Tuesday, November 26, 2024

इश्क की अधूरी दास्तां (ग़ज़ल)

इश्क की अधूरी दास्तां (ग़ज़ल)


लम्हा लम्हा तुझे याद करता हूं,
दिल की आग से खुद को सज़ा देता हूं।

तेरी आँखों का जादू समझ न सका,
हर ख्वाब में खुद को मिटा देता हूं।

तेरी हंसी की कसम, मेरे हमनवा,
हर सांस में तेरा नाम सजा देता हूं।

मगर इश्क की बारी में हार चुका हूं,
हर रोज़ ये दिल तुझसे वफ़ा करता हूं।

अब यादों का एक जहां बसा लिया है,
जहां हर घड़ी तुझे दुआ देता हूं।

"जीआर" का दिल इश्क़ का आईना है,
हर दर्द में बस तुझसे सिला मांगता हूं।

जी आर कवियूर
26 11 2024

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