Monday, November 25, 2024

खामोशियों की ग़ज़ल

खामोशियों की ग़ज़ल


तेरे मेरे बीच की खामोशियां,
आज भी दिल में दबा करती हैं।
कहने को तरसते थे मगर,
सिर्फ नजरें ही गवाही देती हैं।

यादें वो रातों की तन्हा घड़ियां,
दिल में हलचल सी मचा करती हैं।
चांदनी के परदे में छुपा था जो,
वो राज अब भी सजा करती हैं।

कभी हवाओं में तेरी खुशबू,
मिटती नहीं, फिर आ जाती हैं।
तेरे मेरे बीच की दूरी,
अब सदा बनके रह जाती हैं।

कैसे बयां करूं दिल का आलम,
हर खामोशी कुछ कह जाती हैं।
शायर 'जीआर' ने ये जाना है,
चुप्पियां भी ग़ज़ल बन जाती हैं।

जी आर कवियूर
25 11 2024

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