Friday, November 22, 2024

आलम-ए-तन्हाई (ग़ज़ल)

आलम-ए-तन्हाई (ग़ज़ल)


तेरी यादों की साया में,
हर पल जीने का सहारा,
दिल की सुकून के लिए,
लिखता हूं तन्हाई के आलम में, 
सवेरा की सर्दी में।

जब से तू दूर है मुझसे,
हर ख्वाब बिछड़ने का सहारा।
ये फासला बढ़ा है इतनी दूरी,
जैसे सूखा हो कोई सहारा।

आँखों में जलते अरमान हैं,
दूर तक कोई निशान नहीं।
इस खामोशी में खो गया,
तेरा अब कोई नाम नहीं।

वो पल जो बिछड़े थे तेरे साथ,
दिल में अब उनका कोई पता नहीं।
अब जीआर, ज़िंदगी के सफर में,
हर कदम में तुझसे कोई वास्ता नहीं।

जी आर कवियूर
22 11 2024


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