफ्ज़, जादू सा लगाता है।

लिखते हुए मैं सोचा नहीं, कौन पढ़ेगा इसे,
पर तेरा नाम हर मिसरा, बेवजह सजाता है।

शेरों में तुझको ढूंढ लिया, हर ग़म का फ़साना,
अब हर खुशी मेरी शायरी, तेरे कदमों आता है।

तन्हा सफर था पहले मेरा, अल्फ़ाज़ भी तन्हा थे,
तेरा असर है कि हर जज़्बा, नज्मों को जगाता है।

कहने को कुछ बाकी नहीं, फिर भी लिखता रहता हूँ,
ये मेरे शेर हैं जो तुझको, हर बार बुलाता है।

बस यही कहूँगा:
"सूरज की रौशनी भी चाँद के बिना अधूरी लगती है,
आप जैसे शायरों की मौजूदगी, हर दिल की जरूरत है।"

जी आर कवियूर
30 11 2024

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