रंग बदलना अगर हो हुनर,
तो इंसान खो दे अपना असर।
जो था कभी सच्चा और सजीव,
अब बन गया है बस एक छद्म प्रतीक।
भरोसे की डोर जो टूटती है,
दिल की जमीन भी दरकती है।
भावना का दीपक जो बुझ जाए,
हर रिश्ता फिर से शून्य बन जाए।
सच का रंग जो फीका पड़ता,
हर चेहरा नकाब में छुपता।
रंग कपड़ों से नहीं, दिलों से धुलते,
जो बदलते, वो खुद को भी भूलते।
जी आर कवियूर
25 11 2024
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