कौन सा राग, कौन सी ताल,
अनजाने में नज़रें ठहरती हैं।
कहाँ से आया ये जीवन सफर,
कहाँ को जाएगा, कुछ खबर नहीं।
हर कदम अनिश्चित है,
नज़ारों में गहराई भरती है।
ढूँढे हुए ठिकाने कहीं खो जाते,
सोचों में दिन बह जाते।
यादों की गलियों में भागते,
कुछ लम्हे संग चलते हैं।
मिलन के चुम्बन से सजते हैं,
ठहरावों में गूंज उठते हैं।
ये जीवन तो एक बहता हुआ एहसास है,
आने को जन्म, जाने को मिट्टी का मिलन,
एक सतत उपस्थिति, एक अनवरत प्रेम।
जी आर कवियूर
04 11 2024
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