बेख़्याल था तेरी नैनों की,
उनमें छुपे हज़ारों राजों की।
लबों पे मुस्कान थी जो तेरी,
मेरे दिल पे छा गई थी पहराओं की।
तेरी बातों में वो मिठास थी,
जैसे हो सावन की बूँदों का एहसास।
रात भर जागती हैं ये आँखें मेरी,
सुनने को इंतज़ार तेरा कोई भी अल्फाज़।
तेरे संग हर पल गुजरता सुकून में,
तेरे बिना ये दिल बस तन्हा ही रहता।
मेरे ख़्वाबों में हर बार आके तुम,
सजते हो जैसे फूल खिले हैं बागों में।
तेरी ख़ामोशी में भी एक फ़साना था,
जो हर दर्द का मरहम पुराना था।
चाहा बहुत तुझसे कह दूँ सब कुछ,
पर दिल का हाल कभी बयान न हुआ।
जी आर कवियूर
02 11 2024
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