अथाह गहराइयों में नजरें बिछाकर,
कह पाने से रह जाता हूं,
आँखों से बहते अश्रु में
एक खारेपन का स्वाद है।
गहराइयों में भर रहा है
आसमान का नीलापन,
रोके रखने की कोशिश की,
फिर भी खिले ख्वाबों की बगिया।
दूरी में होकर भी तुम, मुझमें बसे हो
तुम्हें भुलाने में भी नाकाम ये दिल
भीतर से हसरतों से भरा है।
हक किसी ने दिया नहीं,
फिर भी मुझसे यूँ जुड़े हो तुम,
यादों का कोई रंग सा
जी आर कवियूर
08 11 2024
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