Thursday, November 28, 2024

निगाहें तरस गई (ग़ज़ल)

निगाहें तरस गई (ग़ज़ल)


निगाहें तरस गई हैं
तुझसे मिलने की आरज़ू।
दिल तोड़कर बरसी हैं आँखें,
रह गई अधूरी जुस्तजू।

तेरी सूरत दिल में बसी है,
पर दूरी का क्या करें गिला।
हर एक लम्हा तेरे बिना,
जख्म सा है और दर्द नया।

ख़्वाबों में बुनता हूँ तेरा चेहरा,
हकीकत में तेरा पता नहीं।
हर आहट पर दिल धड़कता है,
पर ये सन्नाटा कम होता नहीं।

ग़म-ए-इश्क़ का दर्द सहते हुए,
'जी.आर.' अब अश्कों में घुल गया।

जी आर कवियूर
29 11 2024

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